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यूँ तो सूर्यदेव पर सुबह सवेरे हीं जल अर्पित किया जाता है वहीं आज सूर्यदेव को संध्या के समय जलार्पण करने का ख़ास पर्व छठ है जहाँ लाखो श्रद्धालु आज के दिन सूर्यदेव को याद करके किसी भी जल में अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं |
वैसे तो गंगा , यमुना , सरस्वती , मंदाकनी और गोदावरी ये नाम बड़ा हीं प्रचलित है | अचानक किसी से नदियों के नाम पूछ लिए जाए तो बखूबी वे उपरोक्त नाम हीं आसानी से ले लेंगे |
आज हम आपको सूर्यदेव की पुत्री माँ तापती की महत्ता के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं | हालाकि हम कुछ बाद स्वयं भी उस स्थल पर जानेवाले है जहाँ साक्षात वहां के पवित्र जल से आपको रूबरू करायेंगे और कुछ ख़ास बातें जो वहां रहनेवाले लोग जानते हैं , उस श्रद्धा को भी उनकी जुबानी हम सुनायेंगे |
यह वर्णन हम आपको जानकारी के आधार पर दे रहे हैं , आपने पढ़ा या सुना होगा | जिस कदर महाकाल के दर्शन से आकाल मृत्यु नहीं होती उसी प्रकार शास्त्र में यब बात अंकित है कि अनजाने या किसी गलती से किसी मृत शरीर की हड्डी तापती की जल में प्रवाहित हो जाए तो उस मृत आत्मा को मुक्ति मिल जाती है | आकाल मृत्यु का शिकार हुई आत्मा , प्रेत योनी से मुक्त होकर स्वर्ग के दरवाजे तक पहुँच जाती है |
बिना विधि विधान के कोई भी व्यक्ति तापती नदी के बहती धारा में किसी मृत व्यक्ति के शान्ति के लिए उन्हें याद कर हाथों में जल लेकर कामना करे तो उस व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है | तापती को ताप , पाप , अभिशाप और आतंक का विनाश करने वाली आदिगंगा कहा जाता है |
भगवान सूर्य ने अपनी ताप को कम करने के लिए तापती को धरती पर भेजा था | इनके जल में वो असर है और यह वहीं कुंड है जहाँ स्नान करने के बाद नारद मुनि को कुष्ट रोग से मुक्ति मिली थी इसलिए इन्हें तापनाशनी , सुर्यतन्या कहा गया है |
लोग इस बात से अनभिज्ञ होंगे सदैव नारायण नारायण की रट से नारद कुष्ट रोग से कैसे ग्रसित हो सकते है ? तो पाप का भोग किसके रोके रुका है | नारद मुनि ने तापती पुराण को चुराया था इसलिए वे शारीरिक रूप से पीड़ित हुए |
सूर्यदेव के प्रकोप से कौन परिचित नहीं और शनिदेव के साढ़े साती की भय से लोग थर थर कांपते है |शनिदेव की बहन हीं तापती है जिन्हें आदिगंगा के नाम से जाना जाता है , ये मुक्ति का सर्वोत्तम माध्यम है | साढ़े साती की काट इस जल में आसानी से हो जाता है |
सूर्य और चन्द्रमा दोनों एक दुसरे के विरोधी है ऐसे में दोनों की पुत्रियों का अनोखा मिलन आज भी श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है जहाँ प्रतिवर्ष लाखो संख्या में श्रद्धालु स्नान कर पूण्य के भागी बनते हैं | पूर्णा नदी भैंसदेही नगर के पश्चिम दिशा में स्थित काशी तालाब से निकली है , यह चंद्रदेव की पुत्री है और सूर्य पुत्री तापती की परम सखी | दोनों का मिलन काशी में होता है जहाँ महायज्ञ किया जाता है है |
गंगा नदी में चिरकाल तक स्नान , नर्मदा के दर्शन और माँ सरस्वती के संगम में जल का पान करने से जिस फल की प्राप्ति होती है वह फल माँ तापती के स्मरण मात्र व जल स्पर्श से प्राप्त हो जाता है | यह जल जीवित और मृत दोनों के लिए एक वरदान है | तापती की निर्मल धाराएँ बुराहनपुर जिले से होते हुए महाराष्ट्र की तरफ जाती है |
राजा दशरथ को श्रवण कुमार के माता - पिता ने श्राप दिया था कि उनकी मृत्यु भी पुत्र मोह में होगी और हुआ भी यही | श्रीराम के वनवास के बाद राजा दशरथ की मृत्यु उनके जुदाई का असर दिखला गया | राजा दशरथ ने श्रवण कुमार की अनजाने में हीं सही हत्या कर दी थी जिसके कारण उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हुई | मान्यता व शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र के जीवित रहते हुए अन्य पुत्र का मुखाग्नि देना या क्रियाक्रम करना फलदाई नहीं माना जाता है |
भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भलीभांति इस बात से परिचित थे | उन्होंने अपने अनुज श्री लक्ष्मण और माता सीता की उपस्थिति में पितरों एवं अपने के तर्पण कार्य तापती नदी के तट पर हीं किया था | इन्होने भगवान विश्वकर्मा की मदद से बारह लिंगो की आकृति तापती के तट पर स्थित चट्टानों पर उकेरकर उनकी प्राण प्रतिष्ठा की थी , फिर राजा दशरथ की आत्मा को इसी नदी के तट पर शांति मिली थी और वे स्वर्ग की तरफ सिधारे | वेद पुराणों में इसका विशेष उल्लेख मिलता है , कई ऋषियों ने इस तट पर तप किया है |
तापती का जन्मस्थल मुलताई में है | इनका विवाह संवरण नामक राजा के साथ हुआ था , ये राजा वरुण देवता के अवतार थे |
तापती गंगा नर्मदा नदी के बाद भारत की पश्चिम की तरफ बहनेवाली दूसरी सबसे बड़ी नदी है | पूर्व से पश्चिम की तरफ बहनेवाली यह नदी हड्डियों को गला देने की क्षमता रखती है | इस नदी में दीपदान , पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व रहा है | यह अरब सागर में गिरने से पहले पश्चिम की तरफ बहती है |
नदियों में जो शक्ति थी , वह क्यूँ थम सी रही है ? नदियों को सिर्फ अपनी जरुरत न समझे , यहाँ पर अपनी आस्था को प्रगट करे मिलेगा भरपूर आशीर्वाद |
आज आस्था का पर्व छठ से पूर्व के महीने में नदियों की हालत को देखिये तो रूह काँप सा जाता है | कितनी गन्दगी भरी है नदियों में , छठ के करीब आते हीं सफाई अभियान शुरू हो जाता है क्यूंकि यहाँ पर इंसान की जरुरत पूरी होनी है , जल चढ़ाना है सूर्यदेव पर |
वो ज़माना याद कीजिये जब इसी जल से लोग मिठाई व पकवान छान लिया करते थे | यही नहीं जल में डूबकी लगाने के बाद वे जरुरत के अनुसार धन भी प्राप्त कर लिया करते थे | आज भी वो शक्ति नदियों में मौजूद है , जरुरत है बस अपनी श्रद्धा को दर्शाने का | आप इस बात को महसूस कीजिये - सूर्य की गर्मी को भला कौन बर्दाश्त कर सकता है ! गर्मी इंसान व हरेक चीज को जलाकर भष्म कर देता है मगर गंगा में इसका असर नहीं होता | सूर्य के ताप को यहीं पर आकर शांति मिलती है तो फिर इंसान के लिए तो नदी एक वरदान है जिसे हम मुक्ति का एक धाम कह सकते है |
छठ के उषाकाल पर्व पर सिर्फ बिहार ही नहीं देश विदेशों के लोग इस दिन सूर्यदेव पर दूध अर्पण करते हैं | सूर्य की पुत्री माँ तापती को भी याद करने का आज मुख्य दिन है | हम उन्हें स्मरण करके अपनी श्रद्धा उनके चरणों में अर्पण कर रहे है , श्रद्धालुगण आप भी कीजिये | ........ ( अध्यात्म फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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