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हर किसी को मिलता नहीं सारा , फिर भी जान हथेली पर लिए जा रहे है
और एक उम्मदी , विश्वास के संग जीए जा रहे है
दिल पलाश है पर किसकी तलाश है
समन्दर बीच रहकर भी क्यूँ इतना प्यास है !
मुहब्बत , रिश्तो के बंधन को समेटे विश्वास में बांधे दूर तलक ले जाती है नैया
ऊपर आसमान बीच समुन्दर फिर क्यूँ तन्हा महसूस करता खवैया
रोज पिटाती है नैया समुन्द्र के थपेडों / लहरों से
फिर भी उसी से प्यार है , जान उनकी उनपर कुर्बान है !!
लेकिन आने वाले बीच तूफ़ान से टकरार है
सफ़र तो तय होना है
चल पड़े जो मंजिल की ओर उम्मीद लेकर
हौसला बुलंद हो तो फिर मुकम्मल जहाँ है
( कविता :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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