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हजारों साल पूर्व महाभारत का पन्ना पलटा जाए तो , महाभारत के मुख्य पात्रों का चरित्र और महावीर योद्धा जो महाभारत युद्ध में एक अहम् भूमिका निभाई थी , उस इतिहास में एक नाम कर्ण का आता है , जिन्हें दानवीर कर्ण कहा जाता है |
युग - युगांतर से लेकर आज तक के इतिहास में किसी के नाम के आगे दानवीर नहीं लगाया गया | ज्ञात हो कि सूर्य देवों के द्वारा प्रदान किये कवच , कुंडल ने कर्ण को अजय बनाया था | इसलिए की कर्ण सूर्यदेव के हीं पुत्र थे | यानि माता - पिता के नाम में कुंती और सूर्यदेव का हीं नाम आता है | कुंती को शादी से पूर्व हीं एक महात्मा ने खास व्यक्तित्व प्रदान किया था | इसलिए की वह कुंती की अनन्य साधना से काफी प्रसन्न हुए थे | महात्मा ने ऐसा मंत्र दिया था , जिसके उच्चारण से कुंती किसी भी देवता को प्रसन्न कर सकती थी |
एक बार कुंती को मंत्र के शक्ति का प्रभाव देखना था और वह सूर्यदेव का हीं आवाहन कर बैठी | तेजस्वी भास्कर मानव रूप धारण कर कुंती के सानिध्य में आये और कर्ण के रूप में एक अतितेजस्वी बालक हुआ | जन्म से हीं कर्ण के शरीर पर तेजोमय कवच और कान में कुंडल था | सूर्यदेव की इस भेंट से कर्ण हर मुसीबत में हर हाल में अजय थे | कुवांरी माँ बनना तब भी अपमान जनक माना जाता था , भले हीं वह सूर्यदेव का सानिध्य हो | फिर भी कुंती ने नन्हें कर्ण को एक काठ की संदुक में रखकर गंगा माँ को समर्पित कर वापस लौट आयी |
संयोगवश एक सूत पति - पत्नी वहां कपड़े धो रहे थे | उन्हें कोई संतान न थी , बच्चे को देख कर लगा , गंगा माँ ने उन्हें यह औलाद भेंट किया है और वह उस बच्चे को लेकर अपने पुत्र के रूप में पालने लगे |
परशुराम एक महान महात्मा व गुरु थे | पर वह अपनी शिक्षा सिर्फ ब्राहमण बालक को हीं दिया करते थे | कर्ण उनसे बहुत प्रभावित थे , इसलिए ज्ञानार्जन के लिए ब्राहमण रूप में वह परशुराम के सगिर्द बन गए | कहते है दानवीर और सत्य वचन बोलने वाले से कभी झूठ की दोस्ती नहीं होती |
हुआ यह था कि - एक दिन परशुराम , कर्ण की गोद में अपना सर रखकर गहरी नींद में सो रहे थे | तभी वहां एक बड़ा भृंग कर्ण की जांघ पर आ बैठा और उन्हें काटने लगा | अपने गुरु के नींद में खलल न पहुंचे इसलिए कर्ण उस दर्द की परवाह किये बिना भृंग का उतपात सहते चले गए | वह भृंग कर्ण के जांघ पर इतना बड़ा जख्म बना दिया की वहां से खून की धाराएं बहने लगी और गर्म खून के स्पर्श से परशुराम जी की निंद्रा भंग हुई | उनको यह देख समझते देर न लगा कि यह कोई क्षत्रिय वीर हीं है | क्यूंकि उनकी सोंच से साधारण ब्राहमण बालक इतनी गहरी पीड़ा को बर्दाश्त नहीं कर सकता था | उन्होंने कर्ण से पूछा - तुम कौन हो सच - सच बताओ ? कर्ण के लिए गुरुदेव से झूठ बोलना संभव नहीं था , उसने अपनी सही पहचान बता दी कि वह एक मात्र सूत पुत्र है |
परशुराम जी क्रोधित होकर कर्ण को श्राप देते हुए कहा - हे शूरवीर कर्ण , मै तेरी तपस्या , गुरु प्रेम और बहादुरी की प्रशंसा तो करूँगा हीं , लेकिन तुम्हारे असत्य वचन के लिए मै तुम्हें श्राप भी देता हूँ कि - तुम्हारी मृत्यु युद्ध भूमि में हीं किसी संकट में आकर होगी और उन्होंने कर्ण को अपने सानिध्य से दूर कर दिया |
महाभारत युद्ध में कर्ण ने अर्जुन को मार गिराने की प्रतिज्ञा की थी | लेकिन कहा जाता है - एक शूरवीर क्षत्रिय सर कटा सकता है , लेकिन सर झुका सकता नहीं और छल करना तो कर्ण ने सिखा हीं नहीं था | इसलिए भगवान कन्हैया भी उनकी प्रशंसा करते है |
खंडव वन के महासर्प अश्वसेन यह अवसर देखकर , कर्ण के तसकर में जा घूंसे , ताकि जब तीर अर्जुन तक पहुंचाया जाए , तो वह काटकर उसके प्राण हर ले | कर्ण के बाण के साथ अश्वसेन बाण भी चले , लेकिन भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी थे , इसलिए बाण मुकुट काटता हुआ ऊपर से निकल गया | असफलता पर क्षुब्ध अश्वसेन प्रगट होकर कर्ण से बोले - इसबार अर्जुन का वध होना हीं चाहिए | इसलिए इसबार मुझे साधारण तीरों की तरह मत चलाना , मेरा तीर जहर से भरा है उसे जीवित नहीं छोड़ेगा | दानवीर कर्ण को इस राज पर घोर आश्चर्य हुआ और वे पूछ बैठे - आप कौन है ? और अर्जुन को क्यों मारना चाहते है | तब सर्प ने कहा - अर्जुन ने खंडव बन में आग लगाकर मेरे पुरे परिवार को मार डाला था | इसी प्रतिशोध में मै व्याकुल हूँ और आपको भी उसका शत्रु मानकर मै आपके तरकस में बाण के रूप में आ गया हूँ | ताकि मै अपना भी बदला ले सकूँ , जिससे आपका और मेरा दोनों का हीं शत्रु मारा जाएगा |
तब कर्ण ने उनको प्रणाम करके कहा - भद्र मुझे अपने हीं मानवनार्थ से नीति युद्ध लड़ने दीजिये | आपकी अनीतियुक्त कौशल की सहायता से जीतने से अच्छा है मेरा हार जाना | सच्ची बातें कहने की शक्ति और सुनने की क्षमता दोनों हीं दीप के सामान रौशन करता है ह्रदय को | सो कालसर्प कर्ण की सच्ची निति की सराहना करते हुए , वापस लौटते हुए कहा - कर्ण तुम्हारा यह धर्म हीं सत्य है , जिसमे अनितियुक्त पूर्वाग्रह को छल का कहीं स्थान नहीं है | वीर योद्धा कभी छल से जीत हासिल नहीं करते , यह तुम्हारा सत्य वचन है और कालसर्प वापस लौट आयें |
यूँ तो कर्ण की जिंदगी में बहुत सी ऐसी कहानी है जो इतिहास बनकर, लोगों के दिलों को गहरी छलनी करता है वहीं बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है | इस बात का दर्द भी कर्ण ने मुस्कुराते हुए शांत भाव से सुना था , जब कुंती ने भी अपने पुत्र अर्जुन की जिंदगी के लिए कर्ण से उस वक्त क्षमादान मांग लिया था , जिस वक्त वह सूर्य पर जल अर्पण कर रहे थे | माँ की फैली हुई झोली देखकर कर्ण ने उन्हें प्रणाम कर बोला - माता मेरा प्रणाम स्वीकार करें | मै कौरवों का साथ तो नहीं छोड़ सकता , मै दुर्योधन के साथ हीं रहकर युद्ध करूँगा | लेकिन मै वचन देता हूँ कि - तू युद्ध के पश्चात भी पांच पुत्रों की माँ बनी रहेगी | सदा अजय रहने के लिए , सूर्यदेव ने अपने पुत्र को कवच कुंडल जन्म के समय हीं दे दिया था | लेकिन महाभारत युद्ध में कर्ण को निर्बल करने के लिए इंद्र ने ब्राहमण का भेष धारण कर कर्ण से दान में उस कवच कुंडल को हीं मांग लिया था | कर्ण इस बात को भलीभांति जानते थे कि यह इन्द्रदेव है , फिर भी प्रातःकाल सूर्य जलाभिषेक के समय कोई कुछ भी मांगे तो नियमानुसार कर्ण उसकी इच्छा अवश्य पूरी करते थे | नियम पर चलने वाले कर्ण ने इन्द्रदेव को कवच कुंडल दान में दे दिया , यह जानते हुए भी कि अब उनकी जिंदगी अजय नहीं रहेगी |
कवच कुंडल के अभाव में अब कर्ण कमजोर पड़ गए और युद्ध में अर्जुन के द्वारा हराना भी पड़ा | कर्ण की मृत्यु के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण ने हीं अपने हाथ से उनका अंतिम संस्कार किया |
दानवीर कर्ण को लोग राधे नाम से भी जानते है | इसलिए कि जन्म देने वाली माँ कुंती थी , लेकिन पालने वाली माँ सूत की पत्नी राधा थी , तो इन्हें राधे पुत्र के नाम से भी लोग जानते है और राधे भी पुकारते है |
बुद्धिमान , स्वाभिमान , पराक्रमी महान योद्धा दानवीर कर्ण को कोई नहीं मार सकता था | उन्हें तो गुरु परशुराम के श्राप की तीरों ने मृत्यु की सैया पर सुलाया था | क्यूंकि वक्त की गति सबके साथ एक जैसे हीं चलती है | जिंदगी के उतार - चढ़ाव में इंसान कभी - कभी अच्छाई करने के क्रम में चुक जाता हैं , जिससे उनका स्वयं का नुकसान हो जाता है | जैसे कर्ण का हो गया और इन्सान का शरीर पाकर कोई अजय हुआ नहीं , यह सत्य है | यह महान योद्धा द्वारा एक इतिहास रचा गया , मनुष्य को सच्चे राह में चलने के लिए | परिस्थिति से सामना करने के लिए , जीत के लिए झूठ का नहीं सच का साथ पाने के लिए |
महान योद्धा कभी मरते नहीं , वह तो सदैव जीवित रहते है , शब्दों में इतिहास बनकर |
उनकी याद में जो सदा अमर है , इतिहास बनकर | मैंने एक दीप जलाए आप भी जलाइये , सच्चाई को उज्जवल बनाइये | ....... ( महाभारत पन्ना से कुछ अंश :- रुपेश आदित्या )
सभी फोटो बी० आर० चोपड़ा की महाभारत से
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