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पूतना एक महिला दैत्य का नाम है जिस नाम से सभी वाकिफ है | पूतना की जिंदगी का रहस्य श्रीकृष्ण के अवतार से जुड़ा है |पूतना अपने पिछले जन्म में राजा की पुत्री थी , परन्तु वह एक दैत्य कैसे बनी ? और इसका प्रसंग पुराण में अंकित है |
कंस जो श्रीकृष्ण के मामा बने उन्होंने अपने पिता उग्रसेन के राज्य को छिनकर स्वयं राजा बन बैठे थे और उस राज्य पर शासन करने लगे | उनकी नीति से सभी नाखुश थे | कंस एक अत्याचारी राजा था जो नाम आज भी एक उदाहरण में शामिल किया जाता है - "यह तो कंस जैसा व्यवहार कर रहा है या इसकी नीति कंस जैसी है" आदि .... आदि |
ऊपर बैठा एक पॉवर तो है जिससे दुनिया चल रही है और इन्हें हम ईश्वर या देवी का नाम देते है | वह हमारी सभी तमन्ना पूरी करते है , क्यूंकि यहाँ से कोई याचक खाली नहीं लौटता | बस मांगने का नजरिया और सोंच पर निर्भर करता है कि उस वक्त की परिस्थिति क्या है ?
पूतना कंस की दासी थी और पिछले जन्म में राजा बलि की पुत्री थी , इस राज्यकन्या का नाम रत्नमाला था | श्री कृष्ण अवतार से पहले भगवान विष्णु ने वामन के रूप में अवतार लिया |
एक दिन भगवान वामन बलि के घर पर आ पहुंचे | उनका सुंदर मनमोहक रूप देखकर रत्नावली की ममता ने करवट बदला | उन्होंने भगवान के इस रूप को बड़े ही प्यार से देखा और सोंचने लगी कि - मेरा भी ऐसा पुत्र हो ताकि उसे ह्रदय से लगाकर लाड़कर दुग्धपान करा सके |भगवान इनकी बात को भांप गए और इन्हें आशीर्वाद दे दिया |
राजा बलि के बल से कौन नहीं परिचित है | मगर वे अहंकारी थे और उन्हीं के अहंकार को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन रुप में अवतार लिया था | बलि का यह घमंड कि उनके यहाँ से कोई याचक खाली हाथ नहीं जाता | वह महादानी थे , परन्तु अत्यचारी भी थे जिससे दुनिया को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु को आना पड़ा |
संक्षिप्त में हम बता दे :-
तो भगवान ने इनसे सिर्फ तीन पग भूमि की मांग की थी जिसे बलि ने बड़े ही आसानी से दे दिया | मगर उन्होंने सोंचा नहीं था कि - भूमि का माप कितना होगा ?
पहला पग में भगवान पूरी धरातल को माप गए और दूसरा पग में ब्रह्माण्ड | अब भगवान ने पूछा कि - मै अपना तीसरा पग कहाँ रखूं ?
बलि बातो के पक्के थे और सर झुकाना कभी सिखा नहीं | इसलिए उन्होंने माफ़ी मांगते हुए भगवान के तीसरे पग को अपने सर पर स्थान दे दिया | सर पर भगवान के पैर रखते ही वे पातळ लोक में चले गए |
अपने पिता को पताल में धंसते देख रत्नावली ने मन में सोंचा - ऐसा मेरा पुत्र होता तो मै इसे विष दे देती | भगवान वामन ने उसकी इस इच्छा पर भी अपना आशीर्वाद दे दिया और अपनी इस दोनों इच्छा को पूरा करने के लिए रत्नावली कृष्ण अवतार से पहले दैत्य पूतना बनी और कंस के यहाँ एक विश्वास पात्र दासी के रूप में सेवा से जुड़ी रही |
पूर्व जन्म की उनकी इच्छा कि भगवान को लाडकर दुग्ध पिला पाती और क्षण भर में हीं उनका मातृत्व आक्रोश की तरफ करवट बदलते हुए उस बालक को विषपान कराने की इच्छा मन में उपज ले लिया | क्यूंकि उस बालक की वजह से इनके पिता को पताल लोक जाना पड़ा |
राक्षसी पूतना भेष बदलने में माहिर थी | इसलिए कंस ने उसे सुन्दर रूप धारण कर गोकुल जाने का सलाह देकर श्री कृष्ण को मारने का आदेश दे दिया |
पूतना गोकुल पहुँच गई और छल से श्री कृष्ण को गोद में लेकर स्तनपान कराने लगी | यह उसके पिछले जन्म की इच्छा थी जो पूर्ण हुआ और उसके बाद वह विष पिला न सकी जिसके बाद पूतना का वह रूप नष्ट हो गया |
भगवान सभी की इच्छा को पूर्ण करते है , परन्तु इतना ध्यान रहे की बाते सबके हीत में हो | पूतना ने भगवान को अपने बेटे के रूप में माँगा यहाँ तक ठीक था | परन्तु बच्चे को विष देने की बाते उनके मन ने सोंची यह महापाप था | भगवान ने उनकी दोनों इच्छा को पूरी की , क्यूंकि राक्षसी दुग्ध जहरीला होता है जो राक्षस ही पचा पाता है , इंसानी बालक नहीं |
भगवान से वरदान मिलने के बाद भी उनके प्राण पखेरू क्यूँ उड़ गए ? सोंचना हमें होगा ! ............ ( अध्यात्म की जानकारी :- रुपेश आदित्या एवं एम० नूपुर की कलम से )
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