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तुम मुझे चाहो न चाहो इसका कोई गम नहीं
लेकिन मै तुम्हें चाहूँ तमाम उम्र , अधिकार दे दो
लश्कर बना डाला तुमने सावनी घटा का
मुरझा गया गम पीते पीते
उन जुल्फों को सहलाने की इजाजत दे दो
पिता रहा हूँ अश्क तुम्हारी फुर्कत का
मुस्कुराकर ख़ुशी का एक जाम भर दो
मरकर हीं प्यार अमर है , वाकिफ है हम इस राज से
मेरी ख्वाहिश कत्लेयार कर इनायत कर दो
वरपा है रोज एतवार का कहर
वेवफा बनकर वफ़ा करने की गुस्ताखी कर लो
पैमाना वेगैर मदिरा भी छलकता है कभी - कभी
आँखों में मुझे भरकर एहसास कर लो
रोज तपा हूँ एकांगी में भींगकर
यकीन नहीं तो सावन से पूछ लो
जलने को हम तैयार है समां बनकर आजमा लो
उतरो न तुम मेरे दिल के जमी पर चाँद बनकर
इंतज़ार में नैना पथरा रही चकोर बनकर
अब सूर्य अस्त होने हीं वाला है
देख लो अंगारिणी , बस साँस बाकी हैं
तुम से दूर जाने का गम नहीं
गम है , मेरी विदाई तुम्हे मुरझा न दें
तुम्हारी खुशबू से मुअत्तल गुजरता है
खुशबु महसूस करूँ , आवाज दे दो
दिल डाल दिया है तुम्हारे कदमो में , बस एक बार जता दो
तुम्हें भी प्यार है बता दो |
( कविता :- एम० नूपुर की कलम से )
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