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आंध्रप्रदेश के तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर को एक महिला ने 3.2 करोड़ रुपये की डिमांड ड्राफ्ट व 6 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी डोक्युमेंट के साथ भेट किया है | यह मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में है | जानकारी के आधार पर यहाँ हर साल 1000 से 1200 करोड़ का चढ़ावा आता है |
महिला की उम्र 76 साल थी | अब वह इस दुनियां में नहीं | मरने से पूर्व उन्होंने अपनी सारी प्रॉपर्टी और धन इस मंदिर में दान करने का मन बनाया था | इनका नाम डॉक्टर पर्वतम है , ये चेन्नई की रहने वाली थी | ईश्वर पर आस्था और विश्वास इनमे भरा था | किसी कारण वश इन्होने विवाह भी नहीं किया | अपनी पूरी सम्पति मंदिर को सोपने का मन जाहिर कर इस दुनियां को अलविदा कहा |
इनकी बहन ने तिरुपति मंदिर के समिति अध्यक्ष से यह अपील की है कि वे इस सम्पति व राशि ( 3.2 करोड़ रुपये ) को वहां बन रहे बच्चो के अस्पताल में भेट करे | अपनी सम्पति को बन रहे अस्पताल में दान करने की ईच्छा पर्वतम ने जाहिर किया था |
भारत में दानवीरों की कमी नहीं | हर साल ऐसे सुप्रसिद्ध मंदिर में लोग सम्पति दान करते हीं रहते है जो हर साल करोड़ो - अरबो में होता है | कहीं कहीं इस धन को गिन पाना भी बहुत मुश्किल होता है और सिक्को की तो इतनी भरमार होती है कि सिर्फ उन्हें अलग रूप दे वजन कर बोरी में भरकर भेजा जाता है | धन वर्षा मंदिरों में इस कदर होती है कि वहां के लोगो को फुर्सत नहीं किसने क्या दिया ?सिर्फ फाइल में दर्ज रहता है |
ऐसे मंदिर में भी जहाँ कम श्रद्धालु जाते है , मेंटेन हो जाता है | जबकि भगवान तो हर जगह एक हीं है और मेरे ख्याल से हर इंसान में ईश्वर मौजूद है , फिर भी हम इंसान को दुखी करते है सिर्फ धन के लिए और कभी कभी जन के लिए | यह जानते हुए भी कि एक दिन सभी को ऊपर हीं जाना है |
76 साल की डॉ० पर्वतम का नाम दानवीरों में पहला नहीं न आखिरी है |
मगर बहुत दुःख की बात है कि - गरीबी से मर रहे लोगो पर इन अमीरों की नजर क्यूँ नहीं पड़ती | काश ! कि ऐसे दानवीर की नजर उनके घर पर पड़ती जिनके पास घर नहीं और वे किराए दे देकर परेशान है | काश ! कि इनकी नजर उनके बच्चो पर पड़ता जिनका धन अभाव के कारण भविष्य खराब हो रहा है और ऐसे हीं बच्चे बड़े होकर गलत रास्ते को चुन धन कमाने के लिए बेकरार होते है | ऐसे लोगो के पास थोड़ा थोड़ा धन दानवीर बाँट दे तो भारत में ऐसे लोग अभाव से नहीं जियेंगे | सभी लोग खुशहाल जिंदगी जी पायेंगे और दुआएं भी मिलेगी |
हमारा यह लिखना शायद ! बहुत लोगो को अच्छा न लगे , उचित न लगे | मगर हमारा मन इस बात को 100% उचित मानता है कि - ज्यादातर अमीर जब भी दान देते है तो उस जगह पर देते है जहाँ पहले से हीं झोली भरी हो | गरीब और जरूरतमंद को देना पसंद नहीं करते | दानवीर की बात हो या फिर बैंक की बात जो लोन उपलब्ध कराती है | हर जगह मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय लोग मार खा जाते है और सुबह खाकर शाम की सोंचते है |
कहीं कहीं इतनी राशि खाजने में भरी पड़ी है जिसे भोगने वाला कोई नहीं और अंत में वह राशि बड़े खजाने में ट्रांसफर कर दिया जाता है | यह हमारे भारत का दुर्भाग्य है या सौभाग्य , यह तो हर मानसिकता पर निर्भर करता है | मगर आखिरी में बस इतना हीं हम लिखना चाहेंगे जो हमने गीता में पढ़ा है , इसका चार लाइन आपको भी समर्पित -
नोट :- एक सच्ची घटना से हम आपको वाकिफ कराना चाहेंगे | भारत के एक ऐसे मंदिर में हमारा जाना हुआ जिस मंदिर का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात है | यह फ़रवरी 2020 की बात है , जब हमारा इस मंदिर में जाना हुआ | मैंने अपने मोबाइल से इस मंदिर के अध्यक्ष महोदय से बात कर मंदिर में पहुंची | एक घंटा इंतज़ार के बाद उनसे मेरी मुलाक़ात हुई | मैंने एक आवेदन बढ़ाया , और पुरे मन से आग्रह किया - सिलाई मशीन दान देने के लिए | यह बाते इसलिए कि कुछ महिला समूह को हम रोजगार देना चाह रहे थे |
8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हमे महिलाओं को रोजगार देना था | अध्यक्ष महोदय ने यह कहते हुए साफ़ इनकार कर दिया कि - हमलोग से जो बन पड़ता है वो खुद करते है और हमारा आवेदन मेरे तरफ बढ़ाते हुए कहा कि -हमारे पास मशीन आएगा तो हम आपको दे देंगे |
अब आप समझ सकते है | आवेदन में हमारा नाम , मेरा मोबाइल नंबर अंकित था | जब उन्होंने आवेदन रखा हीं नहीं तो वो हमें कैसे ढूँढ पाते ? समझदार के लिए इशारा काफी था और हम उतने नासमझ नहीं | क्यूंकि हर इंसान के सर पर ऊपर वाले का हाथ रखा होता है | आप यकीन नहीं करेंगे - गणपति बप्पा उत्सव के मौके पर उस मंदिर में अरबो रुपये की भेंट चढ़ावे के रूप में समर्पित होता है | हम रुआसें मन से वापस आ गए और मशीन के अभाव में हमारी महिलाओं का हाथ खाली रह गया और हमारे कदम ठहर गए | क्यूंकि हम बहुत बड़े उद्योगपति नहीं |
21 मार्च से लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई और इस बीच मंदिर भी बंद हो गया | बप्पा की कृपा देखिये कि - अरबो रुपये से वह मंदिर वंचित रह गया | इसे आज भी हम बप्पा की नाराजगी मानते है | उस मंदिर के व्यक्ति का मन कितना छोटा था कि उन्होंने एक मशीन भी मुझे भेंट नहीं की , जहाँ हर वर्ष अरबो रुपये का दान आता है | आखिरकार यह पैसा जाता कहाँ है ? यह समझ से पड़े है |
हम यह नहीं कहते कि मंदिर या संगठन में दान नहीं देना चाहिए | लेकिन सिर्फ एक मंदिर या एक संगठन में दान न करते हुए आप थोड़ी थोड़ी राशि हर जगह दान कर दे , ताकि हमारी तरह काम करने वाले थोड़ी सी राशि और सामान से वंचित न रह जाए और ऐसे लोग जिन्हें रोजगार की कमी है उन्हें रोजगार मिल सके |
ईश्वर
को या किसी पॉवर को हम मानते है तो यह भी मानना होगा कि हर इंसान के आत्मा
में परमात्मा का निवास स्थान होता है , याचक को खाली हाथ न जाने दे , अगर
आपके पास सामर्थ्य है , आप सक्षम है तो ! ........ ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश
आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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