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मीनाक्षी थापा एक जाना पहचाना सा नाम है , जी हाँ ये वहीं मीनाक्षी थापा है जिन्हें इनके साथी कलाकार ने निर्मम हत्या कर चलती हुई बस से इनके सर को हाइवे पर फेंक दिया था |पहले मीनाक्षी के सर को धर से अलग कर धर को पानी के टैंक में छुपाया और फिर सर को हाइवे पर फेंका |
यह जघन्य अपराध मीनाक्षी के सहपाठीगण ने हीं किया था | चंद पैसे की लालच ने सहपाठी के मन में राक्षसी विचार उत्पन्न कर दिया और यह रक्षक कहे जाने वाले साथी भक्षक बनकर उनकी हत्या कर बैठे |
मीनाक्षी थापा ने 2011 में अपनी एक्टिंग की जादू से ज़माने को मोहित करने फिल्म लाइन में कदम डाला था | इनकी पहली फिल्म "404" जो एक हॉरर फिल्म थी में काम किया | इसके बाद 2012 में उन्होंने करीना कपूर व अर्जुन रामपाल स्टारर फिल्म "हिरोइन" के लिए चुनी गई | यह फिल्म मधुर भंडारकर की डायरेक्शन में बन रही थी |
अमीत जयसवाल और प्रीति सुरिन ये दोनों भी फिल्म हिरोइन के लिए साइड कलाकार हेतु चुने गए थे | सेट पर सभी को दोस्ती हुई और इन्होने मीनाक्षी को भोजपुरी फिल्म में काम दिलवाने का आश्वासन देकर डायरेक्टर से मिलवाने इलाहाबाद चलने को कहा |
तीनो इलाहबाद के लिए निकल गए और प्रीति ने मीनाक्षी को अपने घर पर भी रखा | वहीं से उन्होंने मीनाक्षी की माँ से फिरौती की मांग करना आरम्भ किया | हालाकि जब मीनाक्षी प्रीति के घर पहुंची तो उसने अपनी माँ को फोन कर कहा - वह अपने एक दोस्त के घर आई है |
परन्तु मीनाक्षी को यह पता नहीं था कि वह इन दोनों के हाथ किडनैप हो चुकी है | अमीत और प्रीति दोनों ने मिलकर साजिश रची और मीनाक्षी की माँ से फिरौती के रूप में 15 लाख रुपये के डिमांड किये , साथ हीं धमकी भी दी - अगर मांग पूरी नहीं हुई तो उनकी बेटी से एडल्ट फिल्मो में काम करवाया जाएगा |
यह सुन उनकी माँ ने अपनी बेटी की सुरक्षा हेतु 60 हजार रुपये उन्हें दे दिए थे | परन्तु उनके मन की जलन तो 15 लाख पाकर शांत होने वाली थी , इसलिए दोनों ने सोंचा कि - पैसे भी नहीं मिला और हमारा पोल भी खुल चूका है |
मीनाक्षी के लिए 12 मार्च 2012 का दिन काला दिवस साबित हुआ , जब उसकी हत्या कर दी गई | सर को धर से अलग कर इलाहाबाद - लखनऊ हाइवे पर चलती हुई बस से फेंक दिया गया था और धर को इलाहाबाद के एक पानी टैंक में फेंककर ठिकाने लगाने की कोशिश की गई |
देहरादून की रहने वाली मीनाक्षी थापा सपनों की मायानगरी में अपने सपनों को अधुरा छोड़ गई |
माँ ने फिरौती की रकम सुनने के बाद इनपर FIR दर्ज किया | FIR मुंबई और देहरादून दोनों जगह दर्ज किये गए | मुंबई के अम्बोली में यह मामला दर्ज हुआ | पुलिस ने जब मीनाक्षी के अचानक गायब हो जाने और फिरौती की मांग को जब खंगालना शुरू किया तो साजिश की लड़ी एक दूसरे से जुड़ती चली गई |
मुंबई से हजारो किलोमीटर दूर इलाहाबाद में पुलिस को एक पानी की टंकी में अभिनेत्री का नीचला हिस्सा मिला | अब ऊपर के हिस्से की खोज थी , जिसके बाद पुलिस को दूसरा हिस्सा भी इलाहाबाद - लखनऊ हाइवे पर मिला |
अमीत और प्रीति दोनों इलाहाबाद के निवासी हैं और गहरे दोस्त भी | मीनाक्षी के पास बेसुमार धन था , इसलिए मौका पाकर ये दोनों उससे रकम एंठने के उद्देश्य से फिल्म में काम दिलाने की बात कही और अपनी नाकामी को क़त्ल का नाम दे दिया |
मुंबई में इस मामले की सुनवाई हुई | विशेष लोक अभियोजक उज्जवल निगम ने मीनाक्षी की हत्या के मामले में जज के समक्ष अपना तर्क पेश किया था |
इन दोनों को पुलिस ने 14 मार्च 2012 को लखनऊ से गिरफ्तार किया था | यह कहानी और साजिश का अंत नहीं , यह तो उस नरकीय जिंदगी भुगतने का आरम्भ था | इनदोनो ने सोंचा था - बड़ा हींआसान होता है किसी का किडनैप कर फिरौती मांगकर उस पैसो से ऐश करना | क्यूंकि फ़िल्मी जिंदगी की चकाचौंध ने इन्हें अँधा बना दिया था | एक पल में हीं दोनों वगैर मेहनत अमीर बनना चाह रहे थे , जिसमे समय ने इनका साथ नहीं दिया |
इन दोनों के सीम कार्ड और मोबाइल फोन की मदद से इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था | कोर्ट में इनदोनों ने अपना गुनाह भी कबूल किया |
6 वर्ष तक इनकी माँ को अपनी बेटी की न्याय में बाट जोहना पड़ा | 2018 में दोनों को हीं कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुना दी | अभी दोनों जेल की रोटी खा रहे है |
उज्जवल निगम ने कहा था कि - इस केस के सम्बन्ध में कुल 36 गवाहों का ब्यान दर्ज किया गया , जिसमे मीनाक्षी के एक दोस्त अलोक थापा ने कहा था कि - 12 मार्च 2012 को प्रीति और अमीत के साथ मीनाक्षी गोरखपुर फिल्म के सिलसिले में जा रही है | आलोक को मीनाक्षी ने अपने साथ लोकमान्य तिलक टर्मिनल पर प्रीति और अमीत से मिलवाया भी था |
प्रीति के पिता ने भी यह स्वीकार किया था कि - प्रीति , मीनाक्षी और अमीत को लेकर उनके घर आई थी |
सारे गवाह एक एककर मीनाक्षी की निर्मम हत्या की सबूत पेश कर रहे थे |
मेहनत रंग लाती है हिना घिस जाने के बाद , मगर कौन कहता है कि - सील पर वगैर हीना रंग बिखेरेगी ? बिना मेहनत कुछ नहीं होता - खैरात , फिरौती और उसके बाद मर्डर की साजिश रचने से तो अच्छा था कि - अपनी तमन्ना / चाहत / सपने को हीं दफनाकर उम्रकैद में तब्दील कर देते | न चाहत जंप मारता न अपराध को अंजाम देने पर लालच आड़े आता |
दोस्ती के नाम पर छलावा शायद प्रकृति को भी मंजूर नहीं , ऐसे में सही रास्ते पर न चलकर दलदल में छलांग लगा लेना बड़ा हीं दुखदाई दौर है जहाँ से निकल पाना मुमकिन नहीं |क्या मिला एक दोस्त की हत्या करके ? तीनो मिलकर करोड़ो कमा लेते , वह दौर कुछ और होता |
यह सिर्फ एक घटना नहीं जिंदगी का एक हकीकत
है जिसे सबक और सीख के रूप में उतारना बहुत जरुरी है | कलंक के रंग में
स्वयं को रंगने से बचाइये और प्रेम के रंग में खुद को रंग लीजिये बड़ा आनंद
आएगा | जिंदगी यही है और जीवन इसी का नाम है | ........ ( न्यूज़ / फीचर :-
रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
रिपोर्टर