Breaking News
भारत में होली के त्यौहार का इतिहास हजारो साल पुराना है जहाँ लोग अपने तन को रंगों से भिगो देते हैं | खुशियों के रंगों के बौछार के आगमन को लोग नए साल का दस्तक व संकेत भी मानते है | मगर ये सारी खुशियाँ उनके लिए है जिन्हें समाज के ठीकेदारों ने अपनी मान्यता का मोहर लगा दिया | हाँ धीरे धीरे इन ठीकेदारो की मान्यता का पिलर जर्जर होकर ध्वस्त होता दिख रहा है | आज की तारीख में भी कई बदलाव आये और आ रहे है , इसलिए कि खुशियों पर सबका हक़ है | जिस तरह हवा , पानी , सूर्य का नूर और रात की पूर्णिमामयी चांदनी को बांटा नहीं जा सकता , यह सबके लिए है | ठीक उसी तरह अब बहुत सारी सामाजिक संस्थाओं ने इन ठेकदारो के नियम , कानून और प्रथाओं को चकनाचूर करने में कोई कोताही नहीं बरती |
होली के दिन दिल खिल जाते है रंगों में रंग मिल जाते हैं , मगर इन रंगों से हजारो साल वंचित रही विधवा महिलायें |
कुछ साल से वृन्दावन की धरती पर रंगों के त्यौहार में विधवा महिलाए भी सम्मलित होती है | आज होलिका दहन का कार्यकर्म किया जाना है | वहीं बीते मंगलवार को वृन्दावन में दो हजार से कहीं ज्यादा विधवा बहनों व माताओं ने अपनी सफ़ेद रंग वाली लिवास को सतरंगी आभा से नहला दिया | जमा दिए एक दूसरे पर रंग और मग्न हो श्री कृष्णा पर फूल और गुलाल चढ़ाते हुए होली के इस उमंग में रंग भर दिया |
कान्हा का जय जयकार करते लोग झुमने लगे | इस पावन अवसर पर महिलाओं ने फाल्गुन गीत गाया और होली की मस्ती में डूब गया सारा आलम | यह होली के आगमन का दस्तक था |
इस शुभ कार्य को किया है "शुलभ इंटरनेशनल संस्था" ने | जिन्होंने होली के इस अवसर पर रंग व गुलाल की बरसात करवा दी |जहाँ विधवा बहनों व माताओं को आना पड़ा और वे शामिल हुई श्री कृष्ण के रास भक्ति रंग में और स्वयं को रंग लिया | इसे कहते है आई होली आई रे , जहाँ सभी का मन पुलकित हो जाए | बच्चा , बूढा , जवान , विधुर और विधवाएं सब के सब एक रंग में रंगीन बन होली की आभा बिखेरते हुए नजर आये जिसे देखकर दिल से निकलता है - वाह !
किसी शायर ने कई दशक पूर्व गीत लिखे थे जिसका कुछ लाइन विधवा महिलाओं पर अंकित था - "अपनी अपनी किस्मत है ये कोई हँसे कोई रोये , रंग से कोई अंग भिगोये रे कोई अंसुओं से नैन भिगोये" | यह गीत होली का है | मगर वहीं सुलभ संस्था ने विधवा महिलाओं के लिए भी खुशियों भरा रंगीन गीत लिख डाला है जहाँ इस दौर ने सबको हंसा दिया | वहां की स्थिति और माहौल को ऐसा बना दिया कि सभी हो गए मस्त कान्हा के प्यार में |
वृन्दावन के आश्रम में हजारों की संख्या में विधवा महिलायें रहती है और श्री कृष्ण की भक्ति में खुद को समर्पित कर अपना जीवन व्यतीत कर रही है | रंगों से दूर इन विधवाओं को रहने व निरस जीवन जीने की प्रथा समाज में बनाए गए | जबकि विधुर पुरुषों के लिए ऐसा नियम व प्रथा नहीं बनाया गया | नियम , कानून , जुर्म , प्रथा , मान मर्यादा सभी महिलाओं के लिए हीं बनाए गए है |
सुलभ इंटरनेशनल एक बहुत बड़ी संस्था है जो किसी परिचय की मोहताज नहीं | इस संस्था की स्थापना डॉ० बिन्देश्वरी पाठक ने की है जो बिहार के रहने वाले है | उन्होंने इस ताकियानुसी प्रथा को तोड़ डाला |
ठीक उसी तरह जैसे कि राजाराम मोहन राय ने सतीप्रथा पर अंकुश लगाने हेतु आवाज बुलंद किया था | हर रूप में देखा जाए ताकियानुसी प्रथा को तो मजबूत स्तम्भ हीं चकनाचूर किया है | आज इस संस्था की चारो तरफ तारीफ़ हो रही है |यह अच्छे कल का नतीजा है जो आने वाले कल में दिखाई पड़ेगा |
15 किलोमीटर दूर से भीड़ ने ली अंगड़ाई और रंग भरनी एकादशी के अवसर पर वृन्दावन में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा और रंगों की बरसात हुई परिक्रमा के बीच भी , क्यूंकि यह द्वारिकाधीश मंदिर का समारोह था जहाँ लोग श्री कृष्ण के गानों पर खूब डांस कर मस्ती में झूमते रहे | 18 से 20 लाख लोगो की कतारें रंगों में रंगे जय हो जय हो के नारे से वातावरण को गूंजमान किये| लोग यहाँ पर आये हुए थे अपने कान्हा के संग होली मनाने |
इस मौके पर वाहन के प्रवेश पर बहुत दूर से हीं रोक लगा दिए गए थे और प्रशासनिक व्यवस्था भी सुदृढ़ की गई थी |यहाँ कई राज्य के लोग अपनी आस्था , विश्वास और साथ के लिए मंदिर प्रांगन में होली के उत्सव के आगमन के लिए आते है |
आज दुनियां भर में एक बहुत हीं बड़ा शुभ संकेत मिला , जब विधवाओं के लिए भी रंगों का द्वार खोल दिया गया | ...... ( न्यूज़ / फीचर :- भव्याश्री डेस्क )
रिपोर्टर