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वाराणसी के स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर कानपूर गंगा नदी में लापता हुए , रेस्क्यू अभियान जारी है | यह घटना बीते शनिवार की है |
गंगा नदी के पास मौजूद गोताखोरों ने एडवांस रुपये के चक्कर में एक जान ले ली | उनका अभी तक कोई पता नहीं चला | गोताखोरों ने गंगा नदी में तब छलांग लगाया जब उन्हें 10 हजार रुपये मिले | वहां मौजूद उनके दोस्तों के पास इतने नकद रुपये नहीं थे | दोस्तों ने गोताखोर से कहा - आप इन्हें निकालिए रुपये मिल जायेंगे तो गोताखोर ने कहा - कैश नहीं है तो ऑनलाइन पे कर दीजिये | जिसके बाद उन्होंने स्थानीय दूकानदार के मोबाइल पर ऑनलाइन ट्रांसफर कराये तब जाकर गोताखोरों ने उन्हें ढूंढने के लिए छलांग लगाईं |
जिंदगी नहीं मिलती दूबारा सभी जानते हैं फिर गोताखोरों को इस बात का पता कैसे नहीं कि देर होने से जिंदगी हाथ से फिसल जायेगी |
आदित्यवर्धन सिंह एक धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति है | गंगा नदी में अपने दो दोस्तों के साथ शनिवार की सुबह अर्ध्य देने के लिए गए थे | वहां नहाते वक्त दोस्तों से विडियो बनाने को कहा और इसी क्रम में वे आगे बढ़ गए | दोस्तों ने उन्हें आगे जाने के लिए मना किया था साथ हीं वहां के लोगो ने भी मगर इन्होने कहा - मुझे तैरना आता है | तभी आगे बढ़ते हुए वो डूबने लग गए तो दोस्तों में घबराहट उत्पन्न हुई और पास में हीं गोताखोरों से उन्हें बचाने की गुहार लगाईं जिसके बाद गोताखोरों ने 10 हजार रुपये का डिमांड कर दिया |
10 हजार रुपये नगद नहीं थे | उन्होंने कहा - पहले निकालिए पैसे मिल जायेंगे मगर गोताखोर को विश्वास नहीं हुआ | उन्हें 10 हजार रुपया पास के दुकानदार के अकाउंट पर मंगवाना हीं पड़ा फिर गोताखोरों ने छलांग लगाईं तब तक बहुत देर हो चूका था और शायद वे अभी तक लापता है |
इनके माता - पिता अपनी लड़की के पास अभी आस्ट्रेलिया में है | पत्नी महाराष्ट्र पुणे में जिला जज है |
गोताखोरों ने सामने वाले व्यक्ति पर भरोसा क्यूँ नहीं किया ? क्या इनके साथ कभी धोखा हुआ है ! गोताखोर एक सोशल व्यक्ति होते हैं फिर जिनके पास पैसे नहीं तो क्या कोई ऐसे हीं किसी को डूबता हुआ छोड़ देगा ? ऐसे हुनर का क्या फायदा ! कहा गया है - डूबते को तिनके का सहारा चाहिए मगर अफ़सोस ये तिनका नहीं बन सके | समय पर छलांग लगाकर बचाया होता तो 10 हजार क्या लाखो रुपये ईनाम के तौर पर मिल जाते और अगर नहीं भी मिलता तो लोगो के नजर में तो गोताखोर रियल हीरो बन हीं जाते और ऐसे भी सभी को ऊपर वाले पर भरोसा रखना चाहिए | नीचे वाले दे न दे ऊपर वाले से तो बहुत कुछ मिल जाता है |
अब आपको इनके पारिवारिक बैकग्राउंड के विषय में थोड़ा बता दे - तो इनके पिता सिंचाई विभाग में बड़े पद से रिटायर अधिकारी हैं | रिटायरमेंट के बाद पिता ने लखनऊ में घर बनवाया है फिलहाल माता - पिता अपनी बेटी के पास आस्ट्रेलिया में है | इनके चचेरे भाई बिहार कैडर के सीनियर आईएस अफसर है और फिलहाल बिहार के मुख्यमंत्री के सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत है |
आप इनके बैकग्राउंड से समझ सकते है , यह कितने संपन्न है ! मगर इनकी जिंदगी का सौदा हुआ | सौदा ऐसा जिसमे एडवांस के बिना कोई काम नहीं और वह भी कैश में | हाथ से फिसल गई जिंदगी इनकी |
आदित्य वर्धन जिन्हें लोग गौरव भी कहते हैं , वांगरमऊ इलाके के कबीरपुर गाँव के निवासी है | इस समय वे लखनऊ के इंद्रा नगर में रहते थे | फिलहाल वो लापता है इसलिए कहना मुश्किल है कि वे जीवित है भी या नहीं | बीते शनिवार को वो अपने पास के हीं निवासी दो दोस्त - प्रदीप तिवारी और योगेश्वर मिश्रा के साथ कार से वांगरमऊ के नानामऊ क्षेत्र के गंगातट पर स्नान करने पहुंचे थे |
जानकारी मिली है कि स्थानीय लोगो ने उन्हें नदी की गहराई में जाने से रोका था मगर वह नहीं माने और गहरे पानी में समा गए | फिलहाल प्रशासन मोटर वोट और स्थानीय गोताखोरों की मदद से उनकी तलाश जारी रखी है | 3 दिन हुए अभी तक हाथ खाली रहा |
गंगा नदी में सरकार द्वारा सेफ्टी निशान को चिन्हित किया जाता है बावजूद वह आगे बढ़े | उनकी यह जिद्द दोस्तों और परिवार वालो पर कितना भारी पड़ा , कहना मुश्किल है ! पानी की स्ट्रोंग करेंट ने उन्हें जकड़ लिया जिसे वो संभाल नहीं पाए |
माता - पिता , बहन की बेचैनी अभी क्या होगी महसूस किया जा सकता है ! पत्नी के व्याकुलता का तो हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते और न शब्द है हमारे पास उनकी व्याकुलता , दर्द , बेचैनी को अंकित करने की | बस इतना कहा जा सकता है कि उनके दामन से पूरा संसार हीं जैसे छुट गया हो | एक पत्नी के लिए पति हीं उनकी दुनिया होते हैं | .............. ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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