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"वैराग्य"
मंजिल दूर होती गई और सपने वीरान
एक तुच्छ सी पगली पर मेरा दिल था कुर्बान
मगर मै उन्मुक्त होकर गगन को चूमना चाहता हूँ
टिमटिमाते हुए तारे से आज मै कुछ पूछना चाहता हूँ !
नयन से अश्क गिरकर दरिया बन गई
बदन से उम्र खोकर जवानी ढल गई
तुम्हारे इन्तजार को
तुम्हें आज भी मै पाना चाहता हूँ
टूटे हुए तारे को अपनी फ़रियाद सुनना चाहता हूँ !!
चिताएं जलकर शांत हो गई
दिल से जान निकलकर , बेजान हो गई
कैसे कहूँ ? मै तुम्हें पाना चाहता हूँ
अपना पता दे दो , उस पते पर आना चाहता हूँ !!!
आँखे ओझल हो गई तेरे इन्तजार में
उम्र कट गई तेरे कब्र के पास में
देखो तुम्हें पाने , आज मायावी रिश्ते को तोड़ आया हूँ
अपनी बदन को तुम्हारे कब्र के पास ले आया हूँ !!!!
आज फिर मै उन्मुक्त होकर गगन को चूमना चाहता हूँ
टिमटिमाते हुए तारे से आज कुछ पूछना चाहता हूँ
कुछ पूछना चाहता हूँ , कुछ पूछना चाहता हूँ ...... !!!!!
( कविता :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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