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युक्रेन में मारे गए छात्र "नवीन शेखरप्पा ज्ञानगोदर" का शव आज सुबह करीब 3 बजे बेंगलुरु पहुँचा | शव को देखते हीं नवीन के पिता शंकरप्पा कॉफिन से लिपटकर बिलखते हुए रो पड़े | एक पिता के इस बेकल / बहाल स्थिति को देखकर वहां के लोग बेचैन हो गए और उन्हें संभालने की कोशिश की |
एक जवान बेटे को खो देने की स्थिति क्या होती है ? यह महसूस किया जा सकता है ! मगर अब इस पिता को सारी जिंदगी बेटे की याद में हीं गुजारनी पड़ेगी | वह सपना खो गया जो देखे थे एक पिता ने कि मेरा बेटा डॉक्टर की डिग्री लेकर युक्रेन से वापस आएगा , मगर वह ख़्वाब ख़्वाब हीं रह गया | यह दुर्भाग्य है कि एक पिता को अपने बेटे के शव से लिपटना पड़ा | नवीन की उम्र 21 साल थी |
बेंगलुरु एयरपोर्ट पर जैसे हीं नवीन के शव को लाया गया , कर्नाटक के मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने श्रधांजलि देते हुए पिता को धर्य और सत्वाना दी |
नवीन के शव को गाँव ले जाया गया जहाँ उसके शव को परम्परागत तरीके से पूजन किया गया , उसके बाद दर्शन के लिए रखा गया |
नवीन के पिता की इच्छा है - अपने बेटे की इस शव को वे SS अस्पताल को मेडिकल छात्र के स्टडीज के लिए छात्र को दान में दे दे | नवीन की इच्छा थी कि वह एक डॉक्टर बने और यह इच्छा नवीन को बहुत दूर ले गया जहाँ से अब उनकी वापसी संभव नहीं | इसलिए इनके पिता ने मेडिकल छात्र को चिकित्सा अनुसंधान के लिए अपने बेटे नवीन का शरीर दान में देने का फैसल किया है |
1 मार्च को युक्रेन के खार्किव में गोलीबारी के दौरान मारे गए थे नवीन शेखरप्पा ज्ञानगोदर | ये युक्रेन के खार्किव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में MBBS के छात्र थे | नवीन की मृत्यु रूस द्वारा किये गए युक्रेन पर हमले के दौरान हुआ , जहाँ वह खाना व सामान खरीदने के लिए दूकान पर लाइन में खड़े थे | इसी दरमियान रुसी सेना ने फायरिंग की और इस फायरिंग में नवीन को गोली लगी जिससे उनकी मौत हो गई |
नवीन को अगर भारत में स्थान मिलता तो उसे पढ़ाई के लिए युक्रेन नहीं जाना पड़ता | 97% अंक लाने के बावजूद भी उसे भारत में सीट नहीं मिली थी , यह बात एक बेकल .भावुक हुए पिता ने कहा | उन्होंने कहा कि - भारत में जाति के आधार पर सीटें निर्धारित की जाती है | PUC में 97% अंक हासिल करने के बाद भी जब अपने हीं राज्य में उसे स्थान नहीं मिला तो उसे युक्रेन भेजना पड़ा |
प्रतिदिन कई दफा पिता - पुत्र व परिवार के बीच नवीन की बाते हुआ करती थी | युद्ध की संभावना के बीच सभी स्टूडेंट ने यूनिवर्सिटी से रिक्वेस्ट किया था कि - उनसभी को छुट्टियों की मंजूरी मिल जाए ताकि वे अपने मुल्क जा सके | परन्तु यूनिवर्सिटी ने इस अपील को खारिज करते हुए युद्ध नहीं होने की दलील देते हुए उन्हें युक्रेन में हीं रोक लिया |
बच्चे क्या करते ? अपनी तड़प दिल में लिए युद्ध शुरू होने के बाद भी तड़पते रहे | इनके पिता और अन्य अभिभावक ने भी अपने बच्चो की वापसी के लिए बहुत प्रयास किया था , क्यूंकि वहां उनके बच्चो के पास खाना - पानी की भी कमी होने लगी थी | बच्चे बॉर्डर से 2 हजार किलोमीटर की दूरी पर थे | परिवार के लोग दूतावास से भी बात किये , मगर सभी बाते असफल रही और एक पिता ने अपने बेटे को खो दिया जिसका जुर्माना यूनिवर्सिटी भरेगा ? जिसने बच्चो की रिक्वेस्ट नहीं मानी और युद्ध न होने की दलील दे डाली |
1 मार्च के बाद से हीं नवीन की बॉडी खार्किव मेडिकल यूनिवर्सिटी की मॉर्चूरी में सुरक्षित रखा हुआ था , 20 दिन के बाद आज भारत पहुंचा है |
कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने नवीन के परिवार को आर्थिक सहायता हेतु 25 लाख रुपये देने की बात कहते हुए परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की बात कही है | नवीन कर्नाटक में हावेरी जिला के रहने वाले थे , अब सिर्फ उनकी यादें बची है |
यह एक इक्त्फाक है कि - रूस ने युक्रेन पर युद्ध जारी किया जिसमे न जाने कितने बेगुनाह लोग मारे गए और उनके परिवार को खून की आंसू रोना पड़ा | मगर ऐसा नहीं कि हर जगह यह एक इक्तफाक बने | मरने वाले के लिए सिर्फ एक कारण सामने खड़ा होकर दस्तक दे जाता है | देखा जाए तो आये दिन किसी न किसी हादसे में लोग की मौत होती है | परन्तु नवीन की मौत नहीं होती , अगर वह सोमवार को युक्रेन छोड़कर भारत आ जाते |
नवीन ने कहा था - थोड़ा इंतज़ार करते है ताकि जूनियर्स को भी साथ ले जा सके | इसलिए उन्होंने बुधवार को खार्किव छोड़ने का मन बनाया और अपने सीनियर होने का फर्ज निभाने के क्रम में वे मंगलवार को हीं रुसी सेना द्वारा मारे गए |
देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शुक्रियाअदा कर रहा है | वहीं बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि - बंग्लादेश के कई नागरिक सुमी क्षेत्र में फंसे हुए थे जिन्हें निकालने में उन्होंने सहायता की थी | उन्होंने शुक्रियाअदा करते हुए प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र में कहा - मै आपको और आपके सरकार को धन्यवाद देती हूँ | क्यूंकि उन्होंने भारत के साथ साथ बंग्लादेश के नागरिकों को भी वहां से निकालने में सहायता की |
प्रधानमंत्री ने युक्रेन से हजारो बच्चो की वापसी के लिए गंगा मिशन अभियान चलाकर देश के बच्चो को उनके परिवार को सौंपा | ....... ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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