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तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया और अब तालिबान की सरकार बनने के आसार साफ़ दिखाई पड़ रही है | अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी और उपराष्ट्रपति सहित कई मंत्री देश छोड़कर सीमा से बाहर निकल गए | यहाँ के राष्ट्रपति ने सिर्फ अपनी परवाह की , देश के नागरिक के लिए कोई भी सुरक्षा मुहैया नहीं कराया | देखा जा रहा है कि - वहां जिस तरह की त्राहि मची हुई है और इस बीच वहां की जनता त्रस्त है कि लोग अपनी - अपनी जान बचाने के लिए हद से गुजर रहे हैं |
आज अफगानिस्तान के नागरिकों का ठीक वैसा हीं हाल हो गया है , जिस तरह बिन माँ - बाप के बच्चों का होता है | नजारा देखा जाए तो काबुल के एअरपोर्ट पर इस कदर भीड़ उमड़ पड़ी है कि लोग अपनी जान बचाने के लिए चलती हुई प्लेन के ऊपर चढ़ने को बेताब हुए | भीड़ के बीच प्लेन किसी तरह अपनी गति पकड़ती हुई आगे बढ़ती जा रही थी उड़ान भरने के लिए और प्लेन के साथ - साथ सैकड़ों लोग उसपर लटकने के लिए दौड़ते नजर आ रहे थे |
यह दृश्य देखकर ऐसा लग रहा था कि - उनकी मानसिक अवस्था प्लेन और बस में कोई फर्क नहीं समझते हुए प्लेन के ऊपर भी चढ़ रही थी और प्लेन भीड़ को चीरते हुए उड़ान तो भर लिया | यह प्लेन अपनी सुरक्षकर्मियों को लेकर अमेरिका पहुँचाने जा रही थी | लोग किसी तरह उसपर लटक गए , कुछ हीं दूर जाकर दो व्यक्ति उड़ती हुई प्लेन से नीचे पिच पर गिर गए और उसी वक्त उनकी मृत्यु हो गई | जहाँ वो गिरे , वहां दर्जनों लोग मौजूद थे , क्यूंकि यह एयरपोर्ट का हीं कैम्पस था | जो नीचे बचे रह गए , उनका तो भगवान हीं मालिक है |
इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति की तरफ विपक्षी पार्टी और अमेरिका मीडिया का सवाल उछाल लेने लगा | सोमवार की रात भारतीय समय के अनुसार 1:30 बजे उन्होंने देश को संबोधित किया | उनका कहना है कि - अफगानिस्तान की हालत अचानक बदल गया | इसका असर दूसरे देश पर भी पड़ रहा है | हम चुप नहीं रहेंगे , आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई जारी रहेगी | अभी सबसे पहले हमारी कोशिश है कि अमेरिका का हर नागरिक वहां से सुरक्षित लौटे | हमारे सैनिकों ने बहुत त्याग किया है | हमारे पास सिर्फ दो हीं विकल्प थे - एक यह कि हम तालिबान से की गई समझौते लागू करते और फ़ोर्स वापस बुलाते , दूसरा यह कि - कई हजारों सैनिकों को वहां भेजते और जंग चलती रहती | यह प्रश्न तो अफगानिस्तान पर उठनी चाहिए | वहां के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी से प्रश्न पूछनी चाहिए , जो वहां से भाग गए | हमारी सेना और जोखिम नहीं उठा सकती ! जब अफगानिस्तान के नेताओं ने हीं हथियार डाल दिए और देश से भाग गए |
अफगानिस्तान ने बहुत जल्द हथियार डाल दिए | हमने वहां अरबों डॉलर रुपये खर्च किये , वहीं 20 साल की ट्रेनिंग के बावजूद वहां की फ़ौज ने सरेंडर कर दिया | अफगान के फ़ोर्स को ट्रेंड किया है , परन्तु आश्चर्य है कि इतनी बड़ी फ़ौज और हथियार से लैश लोगों ने हार कैसे मान लिया ? यह सोंच का विषय है और मुद्दा गंभीर है | हमारी सेना वहां कितना दिन रुक पाती , एक साल / पांच साल , क्या इससे हालात बदल जाते ?
ब्राइडेन ने कहा कि - हमें उम्मीद है कि वहां के हालात फिर बेहतर होंगे | हमें देखना होगा कि तालिबान वहां क्यूँ गया है ? मेरी नेशनल सिक्योरिटी टीम और मै , इस पर गहरी चिंतन करते हुए आगे की सोंच रख रहे हैं | हम वहां 20 साल रहे , जिसमे अलकायदा को नेस्तनाबूद किया | ओसामा बिलादेन को ख़त्म किया | अमेरिका ने अलकायदा को खत्म करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने में कामयाबी हासिल करने के साथ अफगानिस्तान को बनाने में हर मुमकिन प्रयास किया | अब हमने 6000 सैनिक दल वहां भेजे है ताकि वह हमारे और सहयोगी देशों के लोगों को निकाल सके | हमारे सैनिक वहां दिन - रात काम कर रहे है | हमारी सोंच है कि - हमारी सभी सिविलियन वहां से सुरक्षित लौटे |
मैंने स्वयं अपने सैनिकों से बातचीत की है , जो इस वक्त वहां तैनात है और हालत ये बता रही है कि - हमें इस मामले में डिप्लोमैटिक तरीका अपनाना चाहिए , तभी समस्या का समाधान निकलेगा और हमें अमेरिका के हित में भी सोंचना है | कुछ लोगों का यह सवाल है कि - हमने अफगानिस्तान के कुछ हमारे मददगारों को क्यों नहीं निकाला ? तो वे खुद यहाँ नहीं आना चाह रहे है , उन्हें हालात सुधरने का भरोषा है | ये सभी जानते है कि - अमेरिका के 4 राष्ट्रपति अफगानिस्तान के संकट को झेल रहे हैं | मेरी सोंच है कि पांचवां राष्ट्रपति भी यहीं सब देखे ?
हमने ओसामा बिनलादेन का 10 साल पीछा किया और उसे ढेर कर दिया | हमें इस फैसले पर कोई अफ़सोस नहीं , अपनी सेनाओं को वहां रखना राष्ट्रीय सुरक्षा के हीत में नहीं है | जब मैंने सत्ता संभाली थो , उससे पूर्व डोनाल्ड ट्रम्प तालिबान से बातचीत कर रहे थे | 1 मई के बाद हमारे पास ज्यादा विकल्प नहीं थे , या तो तालिबान से हमारी सेना लड़ती ! अब हमने उसे वापस बुला लिया | मैंने जून में अशरफ गनी से बात की थी और उन्हें कहा था कि - प्रशासन में करप्शन को समाप्त करे , परन्तु अशरफ गनी को भरोषा था कि - उनकी सेना तालिबान का मुकाबला कर लेगी , जो नहीं हुआ | जबकि तालिबान संख्या में कम थी , फिर भी बिना लड़े हीं अफगानिस्तान ने हार मान ली कैसे ? अफगानिस्तान के लोगों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार है |
20 वर्ष पहले जब हम अमेरिका गए थे तो , हमारा मकसद इतना था कि - हम उनलोगों को सजा देना चाह रहे थे जिन्होंने अमेरिका पर हमला किया था | हमारा काम घुसपैठ रोकना या राष्ट्र निर्माण नहीं है | हमारा लक्ष्य और मिशन आतंकवाद के खिलाफ होना चाहिए | अफगानिस्तान को शर्मनाक हार का सामना तो करना हीं पड़ेगा |
अमेरिका के राष्ट्रपति ब्राइडेन ने तो अपनी बातें कहकर सर से भार हटा लिया | मगर सवाल यह है कि - 20 साल से सोया तालिवान अचानक कैसे जाग गया ? और काबुल पहुंचकर वह भी बिना खून खराबा किये राष्ट्रपति भवन पर कब्ज़ा कर लिया | अमेरिका की वो ट्रेनिंग ,जिस ट्रेनिंग में लाखों - करोड़ों रुपये खर्च हुए थे , इसपर सवाल खड़ा होगा | जब अमेरिका की सेना अफगानिस्तान में मौजूद थी , तो अफगानिस्तान को इस हाल में क्यूँ छोड़ दिया गया ? 20 साल से अमेरिकी फ़ौज अफगानिस्तान में जमी हुई है | अफगानिस्तान में अमेरिका के लगभग 61 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए है | 20 साल पहले वहां तालिबान का राज था और 20 साल बाद भी उनकी सैनिकों की टोली वहां मौजूद थी |
यह तालिबान वहीं है , जिसे अमेरिका ने अपने फायदे के लिए पैदा किया | अफगानिस्तान की आबादी लगभग पौने चार करोड़ है | तालिबान 23 साल पहले जा चूका था | अमेरिका ने 20 साल में साढ़े 3 लाख अफगानी फौजी तैयार करने के दावे किये थे , लेकिन अफ़सोस की महज 10 दिनों में हीं तालिबान ने अफगानिस्तान को तहस - नहस कर दिया | सोंचने वाली बात है कि 70 हजार तालिबान के लड़ाके के सामने साढ़े 3 लाख अफगानी फौजी कैसे कमजोर पड़ सकती है !
खैर .... इसके विस्तार में जाना होगा , क्यूंकि यह कहानी 101 साल पहले शुरू होती है |
इसलिए कि 1919 में अफगानिस्तान अंग्रेजों के गुलामी से आजाद हो चूका था , उसके बाद अफगानिस्तान में राजशाही शुरू हुआ और यह 54 साल तक चला | वहां के आखिरी राजा मोहम्मद जाहिर शाह 1973 में बीमार हुए और उन्हें इलाज के लिए इटली जाना पड़ा | इटली जाने के क्रम में हीं उनके सेनापति ने तख्ता पलट दिया और खुद को अफगानिस्तान का प्रधानमंत्री घोषित कर दिया , जिनका नाम दाउद खान था |
वहां के नागरिकों से दाउद खान ने वादा किया था कि नया संविधान लायेंगे | मगर 77 में सिंगल पार्टी सिस्टम कायम कर दिया , ताकि उनकी सत्ता बनी रहे | उनकी मनसा को देखते हुए 78 में अवाम ने विरोध किया और इस क्रांति ने दाउद खान को कुर्सी छोड़ने पर मजबूर कर दी |
पहली बार वहां नूर मोहम्मद तारीकी राष्ट्रपति बने थे और सोवियत संघ के बेहद करीबी थे | सोवियत संघ उस वक्त कम्युनिस्ट देश के तौर पर जाना जाता था , जहाँ धर्म का नामोनिशान नहीं था | उसी समय अफगानिस्तान का आधुनिकरण शुरू हुआ | इसके तहत स्कूल / कॉलेज / कल - कारखाने और महिलाओं के आजादी और उनकी पढ़ाई पर जोर दिया गया | अमीरों की जमीने गरीबों में बाटनी शुरू हुई , मगर इनकी कोशिश कबीलों को रास नहीं आया | उन्हें यह सब इस्लाम के खिलाफ लगा और इनका विरोध शुरू हो गया | यह उस वक्त की बात है , जब सोविता संघ औए अमेरिका के बीच कोल्ड वार चल रही थी और सोवियत संघ अफगानिस्तान में अपना पैठ जमा रहा था |
78 से 2021 के मध्य तक अफगानिस्तान में बहुत हीं उतार - चढ़ाव आये | अन्तोगत्वा यह कहा जका सकता है कि - तालिबान का अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर वगैर खून खराबा किये राष्ट्रपति भवन तक पहुँच जाना , यह सवाल संदेह के घेरे में है ! आज पूरी दुनियां की दृष्टि अफगानिस्तान की जमीन पर टिकी है कि अचानक यह आलम कैसे घर कर सकता है ? लेकिन फिलहाल वहां का आलम भयावह है और परिस्थिति चिंताजनक | ...... ( न्यूज़ / फीचर :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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