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उग हे सूरजदेव भेल भिनसरवा , अरघ के रे बेरवा , पूजन के रे बेरवा हो ..........
आज आस्था व विश्वास का महापर्व छठ पूजा का दूसरा दिन है | पंचम के दिन से सप्तम तक छठ पूजा का उल्लास घर में बना रहता है | यह व्रत खासकर बिहार राज्य का एक महान पर्व माना गया है जहाँ व्रती अपने सौभाग्य , बच्चे व परिवार के लिए उपवास रखती हैं | जिनके बच्चे नहीं है , वो बच्चे के लिए और जिनके बच्चे हैं वो बच्चे के लम्बी उम्र ,बेहतरीन स्वास्थ्य और उज्वल भविष्य के लिए इस व्रत को करती हैं |
सूर्य देव की पूजा रामायण / महाभारत के जमाने से होती आ रही है | लोगो का ध्यान इस बात पर कितना गया या जाएगा यह कहना बड़ा हीं मुश्किल है मगर रामायण या माहाभारत का पन्ना पलटा जाए तो सूर्य को अर्ध्य देने का दौर बड़ा हीं पुराना है |
माँ द्रोपदी ने अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य और बेहतरीन उज्वल भविष्य के लिए छठ का व्रत रखा था | यह तपस्या उन्होंने तब कि थी जब पांडव अपनी सारी सम्पति जुए में हार गए थे जिसमे माँ द्रोपदी को भी शामिल होना पड़ा | इतिहास आज भी इस बात की गवाही देता है कि दिल से जब भी ईश्वर को पुकारा गया / आवाज दी गई , ईश्वर किसी न किसी रूप में आकर उनकी मदद की है |
जैसे कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी माता द्रोपदी के पुकारने पर उन्हें चीर से भरपूर किया जिसका असर आज भी जिन्दा है | माँ द्रोपदी ने तभी छठ व्रत रखा , पांडवों के अधिकार वापसी के लिए और उन्हें जब सभी कुछ मिल गया तो माँ ने सूर्य पूजा और छठी मईया की आराधना की जिसके बाद इस पर्व का नाम छठ पूजा पड़ा |
ब्रह्मा की मानस पुत्री और भगवान सूर्य की बहन है छठी मईया | चार दिनों तक चलने वाले इस पवित्र पर्व को बड़े हीं निष्ठा भाव के साथ किया जाता है | यह पूजा कार्तिक शुक्लपक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है , हालाकि पंचमी के एक दिन पूर्व से यह व्रत आरम्भ हो जाता है जिसे हम "नहाये खाए" के नाम से जानते हैं |
षष्ठी के दिन संध्या के समय अस्त होते सूर्य को जल और उसके अहले सुबह सूर्य पर गाय के दूध का अर्पण किया जाता है |
छठ व्रत हीं एक ऐसा व्रत है जिसमे डूबते हुए सूर्य को भी प्रणाम किया जाता है , दंड बैठक किया जाता है | व्रती के साथ साथ बहुत सारे लोग कमर तक पानी जिसमे नदी / तालाब / समुन्द्र या फिर वैसे जगह पर्याप्त पानी उपलब्ध हो में खड़े रहकर आस्था से भरपूर विनती करते हैं |
छठ पर्व निःसंतान को संतान प्राप्त करने का ख़ास पर्व है जिन्हें संतान है तो वे अपने संतान की दीर्घायु व कुशलता के लिए व्रत रखते हैं | यह पर्व महिला और पुरुष दोनों करते हैं | हिन्दू समाज में बच्चे के जन्म के छठे दिन छठी का एक पूजन किया जाता है , यह पूजा भी सूर्य की बहन छठी मईया की हीं होती है |
छठी मईया माँ दुर्गा की हीं एक रूप है जिन्हें हम कात्यायनी नाम से जानते है | नवरात्री की षष्ठी तिथि को इन्हीं की पूजा होती है |
भगवान श्रीराम जब 14 वर्ष के वनवास के बाद लंकापति रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे तब राम राज्य की स्थापना की गई थी | उस दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी का हीं दिन था | उस दिन माता सीता और भगवान श्रीराम ने उपवास रखा था और सूर्योदय की पूजा अर्चना की थी |
वहीं सूर्य पुत्र कर्ण की भी बात अगर की जाए तो सूर्योदेव की पूजा में प्रतिदिन घंटो कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्ध्य दिया करते थे | सूर्यदेव के आशीर्वाद से वह एक महान निर्मल सहृदय योध्या बने |
नहाये खाए 17 नवम्बर शुक्रवार को हुआ , 18 नवम्बर शनिवार को खरना , 19 नवम्वर को संध्या अर्ध्य और 20 नवम्बर को उषा अर्ध्य दिया जाएगा | सोमवार को अर्ध्य देने का यह अनोखा पर्व में विराम नहीं लगेगा , इसी शाम से शामो-चकवा का दौर भी शामिल होगा जो पूर्णिमा तक चलेगा |
दो आदर्श भाई बहनों का त्यौहार जो बहन के जीवन में भाई की उपस्थिति और उनके द्वारा सम्मान किये जानेवाले आजीवन मधुर बंधन के रूप में किया जाता है | इसे हम एक उत्सव का नाम दे सकते है क्यूंकि यहीं से तुकबंदी गाने का दौर भी शामिल हुआ | यह उत्सव खासकर बिहार में कार्तिक माह में शुक्लपक्ष की सप्तमी से पूर्णिमा के दिन तक किया जाता है जिसकी जानकारी हम अगले फेज में देंगे |
फिलहाल कल सूर्य को जल चढ़ाने का प्रथम दिन है , आप भी सूर्य पर जल / गंगाजल / गाय का दूध अर्पण कर सकते है | कोई भी तपस्या या अर्पण की गई निर्मल धारा खाली नहीं जाता , हर हाल में ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है | .......... ( अध्यात्म फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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