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महाभारत किसने लिखी ? आप कहेंगे - महर्षि वेद व्यास जी ने | परन्तु अगर आपसे यह कहा जाए कि - महाभारत को लिखवाने वाले कौन है ? जिन्होंने अपनी सोंच / शब्दों को वेद व्यास जी को समर्पित किया , तो आप सोंचने पर मजबूर हो जायेंगे | साथ हीं आपसे यह पूछा जाए कि - इस महाकाव्य को लिखने में कितने महीने या साल लगे होंगे ? तो शायद इसका जवाब आपके पास नहीं होगा |
सबसे पहले हम आपको बता दे - इस महाकाव्य को लिखने में मात्र 10 दिन लगे है | जानकारी के आधार पर - महाभारत जैसे धर्मग्रन्थ को लिखना महर्षि वेद व्यास जी के वश की बात नहीं थी | इसलिए उन्होंने बुद्धि के देव भगवान श्री गणेश की आराधना करना आरम्भ किया और गणपति से अपनी मुरादों को पूरा करने का आशीर्वाद माँगते हुए महाभारत लिखने की प्रार्थना की |
लेकिन इससे पहले हम आपको एक जानकारी और देना चाहेंगे जो महाभारत ग्रन्थ से जुड़ा है | इनकी वह कहानी जिसमे लोग प्रतिवर्ष गणपति को धूमधाम से अपने घर लाते है , प्रतिदिन मिष्ठान व पसंदीदा पकवान खिलाते है , आखिर ऐसा क्यूँ है ? इसके पीछे का रहस्य भी जानना जरुरी है |
सनातन धर्म वाले तो गणपति की पूजा करते हीं है | परन्तु महाराष्ट्र व गुजरात जैसे कुछ प्रान्त और भी है जहाँ हर धर्म वाले गणपति की प्रतिमा को गणेश चतुर्थी के दिन स्थापित करते है और 10 दिनों तक बड़े हीं धूमधाम से यह दिन उत्सव के रुप में मनाते है |
यह सच है कि - महर्षी वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है , परन्तु सहयोग किया है भगवान श्री गणेश ने | महर्षि जब महाभारत लिखने के लिए प्रार्थना कर बैठे तो इनकी भावना में इतना जुड़ाव व मिठास था कि भगवान प्रसन्न होकर उनके आग्रह को मान दिया और अपनी सहमति जताते हुए लेखन का कार्य आरम्भ किया |
रात - दिन लेखन कार्य करते रहने से भगवान को थकान हो जाया करती थी | साथ हीं लेखन कार्य के दौरान पानी पीना भी वर्जित था | समय बढ़ने के साथ गणपति के शरीर का ताप बढ़ गया और वेद व्यास जी को यह लगने लगा कि यह महाकाव्य कहीं अधुरा न रह जाए | इसलिए उन्होंने भगवान के तापमान को काबू में रखने के लिए शरीर पर मिट्टी का लेप लगाकर उन्हें पानी में डाल दिया और भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी तिथि को उनकी पूजा की |
अब महाकाव्य लेखन की गति बढ़ती गई और 10 दिनों तक पूजा भी चलता रहा और अनंत चतुर्दशी के दिन यह कार्य संपन्न हो गया , जिसके बाद महर्षि वेद व्यास महाभारत जैसे महाकव्य के रचयिता बन गए | 10 दिनों तक उन्होंने भगवान गणेश को उनकी मनपसंद का आहार व मिष्ठान खिलाते रहे | इसी दिन से गुरु शिष्य परंपरा के अनुसार विद्या अध्यन का शुभारम्भ किया गया | इस दिन बच्चे डंडा बजाकर खेलते भी है , वहीं महिला व पुरुष भी रेशमी कपड़ा पहन श्रृंगार करके उनके पास डांडिया खेलते है |
गणपति को रिद्धि - सिद्धि व बुद्धि का दाता माना जाता है | वैसे प्रत्येक माह की कृष्ण चतुर्थी को गणेश चतुर्थी एवं शुक्ल चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते है | हालाकि प्रत्येक मास की चतुर्थी के अपने अपने नाम की विशेषता है , परन्तु एक बात तो कहा जा सकता है कि - गणपति को प्रथम पूज्य कहा गया है ,क्यूंकि हिन्दू धर्म वाले किसी शुभ कार्य करने के पहले गणपति की पूजा अवश्य करते है |
गणपति को सिर्फ भावना चाहिए , इनके मनपसंद मोदक , मोतीचूर लड्डू और केला के साथ दूब चढ़ा दे तो हर मनोकामना पूर्ण होती है | जिस तरह महर्षि वेद व्यास ने इनकी पूजा / आरधना कर महाभारत जैसा महाग्रंथ लिखकर रचयिता बन गए | ........ ( अध्यात्म की जानकारी :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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