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बेटे का डॉक्टर / इंजीनियर / आईएस या अन्य पद पर बनने की ख़ुशी अगर मातम में बदल जाए तो परिवार के दिलो पर कितना चोट पहुँचता है इससे सभी लोग वाकिफ नहीं मगर एहसास तो सभी कर सकते हैं | बेटे की लाश को 25 लाख रूपया देने के बाद कोई भेजने की बात करे तो एक गरीब आदमी जिसका घर द्वार बेटे की पढ़ाई में बिक गया हो जो पहले हीं कर्ज से दबा हो तो वह इतने रुपये कहाँ से लाएगा ?
यह कोई कहानी नहीं सच्ची घटना है | सैय्यद अब्दुल हसन सादरी जो तमिलनाडु के पुदुकोट्टाई जिले में रहते हैं | इनका लड़का शेख अब्दुल्लाह 5 साल पहले MBBS की पढ़ाई करने चीन गया था | वह चीन की Qiqihar मेडिकल यूनिवर्सिटी में इंटरशीप कर रहा था |
बीते डेढ़ साल से वह घर पर हीं था | Covid को लेकर उसकी ऑनलाइन पढ़ाई हो रही थी |
महिना भर पहले यूनिवर्सिटी से फोन आया | यहाँ इंटरशीप के लिए आ जाओ | तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो गई है इसके बाद तुम्हें डिग्री मिल जायेगी |
बीते 11 दिसंबर की बात है - शेख अब्दुल्लाह चीन के लिए रवाना हुआ | परिवार वाले उन्हें चेन्नई एयरपोर्ट पर छोड़ने गए थे | उनके अब्बूजान ने अपनी बेटे की कही बात यादकर आंसू बहा रहे हैं | बेटे ने कहा था - अब्बू अब चिंता मत करना सब ठीक हो जाएगा | मै डॉक्टर बनकर आऊंगा तो नया घर बनायेंगे | सारा सामान फिर से खरीद लेंगे , छोटे भाई को भी संभाल लेंगे , हमारे सारे दुःख ख़त्म हो जायेंगे | यह पिता - पुत्र की आखिरी बात थी |
चीन पहुँचने के बाद शेख अब्दुल्लाह को एयरपोर्ट पर हीं एक हफ्ते के लिए क्वारैंटाईन किया गया उसके बाद 15 घंटा का सफ़र कर के वह यूनिवर्सिटी पहुंचा जहाँ एक हफ्ते के लिए उन्हें पुनः क्वारैंटाईन किया गया | 7 दिन बाद शेख हॉस्टल पहुँच गए | तीसरे दिन शेख ने अपनी माँ को फोन किया कि उसकी तबियत ठीक नहीं लग रही है और लगातार उल्टियाँ हो रही है |
माँ ने कहा - यूनिवर्सिटी अथॉरिटी को बताये और दवा ले ले | ऑथिरिटी को बताने पर जवाब आया - खुद इन्टरनेट पर सर्च करके दवा ले लो | शेख ने इन्टरनेट पर सर्च की जिसे औथिरोटी वालो ने दे दिया |
दवा खाने के बाद शेख की हालत और बिगड़ गई | परिवार वालो का कहना है कि - यूनिवर्सिटी अथॉरिटी ने न तो शेख का कोई टेस्ट करवाया और न हीं अस्पताल में एडमिट कराया |
अगले दिन शेख बेहोशी की हालत में अपने बेड पर लेटा था |शेख के रूमरेट ने विडियो कॉल करके परिवार को उसकी हालत बताई | परिवार वालो ने यूनिवर्सिटी अथॉरिटी से बात की मगर उन्होंने कुछ नहीं किया | इन्डियन स्टूडेंट एसोसिएशन को जब पता चला तो उन्होंने 40 हजार रुपये जुटाकर शेख को अस्पताल में भर्ती कराया | शेख का पासपोर्ट , सारे डाक्यूमेंट्स और विडियो कॉल पर परिवार के मुखिया के अंगूठे का निशान लेते हुए कई जगह निशान लगवाया |
दूसरे दिन शेख का लीवर फेल हो चूका था इसलिए दूसरे मेडिकल कॉलेज में उन्हें शिफ्ट करना था जिसमे 6 लाख रुपये की डिमांड की गई | घर वालो ने 6 लाख रुपये का इंतजाम कर हार्बिन मेडिकल यूनिवर्सिटी में भेज दिया मगर विडियो कॉल पर एम्बुलेंस में ले जाते हुए परिवार वालो को उसका चेहरा नहीं दिखाया गया | 3 दिन तक शेख का कोई खबर नहीं मिला फिर 25 लाख रुपये की मांग हुई |
परिवार वालो ने कहा - इंटरनेशनल स्टूडेंट का जो इंश्योरेंस होता है उससे पैसे ले लीजिये | सिस्टम ने कहा - क्लेम करने में समय लगेगा , पैसे अभी चाहिए |
1 जनवरी की सुबह 9 बजे के करीब मेडिकल कॉलेज अथॉरिटी से फोन आया - तुम्हारा बेटा नहीं रहा | इतना सुनते हीं सभी के हाथ - पाँव कांपने लगे और उनकी माँ बार - बार बेहोश होने लगी |
परिवार वालो का सवाल -
यहाँ से गया था तो मेरा बेटा स्वस्थ था | तीन दिन के अन्दर उसका लीवर कैसे फेल हो सकता है ? शेख की माँ की आवाज का जवाब क्या मेडिकल कॉलेज दे पायेगा ? जबकि उसके टेस्ट रिपोर्ट में कुछ भी ऐसा नहीं मिला |
अब मेडिकल कॉलेज का कहना है कि - 25 लाख रुपये दो तब बेटे की लाश मिलेगी | 15 दिन से परेशान परिवार के सदस्य सो नही रहे हैं , उनका चैन जाता रहा |
22 साल का शेख अब्दुल्लाह अब इस दुनिया में नहीं | अपने बेटे को आखिरी बार देखने के लिए तड़प रहे पिता और परिवार मगर यह कैसी दुविधा कि लाश भी स्वेच्छा से नसीब नहीं हो रहा | इससे तो अच्छा था अपने भारत में हीं कोई पढ़ाई कर बच्चे अपनी जिंदगी को सँवारे | कम से कम परिवार व अपनो का साथ तो पास होता है और यहीं सबसे बड़ी मजबूती है |
रिपोर्टर