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किसी भी डॉक्टर को धरती का भगवान माना गया है , क्यूंकि वे पुनः जीवन दान देते है | इसलिए कि उस वक्त जब कोई व्यक्ति उनके पास अपने परिवार / समाज के सदस्यों के इलाज के लिए पहुंचते है और भाव विहल होते हुए बोल पड़ते है - डॉक्टर साहब , इन्हें बचा लीजिये | उस वक्त इंसान की जिंदगी और मौत के बीच सिर्फ दुआ और दवा का उपचार किया जाता है |
बहुत सारे चिकित्सक ऐसे है जिनके हाथ में जादू की छड़ी है , उनकी चिकित्सा और दुआएं दोनों हीं मरीज को लग जाता है और मरणासन अवस्था से जूझता इंसान एक बार फिर से अपनी जिंदगी को पा लेता है |
मगर जमीन के इस भगवान के लिए एक हीं मंदिर में होने का नियम बनाया गया है | किसी भी डॉक्टर के लिए यह नियम नहीं कि वे दो - चार - दस हॉस्पिटल में अपने नाम का डंका बजाकर पद पर आसीन रहे |
मध्यप्रदेश में कुछ ऐसा हीं हुआ है जिसे मीडिया ने खंगाल डाला | ऐसे देखा जाए तो यह पहला मामला नहीं जहाँ मध्यप्रदेश का यह अपराध उजागर होता हुआ दिखाई पड़ रहा है , बल्कि भारत के कई राज्य में ऐसा हो रहा है / किया जा रहा है , जहाँ नजर पड़ गई वे गुनाहगार बन जाते है या फिर उनपर करवाई की जाती है , जिनपर नजर नहीं पड़ी वे यूँ हीं मरीजो की जिंदगी से खिलवाड़ करते रहते हैं |
वह मंदिर जहाँ प्रतिमा नहीं तो भक्त किसके लिए जाए वहां | यहीं हाल हुआ है मध्यप्रदेश के कुछ अस्पताल में जहाँ 22 अस्पताल में डॉक्टर गौतम चंद गोस्वामी का नाम दर्ज है | 22 अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टर के तौर पर यह नाम दर्ज है , परन्तु सभी जगह वे नहीं पहुँचते |
ऐसे हीं भोपाल के 14 अस्पताल में , गुना के 2 अस्पताल में , होशगाबाद के 2 अस्पताल में और सिहोरा , रायसेन , राजगढ़ के अस्पताल में एक हीं डॉक्टर के नाम दर्ज है |
ऐसे हीं एक अस्पताल है "आशा मल्टी हॉस्पिटल" जहाँ इनका नाम दर्ज है मगर यहाँ ये आते नहीं |
वहीं संवादाता जब "भारती मल्टी केयर अस्पताल" की सच्चाई को खंगाला तो होश हीं उड़ गए | रेजिडेंट डॉक्टर के नाम पर दर्ज था डॉ० हरिओम वर्मा का नाम , यह भोपाल के 9 अस्पताल में कार्यरत है |
कोरोना काल के दौरान जिंदगी को बचाने के लिए प्राइवेट अस्पताल को भी लाइसेंस जारी कर दिया गया था | आज देखा गया तो अस्पताल में बेड पाया गया , मगर वहां डॉक्टरों की उपस्थिति दर्ज नहीं थी | विस्तरों को देखकर लाइसेंस जारी करना मरीजो की जिंदगी से खेलवाड़ करने के बराबर है | आखिरकार स्वास्थ्य विभाग की निगरानी से कहाँ चुक हुई कि - उन्होंने अस्पताल में डॉक्टर की सूची और उपस्थिति पर ध्यान दिए बिना हीं अस्पताल को लाइसेंस जारी कर दिया |
अस्पताल में विस्तर है , मनेजमेंट के नाम पर कुछ काउंटर सेवक , परन्तु डॉक्टर नहीं जो इलाज कर सके | ऐसे में अस्पताल होने और न होने का क्या मतलब |
चर्चित मीडिया के संवादाता हेमेन्द्र शर्मा की दृष्टि अस्पतालों पर पड़ी और एक हीं डॉक्टर के नाम की सूची कई एक अस्पताल में दर्ज मिला तो इनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा | मरीजो की जान को दरकिनार कर लाइसेंस बाँट दिए गए , जिस बात की जानकारी स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री तक को पता नहीं |
देखा जाए तो पिछले साल सैकड़ो प्राइवेट अस्पताल को लाइसेंस बाँट दिए गए | आज सरकारी अस्पताल में डॉक्टर की कमी देखी जा रही है , तो फिर प्राइवेट अस्पतालों की कमी को लिखना डॉक्टर अभाव की स्थिति को समझा जा सकता है |
हेमेन्द्र शर्मा ने मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के पास पहुंचे और सवाल दाग दिया | सवाल पर गंभीरता से सोंचते हुए मंत्री महोदय ने कहा - नेशनल मेडिकल काउन्सिल के नियम के अनुसार सभी को इसका पालन करना है जहाँ एक व्यक्ति को एक हीं जगह काम करना है और यह NMC पोर्टल के माध्यम से भी सुनिश्चित होता है | ऐसे में यदि कहीं से भी इस बात की शिकायत हम तक पहुँचती है तो इस पर तहकीकात व करवाई की जायेगी |
आखिर ऐसे कैसे हुआ कि सभी अस्पताल को लाइसेंस जारी कर दिया गया | यह कोई ट्रेन का टिकट काउंटर नहीं था , जहाँ काउंटर के अन्दर हाथ डाला और टिकट पा लिए गए | ऐसे अस्पताल में अगर मरीज पहुँच गए तो समुन्द्र में वेगैर खेवैया डूबती हुई नाव का नजारा होगा |
कोरोना काल के दौरान अस्पताल खुलते चले गए , मगर अब जब सरकारी वेबसाइट को खंगाला गया और संवादाता महोदय ने एक एककर मध्यप्रदेश के अस्पताल की सूची निकाली और डॉक्टर के नाम की सूची को देखा तो दंग रह गए , जहाँ अपनी पद की गरिमा को दरकिनार कर ये डॉक्टर इंसानी जिंदगी से खिलवाड़ करने पर आतुर होते हुए NMC के नियम को दरकिनार कर दिया |
भोपाल में 104 , ग्वालियर में 116 , इंदौर में 48 और जबलपुर में 34 नए अस्पताल लाइसेंस लेकर खुल गए जिसे सरेआम चलाया जा रहा हैं |अब एक बार फिर यह मामला उजागर होता हुआ सामने दिखाई पड़ रहा है जहाँ इन डॉक्टरों पर करवाई की जाएगी |
दो - चार साल के अंतराल पर अक्सर अस्पताल और डॉक्टरों की लापरवाही नजर के सामने दौड़ती हुई दिखाई पड़ती है , मगर फिर भी कुछ ऐसे डॉक्टर की सोंच में बदलाव क्यूँ नहीं आता ? आखिरकार ऐसे डॉक्टर को क्या नाम दिया जाए ? जमीन के भगवान या फिर ......... ! ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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