Breaking News
चौदहवी का चाँद हो या की आफ़ताब हो , जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो |
आज सदाबहार महान सुर के बादशाह मोहम्मद रफ़ी साहब की 41वीं पुण्यतिथि है | सावन के इस पवित्र महीने में उनकी यादें लोगों के बीच जहाँ उनके गीत व भजन से उन्हें रंगीन बनाता है , वहीं उनकी यादें भी दस्तक देती हुई उनकी जुदाई व विदाई की 41 साल का जीवन जो उनके बिना गुजारा गया याद दिलाता है | 41 वर्ष कैसे गुजर गए पता हीं नहीं चला ?
यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि - भले हीं रफ़ी साहब इस दुनियां में नहीं , फिर भी कोई ऐसा पल नहीं जब इस धरती पर उनकी यादें व सुर सजी न हो | हर एक नगमों के रूह में उनके होने का आभाष मिलता है | जब - जब कहीं संगीत सुनाई पड़ती है तो रफ़ी साहब की नशीली आवाज करोड़ों लोगों के दिलों पर अपने होने का दस्तक देती है |
मधुर आवाज के बादशाह जिनकी "सुर" गीत में जान डाल देने के लिए ऊपर वाले ने फुरसत में बनाई होगी | 1965 में भारत सरकर ने पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा था | दुनियां के दिलों पर राज करने वाले सबके चहेते गायक शालीन / सोबर / शर्मीले व्यक्तित्व के धनी मोहम्मद रफ़ी साहब जिन्हें "शर्दशाह ए तरन्नुम" भी कहा जाता था | जब उन्होंने गीत गाये थे - "परदेसियों से न अँखियाँ मिलाना" तो वे लोकप्रियता के शीर्ष पर पहुँच चुके थे | वैसे उन्होंने काफी हिट गाने दिए जिसे सुनकर लोग मुग्ध हो गए | आज के युवावर्ग भी इस सुर के दीवाने हुए जाते है |
"हुश्न वाले तेरा जवाब नहीं , तेरी प्यारी - प्यारी सूरत को किसी की नजर न लगे , ऐ गुलवदन , मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम , चाहूँगा मै तुझे , छू लेने दो नाजुक होठों को , बहारो फूल बरसाओ , मै गाऊं तुम सो जाओ , बाबुल की दुआएं लेती जा , दिल के झरोखे पे तुझको बिठाके , बड़ी मुश्किल है , खिलौना जान कर तुम तो मेरा दिल तोड़ जाते हो , हम को तो जान से प्यारी है , अच्छा हीं हुआ दिल टूट गया , पर्दा है पर्दा , क्या हुआ तेरा वादा वो कसम वो इरादा , आदमी मुसाफिर है , चलो रे डोली उठाओ कहार , मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया , दर्द दिल दर्दे जिगर" 40 के दसक से 80 तक के बीच कोई भी सीने कलाकार ऐसा नहीं , जो उनकी आवाज से पर्दें पर गाया न होगा |
मशहूर अभिनेता पृथ्वीराज कपूर , बलराज सहनी , भारत भूषण , मनोज कुमार , राज कपूर , शशि कपूर , रंधीर कपूर व कपूर परिवार के सारे अभिनेता ने इनकी आवाज का रस लिया है | वहीं गुरुदत , किशोर कुमार , दिलीप कुमार , परीक्षित सहनी , फिरोज कुमार , प्रदीप कुमार , राजेश खन्ना , विनोद खन्ना , राजेंद्र कुमार , विनोद मेहरा , सुनील दत्त , संजीव कुमार , संजय खान , तारिक हुसैन , देवानंद , जॉनी वाकर , जगदीप , जीतेन्द्र , आई० एस० जोहर , नविन निश्छल , गुलशन बावरा , महमूद आदि के आलावा मशहूर गायक किशोर कुमार के लिए भी सुर सजाये हैं |
शम्मी कपूर तो उनकी आवाज के इतने दीवाने थे और उनपर रफ़ी साहब की आवाज इतनी ज्यादा शूट करती थी कि वह उनके सिवा किसी को पसंद हीं नहीं करते थे | वैसे हीं राजेंद्र कुमार , दिलीप कुमार व धर्मेन्द्र ने भी इनके सिवा किसी दूसरी आवाज की कभी चाहत नहीं की |
इन्होने अपनी आवाज की मधुरता से समकालीन गायकों के बीच एक अलग पहचान बनाई | आगामी दिनों में कई गायकों को प्रेरित किया , जैसे - सोनू निगम , मोहम्मद अजीज एवं उदित नारायण आदि उल्लेखनीय है | आंकड़ा के अनुसार हम बता सकते है कि - मोहम्मद रफ़ी ने 26 हजार से ऊपर गीत गाये हैं , जिनमें हिंदी के आलावा भजन , गजल , देशभक्ति गीत , कव्वाली के आलावा दूसरी भाषा के गीत भी शामिल है | हिंदी सिनेमा के उच्चतम् गायकों में से मोहमद रफ़ी साहब को कहा जाता रहा है |
अपने शुरूआती दिनों में उन्होंने संगीतकार लक्ष्मीकांत - प्यारेलाल के लिए बहुत कम राशि में गीत गाये थे |
गीतों की रोयल्टी को लेकर लता मंगेशकर जी के साथ विवाद भी हुआ , जो काफी चर्चा का विषय रहा | चूकि रफ़ी साहब दरिया दिल इंसान थे , उन्हें गाने के रोयल्टी से कोई मतलब नहीं था | उनका कहना था कि - एक बार गाने का रिकॉर्ड हो गया , गाये हुए गाने का निर्धारित राशि मिल गई तो फिर अतिरिक्त पैसो की आशा व लालच नहीं करनी चाहिए | कहा जाता है और सच भी है - विवाद इतना आगे बढ़ गया था कि दोनों एक दूसरे के संग गीत गाना हीं छोड़ दिया और आवाज की जोड़ी टूट गई |
सालों बाद अभिनेत्री नर्गिस जी के कहने पर दोनों ने फिर साथ - साथ गाना शुरू किया और जेवेल थीफ ( Jewel Thief ) में गाना गाये |
इनका जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर में हुआ | बालकाल में हीं इनका परिवार लाहौर आ गया | संगीत से इनके परिवार वाले का कोई लेनादेना नहीं था | लेकिन रफ़ी साहब को गीत का नशा इस कदर चढ़ गया कि वह फिर रोके नहीं रुका | नशा कोई भी हो और सर चढ़कर बोले तो इस पवित्र नशे में समुन्द्र का तूफान हीं क्यूँ न हो ? ईश्वरीय शक्ति से वह भी तूफ़ान को तैरकर पार करा लेने की क्षमता पैदा कर हीं लेता है |
रास्ते से गुजरने वाले एक फ़क़ीर जो रोज हीं गीत गाते हुए सफ़र करते थे , रफ़ी साहब उनके पीछे - पीछे भागते और नक़ल कर गीत गाते रहे | इनकी नक़ल में अब्बलता को देखकर लोगों को इनकी भी आवाज भाने लगी | रफ़ी साब के बड़े भाई अपने दुलारे रफ़ी की रूचि देखकर उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास इन्हें संगीत शिक्षा लेने को कहा |
कुछ बाद हीं आकशवाणी लाहौर में प्रख्यात गायक अभिनेता कुंदनलाल सहगल प्रदर्शन करने वाले थे | उनको सुनने के लिए रफ़ी साहब को लेकर उनके बड़े भाई वहां पहुंच गए | बिजली गुल हो जाने की वजह से सहगल जी ने गाने से मना कर दिया | कहा गया है - ऊपर वाले हर किसी की मुरादें जरुरर पूरी करते हैं | अगर हौसला बुलंद हो तो रास्ते आसान हो जाते हैं और यहीं सच रफ़ी साहब के जिंदगी में दस्तक दे गया कि रफ़ी साहब के भाई आयोजक से निवेदन किया कि - भीड़ की व्यग्रता को शीतल करने के लिए रफ़ी को गाने का मौका दिया जाए और 13 साल की अवस्था में सहगल साहब की जगह गाने का खुबसूरत मौका मिल गया और यहीं मौका उन्हें आसमान पर सितारों के बीच जन्नत की सैर करवा दी |
प्रसिद्द संगीतकार श्यामसुंदर जी उनकी आवाज से प्रभावित होकर उन्हें अपने लिए बुला लिया |
तब रफ़ी साहब का प्रथम गीत एक पंजाबी फिल्म "गुल बलोच" से शुरू हुआ | रफ़ी साहब को उनकी किस्मत खींचकर 1944 में मुंबई की धरती पर खड़ा कर दिया | मुंबई सपनों की वह नगरी है जहाँ लोग आज भी अपनी किस्मत अजमाने आते है और भरपूर सोहरत पाते है | समुन्द्र से चाहे जीतनी भी मोती ले लो , दुनियां में लुटाओ , वह कम नहीं होता |
संगीतकार नौशाद ने फिल्म "पहले आप" में उन्हें गाने का मौका दिया और यहाँ से उनकी उड़ान की शुरुआत हुई | धीरे - धीरे इनकी ख्याति इतनी बढ़ गई की कलाकार स्वयं हीं कहने लगे कि - मेरे लिए रफ़ी साब ही गायेंगे | ख्याति तो मिली हीं , साथ हीं कई फिल्मफेयर अवार्ड लेने के बाद प्रसिद्धि हासिल कर रफ़ी साहब हज पर गए |
इसी बीच पंचम दा रफ़ी साहब को न पाकर उन्होंने अपने प्रिय गायक किशोर कुमार से गवाने का फैसला किया और उन्होंने गीत "रूप तेरा मस्ताना प्यार तेरा दीवाना" और "मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू" किशोर दा की आवाज में रिकॉर्ड करवाया | ये दोनों गाने बहुत हीं लोकप्रिय हुए और इस गाने के बाद अभिनेता राजेश खन्ना , निर्देशक एवं जनता के बीच लोकप्रियता बढ़ती हुई चली गई और किशोर कुमार जनता व संगीत निर्देशकों की पहली पसंद बनकर उभरते चले गए |
किशोर दा का ऊपर उठना और रफ़ी साहब का रुक जाना आरम्भ हो गया | लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने कई हिट गाने दिए , जैसे - ये दुनियां ये महफ़िल मेरे काम की नहीं , ये जो चिलमन है , तुम जो मिल गए हो तो ये लगता है , क्या हुआ तेरा वादा" के लिए इन्हें जीवन का छठा व अंतिम फिल्मफेयर अवार्ड मिला |
कहा जाता है - इस धरती पर जो भी आया है और जिसकी भी चाहत रही है , उसे सबकुछ मिला है | मगर सबका भाग्य है इस धरती पर जहाँ समय पर भाग्य से ज्यादा कुछ भी नहीं मिलता , लेकिन जो लिखा होता है वो कोई छीन भी नहीं सकता | रफ़ी साहब के भाग्य में जितना लिखा था वो समुन्द्र उन्हें मिल गया ,अब बारी थी किशोर कुमार कि | क्यूंकि श्रृष्टि का यह नियम है कि अपने खजाने से प्रकृति हर किसी को सफलता की चरम पर पहुंचाती है |
आजादी के दौरान उन्होंने भारत में हीं रहना पसंद किया था और बेगम विकलीस से निकाह की | रफ़ी साहब के 7 संतान हुए - 4 बेटे व 3 बेटियां | लेकिन अपार दुःख तब हुआ और दुनियां के वह सितारे जो दिलों की धड़कन बनकर राज करते थे का निधन लोगों को चौका देने वाला हुआ | उस दिन कई लोगों के घर में चूल्हे तक नहीं जले और रफ़ी साहब ने सबको इस धरती पर तड़पता हुआ छोड़कर इस दुनियां से सफ़र कर गए | लेकिन आज भी वह अपनी आवाज की जादुई मिठास के सहारे लोगों के व्याकुलता को शांति / शीतल प्रदान करते हैं |
रफ़ी साहब का निधन ह्रदय गति रुक जाने के कारण हुई थी , इसलिए लोग अचानक विचलित हो गए | स्वाभाविक मृत्यु इतनी पीड़ादायक नहीं होती जो एक उम्र की दहलीज पर हो | लेकिन जहाँ लोगों ने संग चलने की चाहत दिल में बसाये हो , वहां अचानक अपने प्रिय का साथ छुट जाना बहुत हीं दुखदाई होता है | इसलिए यह घटना बहुत हीं क्लेश भरा था जो लोगों के दर्द व पीड़ा को समेटे कहीं न कहीं आज भी कैद है |
31 जुलाई 1980 को वो इस दुनियां को अलविदा कर कभी न मरने वाले गीतों को अपनी आवाज में पिरोकर समर्पित कर अलविदा कह गए |
"कर चले हम फ़िदा जाने तन साथियों , अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों" और यहीं आवाज लोगों को यह दुनियां समर्पित कर अपने आगे की उड़ान भरकर किसी और दुनियां में सफ़र कर गए , जो आज भी सदैव याद दिलाता है और कभी न मिटने वाला नशा में बेहोश होते आज के युवा पीढ़ी के दिलों पर दस्तक देते हुए बोलता है | आदित्या , एम० नूपुर की कविता की एक लाइन - कोई ऐसा पल तुम याद दिला दो जब तुम्हें हम याद किये न हो और कोई ऐसा कल तुम याद दिला दो , जब तुम्हारी याद में हम रोये न हो |
ये गीत आज भी कहीं न कहीं कसक देती है | वहीं देशभक्ति गीत सुनकर शहीदों की याद ताजा कर दर्द महसूस कराते हैं |
ओ दुनियां के रखवालों , ये है बम्बे मेरी जान , सर जो तेरा चकराए , हम किसी से कम नहीं , चाहे मुझे तू जंगली कहे , मै जट यमला पगला , चढ़ती जवानी मेरी , हम काले है तो क्या हुआ दिलवाले है , राज की बात कह दू तो , ये है इश्क इश्क , पर्दा है पर्दा , हम लाये है तूफ़ान से किश्ती निकाल के , अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों , ये देश है वीर जवानों का , अपनी आजादी को हम , नन्हें - मुन्हें बच्चे तेरी मुठ्ठी में क्या है , रे मामा रे मामा रे , चक्के पे चक्का , मन तड़पत हरी दर्शन को आज , सावन आये या न आये , मधुवन में राधिका , मन रे तू काहे को धीर धरे , आज मेरे यार की शादी है ने काफी धूम मचाया |
आज भी कई घरों मे उनकी पुण्यतिथि मनाई जा
रही है , कभी न मिटने वाली यादों के लिए , जो याद अमर है और सदियों सदी
रहेगा एक इतिहास बनकर आने वाले पीढ़ी के दिलों में | क्यूंकि मोहम्मद रफ़ी
जैसे हीरे की रौशनी सदैव दुनियां में जगमगाती रहेगी उनके सुर के साथ |
......... ( फिल्म फीचर :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
रिपोर्टर