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महिला कांस्टेबल ने अपना जेंडर चेंज कराने के लिए सरकार से इजाजत मांगी थी , आखिरकार 3 साल बाद मिल हीं गई स्वीकृति | लेकिन ऐसा क्यूँ है कि - आज महिला पुरुष बनने की होड़ में लगी हुई है और पुरुष महिला ? क्या भगवान के फैसले और चुनाव से इंसान संतुष्ट नहीं !
प्रकृति से छेड़छाड़ मानव का स्वभाव बना , जंगल कटे , पहाड़ छटे , समुन्द्र पटे फिर भी इंसान संतुष्ट नहीं | वर्षो पहले विज्ञान ने चमत्कार किया और ईश्वर की बनाई गई प्रस्तुति पर दिमाग लगा दिए गए | उस वक्त यह एक इक्ताफाक हो सकता है , परन्तु आज जेंडर चेंज करने की लालसा लोगो में घर कर रहा है , जो आने वाले कल में एक जोरदार टक्कर देने की तैयारी का एक दौर कहा जा सकता है |
कई शो बने , फिल्म व सीरियल बना , जिसमे लगातार पुरुषों को महिला बनाकर प्रस्तुत किया गया और अब यह प्रस्तुति इंसान की ईच्छा में जागृत होती दिखाई पड़ रही है | जैसी सोंच वैसी परिस्थिति , यहीं बात सब पर लागू होता है |
यह घटना मध्यप्रदेश की है , जहाँ गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉक्टर राजेश राजौरा ने मीडिया को बताया है कि - MP का यह पहला केस है , जिसमे सरकार ने अपने किसी कर्मचारी को जेंडर चेंज करने की अनुमति दो है | कांस्टेबल का नाम अभी बताना उचित नहीं है , यह MP के जिले में कार्यरत है |
गृह विभाग के अनुमति मिलने से पूर्व इसके लिए कई प्रक्रिया पुरे करने होते है |जब कोई सरकारी कर्मचारी को अपनी पसंद के जेंडर में जीने की इच्छा जागृत होती है , तो सर्वप्रथम अपने विभाग की स्वीकृति के लिए कदम बढ़ाना होता है | सामान्य व्यक्ति या महिला सीधा कलक्टर के पास , उसके बाद चिकित्सकीय टीम इसकी जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी , फिर गजट में प्रकाशन होगा , उसके बाद अखबार में इसका इश्तहार भी प्रकाशित करवाना आवश्यक है , तब जाकर गृह विभाग की मोहर लगाईं जाती है |
आइडेंटिटी डिस आर्डर जिसे विपरीत लक्षण कहा जा सकता है | इस आदत को 10 से 12 साल के बच्चो में देखा जा सकता है , जिसमे वे महिला होती हुई भी पुरुष जैसे बर्ताव में दिखाई पड़ेंगी या फिर पुरुष महिला लक्षण में | यह आचरण देखकर पता लगाया जा सकता है कि - आरंभिक दौर से हीं कहीं न कहीं चुक हुआ है | इस ऑपरेशन में लगभग 6 / 7 घंटे का समय लगता है , जिसमे जननांग , ब्रेस्ट और चेहरे की सर्जरी की जाती है | इसके अतिरिक्त उन्हें 1 साल या ज्यादा या तमाम उम्र के लिए हार्मोन्स थिरेपी लेने की जरुरत पड़ती है |
ऑपरेशन के बाद सारी गतिविधि वहीं रहता है , वह सिर्फ माँ नहीं बन सकती , मगर सेरोगेसी सिस्टम को अपना सकती है |
आरंभिक दौर से हीं इस कांस्टेबल का स्वभाव महिला बनने के अनुकूल न था | कांस्टेबल बनने के बाद उन्हें कमी खली , फिर विभाग में इन्होने जेंडर बदलाव का आवेदन दिया | राष्ट्रिय स्तर के मनोचिकित्सको की तरफ से भी की गई पुष्टि का आधार सशक्त बना , जिससे महिला की बीमारी से उसे शरीर व लैगिंग स्वभाव फिसमैच लगता था |
कागजी प्रक्रिया में लगभग 3 साल लग गए , फिर इजाजत मिली |1 दिसंबर को इन्हें सरकार ने अपने अनुसार जीने की स्वतंत्रता पर मुहर लगा दिया | अब ये अपना दौर चेंज करेंगी , जिसमे अन्य लोग कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकते |
देखा जाए तो भारतीय संस्कृति / सभ्यता और विचारो में कितना अंतर आया और आ रहा है | माना परिवर्तन जिंदगी का नाम है , मगर ईश्वर द्वारा बनाई गई इंसानी रूप से छेड़छाड़ करना क्या उचित है ! आज कुछ लोग चाहते हुए भी इस ओर कदम नहीं बढ़ा पाते , उन्हें शर्म घेर लेता है चारो तरफ से | जो विचारो से आधुनिक है वे लोग चेंज की तरफ कदम बढ़ा लेते है , मगर आने वाले वर्षो में इसकी होड़ लग जायेगी | यह जरुरत बने या फिर शौक कुछ कहा नहीं जा सकता | मगर आज जिस तरह आँखों का उपचार या फिर शरीर के किसी भाग्य का लोग सरलता से उपचार कराते है , उसी तरह लोग जेंडर चेंज कराने के लिए भी डॉक्टर के दरवाजे पर दस्तक देना शुरू कर देंगे , जिसमे अब ज्यादा समय नहीं लगने वाला और यह भीड़ उमड़ने वाला है सबसे ज्यादा महिलाओं की तरफ से |
मानसिक प्रताड़ना और शारीरिक पीड़ा से मुक्ति पाने का सरल उपाय विज्ञान ने ढूँढ निकाला है | बस हाथ से फिसलता है सिर्फ धड़कन की प्रक्रिया जो अभी तक उनके पास नहीं आ पाया है | वैज्ञानिक "दिल" नहीं बना सकते , भले हीं शरीर का कितना भी बदलाव करने का शोध सफल कर ले | ..... ( न्यूज़ / फीचर :- आदित्या , एम० नूपुर )
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