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"जीये तो जीये कैसे बिन आपके , लगता नहीं दिल कहीं बिन आपके" यह लाइन साजन फिल्म के गीत का है और ऐसा तभी होता है जब प्यार की उंचाई हद से गुजर जाता है और दोनों एक - दूसरे पर समर्पित हो जाने की बातें सोंचकर इस रिश्ते को एक नाम "विवाह" देना चाहते हैं |
प्यार एक बड़ा हीं खुबसूरत व निःस्वार्थ शब्द है | यह ढाई आखर का एक अधुरा शब्द जिसकी तुलना व मिशाल शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता | क्यूंकि सरहद पार भी इसका अंत नहीं और यह अनंत प्यार का आरम्भ किसी को भी किसी के साथ हो सकता है | आज लड़की से लड़की या लड़का से लड़का का सम्बन्ध सुन लेने , पढ़ लेने या फिर देख लेने की बातें सिर्फ कल्पना नहीं ! यह हकीकत बनकर अब आम हो चूका है | इसलिए अब इसमे कोई चौकाने वाली बात रही नहीं |
उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में ऐसा हीं एक मामला सामने आया है | जहाँ दो लड़की एक - दूसरे से प्यार कर बैठी और अंजाम शादी तक पहुँच गया , वह भी अधिकार पत्र के साथ | एक लड़की जो लड़का बनी इसने अपना नाम - पूजा यादव से अंकित यादव कर लिया |
फोटो :- नवभारत टाइम्स के सौजन्य से
अब विस्तार से :-
गुलरिहा थाने में एक पिता ने अपनी बेटी के भाग जाने का मामला दर्ज कराया है | साथ हीं फरुर्खाबाद के रहने वाले अंकित यादव के खिलाफ मामला दर्ज किया कि - वह मेरी बेटी को बहला / फुसलाकर भगा ले गया और उसे अपने साथ रख लिया है | अंकित यादव पर दुष्कर्म करने का भी आरोप लड़की के पिता ने दर्ज कर दिया है | मगर यह सोंच का विषय है कि अंकित लड़का नहीं लड़की है |
अंकित यादव की उम्र 30 वर्ष है | उसके घर में उसकी माँ और छोटी बहन साथ रहती है | पिता की मृत्यु हो जाने से घर की सारी जिम्मेदारी पूजा यादव के सर पर आ गिरा | लेकिन हौंसला न हारते हुए , वह इसे अपना फ़र्ज़ मानते हुए स्वयं को संभलने व परिवार को संभालने की कोशिश में रात - दिन पुरजोर मेहनत करने लगी | कहा जाता है कि - मेहनत व कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती | यहीं पूजा के साथ भी हुआ , उसकी कोशिश हार नहीं बल्कि जीत में परिवर्तित होती चली गई |
इसी दौरान पूजा की दोस्ती उस लड़की से हुई और दोनों का स्वाभाव एक - दूसरे को करीब ला दिया | पूजा की उम्र 30 वर्ष है और वह लड़की की उम्र 27 | दोनों की उम्र व स्वभाव लगभग एक सामान था , जिससे वो एक - दूसरे के करीब आती चली गई | दोनों पूर्ण रूप से बालिग़ है और जीवन का निर्णय लेने की हकदार भी |
पूजा और यह लड़की एक साथ हीं काम करती थी | पूजा स्वयं को एक लड़की होते हुए भी कभी स्वयं को लड़की नहीं मानते हुए लड़के जैसा हीं रखरखाव रखती रही है | वह पूर्व से हीं अपने लिंग परिवर्तन कराने की बात भी करती रही है | इसी बीच पूजा की दोस्ती इस लड़की से हो गई | दोस्ती प्यार में कैसे बदल गया ? यह दोनों नहीं जानते और दोनों ने साथ रहने का फैसला कर लिया | यहाँ तक कि शादी के लिए दस्तावेजों में पूजा यादव ने अपने नाम में परिवर्तन कर पूजा की जगह अंकित करवा लिया और वह अंकित यादव बन गई | शारीरिक रूप से भी वह लड़का बनने के लिए लिंग परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू कर दी है |
दोनों ने फरुर्खाबाद के एक मंदिर में विवाह कर लिया | यह विवाह रजिस्टर्ड एग्रीमेंट के साथ है | अब दोनों एक अधिकार से पति - पत्नी बनकर एक साथ रहने लगे | दोनों पढ़े - लिखे हैं , इसलिए कानून से छेड़छाड़ तो करते नहीं ! क्यूंकि जीतने वाले सदैव सुमार्ग की तरफ हीं बढ़ते है | ऐसे लोग न कभी रुकते है और न कभी गलत राह पर चलते है | इस बीच लड़की के परिवार को पता चला तो उनके होश उड़ गए और उन्होंने थाने में इस बात की शिकायत दर्ज करा दी | लड़की के पिता का आरोप है कि - अंकित ने मेरी बेटी को बहला - फुसलाकर बिना शादी किये अपने साथ रख लिया है और मेरी बेटी के साथ दुष्कर्म किया जा रहा है |
पिता के इस शिकायत पर पुलिस ने केस दर्ज कर लिया और ट्रांसजेंडर युवक अंकित यादव को पकड़कर गोरखपुर ले आयी | उसके साथ उसकी पत्नी बनी लड़की भी आ गई | सूचना के आधार पर - इंस्पेक्टर बिनोद अग्निहोत्री के अनुसार लड़की का बयान , अधिनियम 164 के तहत कराया जाना है , इसके बाद आगे की करवाई की जायेगी | क्यूंकि अंकित यादव ट्रांसजेंडर है या कुछ और यह तो कोर्ट तय करेगी | दोनों परिवार कोर्ट का नतीजा आने के इंतज़ार में है |
अंकित बने पूजा यादव को अपना लिंग परिवर्तन कराने में 5 - 7 लाख रुपये का खर्च आने वाला है | ऐसे में उसके पास सिर्फ प्राइवेट जॉब है , जिसकी मेहनत से वे धन इकठ्ठा करने में लगी है | पूजा की कुछ मित्र व शुभचिंतक ने उसे अपना योगदान दिया है , साथ हीं इस बात की जानकारी जब स्वयं सेवी संस्था "गालीबंद" के संस्थापक मनीष कुमार को लगी ( यह संस्था मानवाधिकार और ट्रांसजेंडर अधिकारों पर कार्य करती है ) तो उन्होंने अपनी टीम के साथ वहां पहुंचकर सच्चाई का पता किया | सच्चाई पता चलने के बाद पूजा को अंकित बनने हेतु सहयोग के लिए संस्था ने भी अपना हाथ बढ़ा दिया है | अब पूजा अकेली नहीं , उसके साथ एक संस्था भी खड़ी है सहयोग के लिए |
शायद ! कोर्ट का नतीजा इन दोनों के पक्ष में हीं स्वकृति भरा हो और दोनों को अधिकार मिल जाए , एक - दूसरे के साथ जीवन जीने का | क्यूंकि अगर ऐसी पद्धती जिसमे लिंग परिवर्तन कराने की स्वीकृति है और प्रावधान , तभी अपने भारत में इस तरह की प्रक्रिया अपनाये जा रहे हैं | अगर ये जुर्म होता तो अपने भारत में खुलेआम लोग अपना लिंग परिवर्तन कराने की सोंचते भी नहीं | कानून हमें इस बात की इजाजत देती है , तभी मेडिकल पद्धति अपनाते हुए डॉक्टर ऐसे केस अपने हाथ में लेते है और दूसरी बात कि - लड़की के पिता को क्या यह मालूम नहीं ? कि उनकी बेटी की उम्र 27 वर्ष है और सरकार और कानून के अनुसार इस उम्र की बेटी को अपने हक़ के विषय में सोंचने का पूरा अधिकार मिलता है , जिसमे समाज व देश का क्षति शामिल न हो |
प्यार तो प्यार होता है , सच्चे प्यार में कोई स्वार्थ नहीं होता | लिंग परिवर्तन का यह पहला मामला नहीं और न हीं आखिरी है | लड़की से लड़की की शादी और लड़का से लड़का की शादी भी पहला मामला नहीं है और न आखिरी | कुछ लोग हिम्मत जुटा लेते है और कुछ लोग हिम्मत नहीं जुटा पाते और अपनी इस दोस्ती को बरकरार रखते हुए शादी भी दूसरी जगह कर लेते है | जिससे कि उनकी जीवन की रुपरेखा भी बदल जाती है | इसलिए कि एक म्यान में दो तलवार नहीं रखा जा सकता , मगर यह उचित नहीं ! क्यूंकि प्रकृति से छेड़छाड़ ठीक नहीं और न हीं ईश्वर के दिए गए शरीर के लिंग परिवर्तन को नाकारा जाना भी उचित नहीं !
इसे सौभाग्य कहा जाए या फिर दुर्भाग्य कि हमारा विज्ञान इतना आगे पहुँच चूका है - जिसने हमारी संस्कृति को भी काफी हद तक ले डूबा | विज्ञान जरुर एक नए आयाम के लिए आगे बढ़ता है , जिससे देश के लोग तरक्की करे | मगर यह तरक्की हमारे देश को आगे बढ़ने के उद्देश्य से कहीं न कहीं एक बेरियर बनकर खड़ा है | ऐसा हम इसलिए लिख रहे है कि - जहाँ भी स्वतंत्रता की बातें आएगी , वहीं पर रुकावट खड़ी होगी | क्यूंकि हर जगह "जीयो और जीने दो" वाली बातें धरातल पर खड़ी नहीं उतरती | इसी विषय पर आधारित हमें एक फिल्म याद या रही है -
फिल्म "शुभ मंगल ज्यादा सावधान" जिसमे आयुष्मान खुर्राना एक लड़का होते हुए भी , एक लड़के से हीं प्यार कर बैठे थे और अपने प्यार की खातिर हद से गुजर गए और अन्तोगत्वा परिवार को झुकना हीं पड़ा था | खैर .... ये तो फिल्म थी कुछ घंटे की | मगर इस फिल्म ने न जाने कितनो को यह सबक और सीख दे दिया , अपने मन से जिंदगी जी लेने की | साथ हीं यह फिल्म एक प्रशिक्षण केंद्र भी बना , जिसे देख हिम्मत न करने वाले बच्चे भी अपने परिवार से आज बगावत करने पर उतर जाते हैं |
खैर समाज किस बात की इजाजत देती है और किस बात पर नहीं ! यह मायने नहीं रखता | मायने रखता है कोर्ट का निर्णय | जिसमे कोर्ट की तराजू बच्चों की तरफ झुकता है या परिवार की तरफ , यह तो आने वाला समय हीं बताएगा | लेकिन यहाँ तो इन्साफ का घर है , यह इन्साफ की तरफ झुकेगा | यह जानने के लिए सभी को इंतज़ार करना पड़ेगा कि तराजू का पलड़ा किसकी तरफ भारी पड़ा ! ....... ( न्यूज़ / फीचर :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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