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आज भाई - बहन के अटूट प्रेम व रक्षासूत्र को एक दूसरे को बांधने का पवित्र व पावन त्यौहार है जिस नाम से सभी परिचित है , जी हाँ "रक्षाबंधन" | इस रक्षाबंधन पर कई सारी फिल्मे बनी और लिखने वाले ने गीत भी कुछ इस कदर लिखे और संगीत में ऐसे ढाल दिया कि - आज की तारीख में चारो तरफ इस गीत को सुनकर ऐसा महसूस होता है कि इससे बड़ा प्रेम का प्रतीक निर्मल त्यौहार तो कोई दूसरा हो ही नहीं सकता और हम यह दावे के साथ कह भी सकते है कि - जिस भाई बहन का दिल आज भी निर्मल है और एक दूसरे के दिलो में वहीं प्रेम जो वर्षो पहले हुआ करता था , शादी के बाद भी अगर प्यार मन में जिन्दा है तो इससे बड़ा कोई दूसरा त्यौहार हो ही नहीं सकता और न कोई किस्मत वाला होगा |
अटूट प्रेम के बंधन में बंधा रक्षाबंधन एक वर्ष के इंतज़ार में डूबा त्यौहार का नाम है जिसमे बहन कुछ पाने के लिए नहीं , अपनी ममता व आशीर्वाद लुटाने के लिए भाई के दरवाजे पर जाती है या फिर भाई उनके पास पहुँचते हैं |
मगर वहीं हम यह कहना चाहेंगे कि - कद्र बहन की उनसे पूछो जिनकी नहीं है बहना या भाई | उन्हें यह कमी खलती है और आज उनकी आँखे आंसुओं की धार भी बहाती है , यह भी एक प्रेम का प्रतीक है |
आज इस पावन त्यौहार पर एक - दूसरे को प्रेम की नजरो से देखना भी एक प्रेम बढ़ने की उम्मीद का प्रतीक है | जब बहन अपने भाई के मस्तिष्क पर तिलक लगाकर ढेरो आशीर्वाद से उन्हें नहाती है | आरती उतारकर मुंह मीठा करने के बाद कलाई पर रेशमी डोर को बांधकर उनकी बलाए लेती हुई भगवान से प्रार्थना करती है कि - उनके भाई स्वस्थ्य , परितुष्ट बने रहे और दुनिया की हर खुशियाँ उन्हें मिले , वह दीर्घायु हो |
वैसे यह रक्षाबंधन हिन्दुओं के मुख्य त्यौहार में से एक है | परन्तु अब तो हर धर्म वाले इस त्यौहार को काफी उल्लास से मनाते नजर आते है और इसी दौर में हीं हमें प्रेम का अभाष होता है कि - हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा बहती है |
सावन मास की पूर्णिमा के दिन इस त्यौहार को मनाये जाने का रश्म व रिवाज बनाया गया | रक्षाबंधन सावन मास के अंतिम दिन मनाया जाता है जहाँ भगवान भोलेशंकर पर पूरा सावन गंगाजल व दूध चढ़ाए जाते हैं और कावंर की कतारे चारो तरफ बोलबम के नारे से गुंजयमान होता सुनाई पड़ता है |
आज संबंधो को मजबूत बनाने का भी दिन है | सिर्फ भाई - बहन नहीं बल्कि जिसे मन करे आप उसे रेशमी डोर बाँध सकते है | आज के इस आधुनिक दौर में तो राखी मिनटों में देश - विदेश तक पहुँच जाती है | थाली में रक्षासूत्र , मीठाई सहित बहुत सारी सामग्री से भरपूर गिफ्ट के साथ भाई तक पहुँच जाता है | वहीं भाई भी बहुत बड़ा व कीमती गिफ्ट देने से चूकते नहीं , भले हीं बहनों की गिनती कितनी भी क्यूँ न हो |
सोशल मीडिया से बहुत आसान बना यह प्रेम का प्रतीक रेशमी डोर रक्षाबंधन | अब तो हर जगह , हर नजर पर उमंगो से भरा रक्षासूत्र बंधा दिखाई पड़ता है | पोस्टमैन की प्रतीक्षा तो अब रही नहीं , जिन आँखों में बहन द्वारा राखी भेजे जाने की उम्मीद जगती थी | अब तो मोबाइल पर बोल दिया तो भाई या भाभी ने राखी खरीद लिया और बहनों के नाम पर बाँध लिया | लेकिन उत्सवों से सजा यह त्यौहार आज भी उतनी हीं उल्लास से मनाई जाती है , ये राखी बंधन है ऐसा |
आज 11 अगस्त है और जानकारी के आधार पर 2 दिन के असमंजश को हम दूर करते हुए यह बता दे कि - 12 अगस्त को रक्षाबंधन का यह पर्व नहीं मनाया जा सकता , क्यूंकि व्यापिनी पूर्णिमा में भद्रा दोष बना हुआ है | 11 अगस्त को सूर्योदय के साथ चतुर्दशी तिथि बनी रहेगी और पूर्णिमा तिथि प्रातः 10 बजकर 58 मिनट से आरम्भ होगा और इसके साथ भद्रा भी लग जायेगी जो कि आज शाम या रात्री 8 बजकर 50 मिनट तक बनी रहेगी |
इसलिए उतराखंड की ज्योतिषियों की राय के आधार पर हम उनकी जानकारी से आपको अवगत करा दे कि - ऐसी तिथि में अपने भाई या अन्य की कलाई या कहीं भी रक्षासूत्र न बांधे | शास्त्रों में भद्राकाल में सावनी पर्व को मनाने की सख्त मनाही दी गई है , इसलिए 8 बजकर 50 मिनट के बाद हीं राखी बांधना मंगलकारी रहेगा | रात्रि 12 बजे के बाद इस त्यौहार को न मनाये |
अब चलते चलते हम इस पर्व की एक बहुत बड़ी महत्ता अपने ह्रदय से आपके ह्रदय तक पहुँचाना चाहेंगे ताकि इस प्रेम बंधन की डोर सदैव मजबूत व अटूट बनी रहे :-
त्रेता युग में महाभारत युद्ध से पहले भगवान श्री कृष्ण ने राजा शिशुपाल के विरोध में सुदर्शन चक्र उठाया था | इस दौर में उनका हाथ घायल हुआ था और खून बहने लगा | तब माँ द्रोपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर उनकी जख्मी कलाई पर बांधा था | भगवान श्री कृष्ण उस वक्त भावविहल हो गए | उनकी बहन ने उनके बहते हुए लहू पर प्रेम की रेशमी डोर बांधकर उन्हें दर्द से राहत पहुँचाया था | उस वक्त श्री कृष्ण ने उन्हें हर खतरे व संकट से बचाने का वादा किया था जिसे हम महाभारत में द्रोपदी चीरहरण के रूप में देखा और पढ़ा है |
चीरहरण
के समय द्रोपदी की एक आवाज पर श्री कृष्ण ने उनकी रक्षा की थी | इसी सच्चे
वचन को निभाने और तड़प को कम करने का दिन है रक्षाबंधन | इसे उल्लास पूर्वक
मनाये और बहन हो भाई या अन्य जो भी इस धागे को स्पर्श करे और बांधे तो मन
में स्वार्थ नहीं प्यार भरकर बांधे | आपकी कामना भी पूरी होगी और वचन भी यह
दावे के साथ कहा जा सकता है | बड़ा निर्मल है यह त्यौहार , ये राखी बंधन है
ऐसा | ........... ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से
)
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