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कार्तिक साल का आठवां महिना जो सबसे पवित्र महिना माना जाता है | यह महिना भगवान विष्णु का सबसे प्रिय महिना है | इस महीने में व्रत / तप / पूजा / उपासना / ध्यान व मोक्ष प्राप्त करने का सबसे पवित्र व सुन्दर महिना माना गया है |
इसी महीने में भगवन विष्णु योग निंद्रा से जागते हैं और श्रृष्टि में आनंद का लहर दौड़ते हुए आशीर्वाद की घोर वर्षा होती है | माँ लक्ष्मी भी इसी माह में धरती पर भ्रमण करती हुई भक्तगणों को अपार आशीर्वाद देते हुए धन की वर्षा करती है |
हर माह होनेवाले एकादशी व्रत में इस माह की महिमा निराली है | वैसे भी सनातन धर्म में कोई भी उपासना करें या उपवास , उसका महत्वपूर्ण स्थान है | बावजूद एकादशी व्रत का करना श्रेयस्कर बताया गया है |
शास्त्रों के अनुसार एकादशी का व्रत महान पूण्य देनेवाला व पापों का नाश करनेवाला माना गया है | हर माह में दो एकादशी व्रत होते हैं | सभी माह के एकदशी का नाम अलग - अलग होता है जिसे हम अगले फेज में बतायेंगे और इसकी महिमा भी |
कृष्णपक्ष व शुक्लपक्ष यानी की बारह महिने में 24 एकादशी होती है | इसबार 26 एकादशी होगी क्यूंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर तीन वर्ष में एक बार अधिक महिना आता है जिसे मलमास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है |
एकादशी व्रत एक साधना है जिसमे दो शब्द आते हैं - एका और दशी | दस इन्द्रियों और मन की क्रियाओं को सांसारिक वस्तुओं , भौतिक सुख सुविधाओं व लोभ से ईश्वर के ध्यान में बदलना हीं सच्ची एकादशी है | अपने अन्दर के कुविचार को नहीं आने देना , मन में काम , क्रोध , लोभ का क्षय करते हुए भगवान को अपनी तपस्या व निष्ठा से पा लेना हीं सच्ची एकादशी का करना है | इसलिए कि एकादशी तिथि भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है | भगवान श्रीकृष्ण ने इस व्रत की महिमा युद्धिष्टिर को बताई थी , इस व्रत को करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता | शत्रुओं का विनाश होता है और घर की दरिद्रता दूर होती है | धन / एश्वर्य / कृति , पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे सभी कार्य में सिद्धि मिलती है |
कार्तिक मास में 9 नवम्बर को रमा एकादशी किया गया और 23 / 24 नवम्बर को देव उठनी एकादशी किया जाएगा | आज के दिन हीं चार माह के बाद भगवान श्रीहरि योग निंद्रा से जागते हुए पृथ्वी का कार्यभार संभालते हैं इसलिए इस व्रत को करने से जन्म - जन्मांतर के सभी पाप क्षीण होते हुए जन्म - मरण के चक्र से मुक्ति की प्राप्ति होती है जिसमे तुलसी विवाह की यादें भी हर साल मनाई जाती हैं |
यह दिन तुलसी विवाह का महान पर्व है | इसी दिन भगवान विष्णु पताल लोक के राजा बलि के राज्य से चतुरमास का विश्राम पूरा कर बैकुंठ लौटे थे | तुलसी हिन्दू समाज में एक पवित्र पौधा माना गया है जहाँ हर खाने की वस्तु व प्रसाद पर इसके पत्ते की स्पर्श मात्र से पवित्रता समा जाती है | यह पौधा माता लक्ष्मी व श्री नारायण दोनों को सामान्य रूप से प्रिय है | इसलिए इसे विष्णुप्रिया , हरिप्रिया , वृंदा कहा गया है | इस पत्र के बिना न कोई यज्ञ / हवन - पूजन / कर्मकांड / साधना व उपासना पूर्ण नहीं माना जाता | इतना तक कि चरणांमृत व ईश्वर के भोग प्रसाद आदि में तुलसी पत्र का होना अनिवार्य है खासकर विष्णु , श्रीकृष्ण और भगवान श्रीराम की पूजा में क्यूंकि ये सभी रूप श्रीहरि के हैं |
आज के दिन अपने घर में तुलसी का पौधा जरुर लगायें जहाँ तुलसी का निवास है वहां साक्षात् माँ लक्ष्मी और नारायण का निवास होता है |
श्रीहरि तुलसी को अपने मस्तक पर धारण करते हैं | देव उठनी एकादशी के दिन हीं तुलसी की विवाह शालिग्राम के साथ होता है और इसी दिन से हिन्दू धर्म वाले विवाह करना आरम्भ करते हैं | इस उत्सव को देव प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है | भगवान विष्णु की प्रसन्नता प्राप्ति के लिए तुलसी विवाह का प्रचलन है |
हिन्दू पंचांग के अनुसार देव उठनी एकादशी 23 नवम्बर गुरुवार को है | बृहस्पतिवार पालनहार भगवान विष्णु का सबसे प्रिय दिन है जिस दिन सभी लोग व्रत भी रखते हैं और जरुरी नहीं कि हर माह एकादशी के दिन गुरुवार का दिन हो तो 23 नवम्बर बड़ा हीं शुभ दिन है | इस माह का समापन पूर्णिमा के दिन के साथ होगा जो बहुत हीं पवित्र दिन माना जाता है | ............ ( अध्यात्म फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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