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सावन के महीने में एक तरफ ठंढी - ठंढी हवाओं का चलना ऐसा जान पड़ता है जैसे कि उमंगो - तरंगो के बीच हम खुशियाँ नहा रहे हो और हर - हर महादेव के नारे की गूंज से हमारी धरती गुंजयमान हो रही है | यह नारा हमारे वातावरण के शुद्धता का प्रतिक है |
पूरा सावन हमें इन्द्रधनुषी रंगों की तरह रंगीन बनाता है | इस माह को रोमांटिक मौसम भी कहा गया है जहाँ हम रंगीन होकर अपनी आत्मा को परमात्मा की चरणों में समर्पित करते हैं |
आखिरकार इसी माह में लोग भोले बाबा को जल क्यूँ चढ़ाते है ?
दो तरह के कांवर लेकर लोग निकल पड़ते हैं , एक साधारण कांवर और दूसरा डाक बम कांवर | गेरुआं वस्त्र पहने सभी एक रंग में रंगते हुए बाबा भोलेनाथ की जय जयकार करते हुए जल अभिषेक करते हैं | पाँव में जख्म और भूख की उन्हें परवाह कहाँ | मस्ती में झूमते हुए वे जल समर्पित करने पहुंचते है उनके दरबार में और सालो भर की खुशियाँ अपनी अंजूरी में मांग लेते हैं , भर लेते हैं |
भोलेनाथ भगवान शिव स्वयंभू है | इनका जन्म मानव शरीर में नहीं हुआ था | जब इस धरती पर कुछ नहीं था तो सिर्फ स्वयंभू हीं थे इसलिए इन्हें आदिदेव कहा जाता है | आपने सुना होगा - "सब देवो के देव तुम ही हो हर - हर महादेव" |
ब्रह्मा , विष्णु , महेश सब में महत्वपूर्ण स्थान स्वयंभू है | भगवान ब्रह्मा श्रृजनकर्ता , भगवान विष्णु संरक्षक और भगवान शिव विनाशक की भूमिका निभाते हैं | त्रिदेव हीं प्रकृति की देन हैं और यहीं संकेत देते हैं | जो उत्पन्न हुआ है उसका विनाश भी होना तय है | भगवान शिव सदैव मजूद रहेंगे ब्रहमांड में क्यूंकि ये अमर है | इसलिए कि ये शरीर में शरीर से उत्पन्न नहीं हुए तो आखिरकार भगवान शिव के जन्म का रहस्य जिसे मनुष्य जानना चाहता है |
कहानी इस कदर मोड़ लेती है कि लोग उस रहस्य के द्वार तक नहीं पहुँच पाते | जीतनी कलम हाथ में हैं , कहानी थोड़ी - थोड़ी करवट बदलते हुए बदल जाती है और हम सोंचने पर मजबूर हुए जाते है कि आखिरकार वह प्रथम कौन है जिन्होंने भगवान शिव को देखा ?
तो हमारे अनुसार शिव देखने का नाम नहीं , शिव महसूस करने का एक अनुभव है | इसलिए कि हमें इस दुनियां में बहुत से लोगो की जुबानी सुनने को मिली है कि भगवान शिव धरती पर है और वे हर कठिनाई में क्षणभर में समस्या का समाधान भी कर देते हैं , बस दिल से आवाज निकालने भर की देरी है | ठीक वैसे हीं जैसे माँ द्रोपदी ने चीरहरण के समय भगवान श्री कृष्ण को पुकारा था | निर्मल दिल से जब माँ सबरी ने भगवान श्री राम को जूठे बैर खिला दिए थे | श्री कृष्ण की दीवानी माँ मीरा ने जब जहर पीया और जब हमने तन को मन के हवाले कर देते है तो मन निःस्वार्थ होकर ब्रहामंड को समर्पित हो जाता है और ब्रहामंड को चलाने वाले भगवान शिव हीं है "सत्यम , शिवम् , सुन्दरम् |
भगवान शिव के 11 अवतार है जिसमे रुद्रा अवतार काफी प्रचलित है | बहुत गहरे में डूबा जाए तो एक पन्ना पढ़ने को मिलेगा - यह पन्ना संभवतया कर्मपुराण में लिखा है - ब्रह्मा जी को श्रृष्टि को उत्पन्न करने में बहुत कठिनाई हुई थी | उनके आँखों से जो आँसू गिरे उससे भूत - प्रेतों ने जन्म लिया और मुख से रूद्र की उत्पति हुई |
रूद्र भगवान शिव के अंश और भूत - प्रेत उनके गण यानी कि सेवक माने जाते है जिसकी झलक महाशिवरात्रि के अवसर पर निकाले जाने वाली झांकी में देखने को मिलता है | भगवान शिव जो अपने टखने पर अमृत मल रहे थे तो भगवान विष्णु ने जन्म लिया मगर विष्णु पुराण में लिखा है - भगवान विष्णु के माथे की तेज से शिव की उत्पति हुई है | सदियाँ गुजरती रही लोग कहानी को नई मोड़ देते रहे मगर इसी उलझन में आज तक सभी उलझती हीं रहे | कई दसक से हमने भी स्वयं इसी खोज में गहरे डूबने की कोशिश करते हुए अपने अनमोल पल को सेवा में लगाया मगर हाथ खाली रही | वहीं एक धरोहर के रूप में जो पाया है वह है एक विश्वास , आस्था और भगवान शिव की कृपा जो संहारक है |
सबकी रक्षा करने वाले शिव एक बार देवो की रक्षा करने के लिए एकबार जहर तक पी लिया था और नीलकंठ बने | भक्त की पुकार पर प्रगट होने वाले बाबा भोलेनाथ की महिमा निराली है | आज सोमवार का निर्मल दिन है और व्रत भी | सावन माह की सोमवारी सौभाग्य को बनाये रखने का प्रतिक दिन है जिसे लोग इस माह में करते हैं | यह अलग बात है कि हर स्टेट में यह व्रत करने की प्रथा और उपवास तोड़ने का ढंग अलग - अलग है | आइये जानते है सोमवार करने के उद्देश्य का फल जहाँ आत्मा को कैलाश पर्वत पर विराजमान भोलेनाथ तक आवाज की तार पहुँचती है ...... शेष फिर ..... ! ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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