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बीते सोमवार को उत्तरप्रदेश के संत कबीर नगर की एक ऐसी चौका देने वाली घटना आँखों से गुजर रही है , जो खून के रिश्ते को शर्मसार कर रहा है | कोरोनाकाल के इस भयावह दौर ने , न जाने कितने रिश्ते को समुन्द्र के उफनते हुए वेग के साथ बहा दिया , जिसे कोरोना त्रासदी कहा जाए , या कलयुग का श्राप ! भ्रष्टयुग का आना तो अभी बाकी है , न जाने वह अपना कैसा रंग दिखायेगा |
फिलहाल कलयुग के इस नालायक बेटे का दर्शन हम आपको करा रहे हैं | यह दुर्भाग्य है कि भारत जैसी पवित्र धरती व संस्कृति के बीच अधिकांशतः ऐसे हीं औलाद जन्म ले रहे है | दोष किसको दिया जाए , प्रकृति को या परवरिश को |
संत कबीर नगर की ये तस्वीर , जहाँ JCB से अपने मृत पिता के शरीर को उठाकर ये तीन बेटे गड्ढे में डाल रहे है , इसे देख समाज मौन क्यूँ है ! कभी इसी पिता ने अपनी गोद में सहलाकर , इन्हें बड़ा किया होगा |
ये तीनों बेटे गड्ढे में अपने पिता के मृत शरीर को दफ़न कर रहे है या फिर अपनी आत्मा को , कुछ कहा नहीं जा सकता ! मगर भारत के ऐसे बेटो की सोंच शर्मसार करने वाली है | ये साढ़े पांच फूट के तीनों औलाद को तमाम उम्र नींद कैसे आएगी ! अपनी वफ़ादारी , इमानदारी और पिता के जन्म का कर्ज सहित इंसानियत को बेचकर भूल गए वो सारे लाड , जो पिता ने इनपर लुटाये थे | ये तीनों के तीनों निक्कमे कहे जा सकते है | जिसने , पिता को न कन्धा दिया , न कोई रश्म - रिवाज , न मुंह में गंगाजल व तुलसीपान कराया और अग्नीस्पर्श से भी दूर रखा | ऐसे बेटे के साथ प्रकृति कैसा सलूक करेगी , जिसने अपनी पिता के मृत शरीर को कूड़ा - कचरा समझकर JCB से उठाकर गड्ढे में गाड़ दिया | बेदर्द को क्या नाम दिया जाए ? शब्द नहीं मेरे पास | स्थिति बेकल , बेहाल हुआ देखने वालों का |
ये वहीं नन्हीं उंगली है , जो आँगन में कभी ठुमक - ठुमक कर चलते बड़े हो गए | अब रिश्तों का बोझ इनसे ढोया नहीं जा रहा है , ठंढा पर गया है खून इनका | काश ! इन तीनों के औलाद भी पास में होते |
इनके पिता रामललित की तबियत काफी पहले से खराब थी , उन्हें कोरोना हो गया था | इनके बेटे गोरखपुर के सावित्री अस्पताल में लेकर गए थे , वहां पता चला की रामललित को कोरोना पोजेटिव आया तो घर लेकर आ गए | ऐसे बेदर्द बेटे तो कोरोना का नाम सुनकर भी इतना यकीन के साथ कहा जा सकता है कि - ये तीनों - अपने पिता के तपते दर्द पर प्यार का मलहम भी कभी नहीं लगाया होगा |
मृत पिता के शरीर के साथ ऐसा क्यूँ किया ? मीडिया के पूछने पर बेटे ने बताया की - हमने सोंचा कि गाँव वाले सब लम्बा - लम्बा रहते है और बगल में शादी भी थी तो सोचा गड्ढे में दबा दे ! ये कैसे बेटे हैं कि मिठाई की खुशबू में भूल गए खून का कर्ज |
ऐसी किस्मत को क्या कहिये , जिनको ऊपर वाले ने 3 पुत्र दिए हो | काश ! इन्हें कोई औलाद हीं न होता , तो पंचपरमेश्वर इन्हें कंधा दिलवा दिए होते परन्तु अफ़सोस कि ऐसा भी नहीं हुआ | मीडिया से बेटे ने बोला - किसी ने मदद नहीं की | ग्रामीण ने कहा - उसने मदद नहीं मांगी और जब बेटे ने हीं पिता के कोरोनाग्रस्त मृत शारीर को भय से छुआ नहीं , तो फिर हम क्या करते ? ग्रामीण ने स्पष्ट कहा कि - इस गाँव में कोई भी कोरोना पोजेटिव नहीं है | सिर्फ रामललित हीं कोरोना से ग्रस्त हुए थे |
इस बात की जानकारी ग्रामीण ने प्रखंड विकास पदाधिकारी व SDM को भी दिया | परन्तु वहां से कोई नहीं आया | खैर ..... रामललित की अंतिम विदाई जैसी किसी की विदाई न हो और इश्वर ऐसी औलाद देने से बेहतर है हर किसी को बाँझ बना दे , तो अफ़सोस भी न होगा देखने वालों को |
दुनियां बनाने वाले , क्या तेरे मन में समाई ! तूने काहे को दुनियां बनाई | ....... ( न्यूज़ / फीचर :- एम० नूपुर )
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