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आज 16 अक्टूबर है , एक बहुत हीं निर्मल व शुभ दिन , दो आत्माओं के स्नेह मिलन का दिन , विरह पर मिलन के विजय का दिन , फुरकत में विलाप कर रहे एक छोटे भाई के रेगिस्तानी ह्रदय पर गुलशन व प्रेम समुन्द्र बसाने का दिन | जिस ह्रदय पर अब पंछियों की चहचहाने की आवाज सुनाई पड़ेगी , मोर अपने पंख को फैलाते हुए मोरनी के साथ नृत्य करेंगे , सतरंगी सावन की घटा छाएगी और सभी के आँखों से प्रेम अमृत का बहाव प्रेमरस दिखलायेगा |
आज बाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के अनुसार भरत मिलाप का महापर्व है | दशहरा के अगले दिन अश्वनी शुक्ल के एकादशी पर हर साल इस उत्सव का आगमन होता है | भगवान श्री राम चौदह वर्ष के वनवास के उपरान्त हीं जब अयोद्ध्या आये तो अपने भाई भरत से गले मिले थे | यह मिलन भावविहल कर देने वाला था , इसे सतरंगी उत्सव में सजा एक प्रेमरस का मिलन कहा जा सकता है | क्यूंकि भरत अपनी जान से भी ज्यादा श्रीराम को प्यार करते थे , आदर करते थे | वहीं श्रीराम ने अगर सबसे ज्यादा किसी को चाहा , तो अपने भाई भरत को |
बहुत कम लोग जानते है या फिर जिन्होंने रामायण पढ़ी हो , वे इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि भरत से मांगी गई मुरादें कभी खाली नहीं जाती | भरत से माँगा गया वरदान श्रीराम हर हाल में पूरा करते हैं | यह सत्य है कि भरत को मानने और पूजा करने वाले कभी खाली हाथ नहीं रहते |
रामायण की कहानी से सभी लोग परिचित है और सभी जानते है कि भरत की माँ का नाम माता केकयी है | माँ केकयी भरत से ज्यादा श्रीराम को हीं चाहा , प्यार किया था | मगर वे अक्सर कलंकित रही और यह कलंक उन्होंने जानबूझकर अपने सर लिया था | जिस बात से सभी अनभिज्ञ थे , परन्तु श्रीराम नहीं | क्यूंकि श्रीराम का जन्म इस धरती पर भगवान विष्णु के अवतार के लिए जाना जाता है | इस अवतार में इन्हें श्रीराम बनकर राक्षसों का संघार करना था , साथ हीं रावण का वध भी |
वनवास के बाद जब भरत को इस बात की जानकारी मिली , तो उन्होंने अपनी माँ को माँ कहने से भी इंकार कर दिया | इसे श्रीराम के प्रति प्रेम और जुदाई का प्रतिशोध कहा जा सकता है |
जब भरत , श्रीराम की चरण पादुका लेकर अयोद्धाया लौटने लगे , तो माँ केकयी ने श्रीराम से कहा था - आप क्षमाशील है , करुणासागर है , मेरे अपराधों को क्षमा कर दें , मेरा ह्रदय अपने पाप से दग्ध हो रहा है | यह इसलिए कि - माँ केकयी ने जानबूझकर यह कलंक अपने सर लिया था और यह प्रेम सदा के लिए कलंक का टिका बना |
यह समझने की बात है कि - कलंक का टिका लगना माँ केकयी ने स्वीकार किया , ये देशहित के लिए था , ताकि राक्षसों का संघार श्रीराम के हाथो हो सके | माँ केकयी जब श्रीराम से क्षमा मांगी , तो श्रीराम ने कहा - आपने कोई अपराध नहीं किया है | सम्पूर्ण संसार की निंदा और अपयश लेकर भी आपने मेरे और देवताओं के कार्य को पूर्ण किया है , मै आपसे अत्यंत प्रसन्न हूँ |
14 वर्ष वनवास के बाद आज का दिन भरत और राम के मिलाप का दिन कहा जाता है | जब श्रीराम वनवास से लौटे , तो सबसे पहले माँ केकयी के भवन में हीं उनसे मिलने गए थे , यह बात बहुत हीं गहराई और प्रेम प्रगट करती है |
आज के दिन जगह - जगह जहाँ दुर्गा पूजा स्थापित किया जाता है , वहां भरत मिलाप की उत्सव में रंग - बिरंगी रौशनी से शहर नहा उठता है | यह मिलाप का आयोजन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों पर चलने के लिए लोगों के बीच दर्शाया जाता है , ताकि लोग इससे प्रेरणा ले सके और राम को अपने जीवन में उतार सके | श्रीराम ने अपने राज्य सिंहासन को त्यागकर वन की ओर गेरुवां कपड़ा में प्रस्थान किया था | हर साल यह उत्सव इसलिए दर्शाया जाता है , ताकि हर व्यक्ति अपनी नैतिक जिम्मेदारी को पूरी तरह से अपनाकर पुनः राम राज्य की स्थापना कर सके |
लोग ढूँढते है सत्ययुग कब आएगा और किसे पता नहीं कि - सत्ययुग अपनी हीं मुठ्ठी में कैद है | मगर श्रीराम की तरह त्याग करने की कूबत किसमे है | यहाँ समाजसेवा का मतलब - करोड़ों का मकान व गाड़ी , लाखों के कपड़े और फिजूल खर्ची , अपने और अपने परिवार के लिए सोंचना देखा जा रहा है | समाजसेवा करने वालो की भूख न सिमटी है न सिमटेगी | तभी आये दिन करोड़ों - अरबों का घोटाला छनकर आता दिखाई पड़ रहा है | श्रीराम ऐसे तो नहीं है , इनके पदचिन्हों पर चलने का मतलब इनके जैसा होना जरुरी है | इनके नाम लेने से पहले हीं लोगों को सोंचना पड़ेगा कि - क्या उनमे अंशमात्र भी राम की तरह त्याग करने की भावना है ? ........ ( अध्यातम फीचर :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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