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बुढ़ापा जब दस्तक देता है तो सुनहरे जीवन में स्नेह स्नेह जवानी का नजरिया बदलने लग जाता है और आदमी धीरे धीरे अपने बचपन की तरफ मुखातिब होते दिखाई पड़ते है |
चंचल मिजाज व्यक्ति वह महिला हो या पुरुष शांत मन होते नजर आ जाते है | उनके चेहरे को देखकर ऐसा महसूस होता है कि - इनके अन्दर कितना दर्द भरा बर्फ का गोला जमा है जो पिघलने को बेताब है , मगर सामने कोई कन्धा नजर नहीं आता जिसपर वो गम का सैलाब बहा सके |
हमारे भारत की जनसँख्या 1 अरब 35 करोड़ के लगभग है जहाँ लगभग 14 करोड़ से भी ज्यादा बुजुर्ग रहते है | 21 अगस्त को वर्ल्ड सीनियर सिटिजन डे मनाया जाता है , इसबीच बहुत सारे बुजुर्गो से हमारी मुलाक़ात हुई |
बचपन बिता लोग बड़े हुए और जवानी का एक एक पल अपने बच्चे / परिवार पर खर्च करने के बाद वो बुढ़ापे की तरफ खड़े है | ये ऐसे बुजुर्ग है जिन्होंने अपनी तमाम उम्र में अपने घर / परिवार के लिए सोंचा और वक्त खर्च किया है |
मै कुछ वृद्धाश्रम में उनसे मिलने पहुंची यह सोंचकर की उनका थोड़ा सा दुःख / चिंता को हर पायेंगे | मै उनलोगों से मिली , बाते की बड़ा अच्छा लगा | मुस्कुराते हुए चेहरे के अन्दर न जाने कितना दर्द छुपा था | मुझे यह समझते देर नहीं लगा , क्यूंकि एक राइटर के लिए गम को दर्ज करने में सिर्फ स्याह कम नहीं होता उनकी पीड़ा भी अंकित होता है |
यह तस्वीर उसी वृद्धाश्रम से लिए गया है , ये सभी संपन्न परिवार के लोग है | दुःख बस इतना है कि - जिसे इन्होने पैदा किया या फिर इन्हें जिन्होंने पैदा किया वो अब इनके साथ नहीं | ये विषय बड़ा हीं गंभीर है जहाँ इस अवस्था में लोग जीने के लिए तन्हा रह जाते है | अपनो का साथ नहीं मिलता , बच्चो के लिए माँ - पिता , दादा - दादी एक बोझ बनकर रह जाते है और ये बुजुर्ग उसी घर - आँगन में गम के आंसू पीते है जिस घर को कभी उन्होंने बनाया / सजाया और बच्चो को पोषित किया था |
यह सच है कि - एक माँ पिता अपने कई बच्चो को बड़े हीं आसानी से बड़ा कर देते है , मगर एक दिन ऐसा आता है जब वो सभी बच्चे मिलकर भी एक माँ पिता को प्यार , मुहब्बत से अंतिम क्षण तक संभाल नहीं पाते | मैंने अपनी आँखों से देखा है कई ऐसे परिवार जहाँ वेदना में लिपटा हरेक सहर दस्तक देता है थोड़ी सी खुशियों के लिए और वह आँखे इन्तजार में गुजार देता है हर पल , मगर वह पल नहीं आता |
मैंने इसपर अपने मन / नजरो से अध्यन किया तो ऐसा महसूस हुआ - यह बुढ़ापा तो लोग जान बुझकर अपनाते है | यूँ तो कोई बूढा नहीं होता , हर इंसान के पास जवानी का क्षण होता है जहाँ वो अपनी बुढ़ापे की तैयारी नहीं कर पाते है और बाद में अपने बच्चो के सामने अपना बुढ़ापा रख देते है |
बहुत सारी फिल्मे बनी है जिसमे एक फिल्म "बागवान" महानायक अमिताभ बच्चन व हेमा मालिनी की है जिस कहानी ने एक इतिहास रच दिया | मेरे ख्याल से सभी बागवान बन सकते है , मगर इसके लिए त्याग और भावना का मन में होना बड़ा जरुरी है |
आज इतनी सारी घटनाएं आँखों के सामने गुजर रही है , मगर फिर भी मन यह मानने को तैयार ही नहीं कि हमारे बच्चे बुढ़ापा में मेरा साथ नहीं देंगे और बच्चे भी उस वक्त इन बातो को सुनकर बड़ा नाराज होते है जब एक माता पिता को आप बोल दे कि - आपको अपने बुढ़ापे के लिए सोंचना चाहिए नहीं तो फिल्म "बागवान" की तरह आपका हाल होगा |
तब माता - पिता भी बड़ी अजीब दृष्टि से देखते है जैसे हम उनके धरोहर को छिनने की बात कर रहे हैं | जबकि वहीं बच्चा उनकी धरोहर को धीरे धीरे छिनता हुआ उन्हें ऐसे हल्का कर देता है कि माता - पिता को उनकी लाड में उनकी बेवफाई ही नजर नहीं आती | तो ऐसे बुजुर्गो को क्या कहा जाए ? और ऐसी बुजुर्गो पर आप किस तरह की सहानुभूति का लेप लगाना चाहेंगे जिनकी आँखे 60 - 70 वर्षो में खुलती है |
अभी से लोग क्यूँ नहीं तैयारी करते ? यह बाते या बुढ़ापा उनके लिए और भी पीड़ा दायक है जिनके पास धन नहीं और न ही कोई पेंशन की सुविधा है | पेंशन वालो में कुछ % बच्चे ठीक है क्यूंकि वहां हर माह धन का आगमन होता है | मगर जहाँ बच्चे पर्याप्त धन कमाते है वहां इस पेंशन का कोई वैल्यू नहीं |
यह सवाल या फिर दौर कहे कि यह क्षण जो हर किसी के जीवन से गुजरता है या दस्तक देता है , बड़ा हीं असुलझा सा दौर है जिसे 10% से भी कम लोग समझ पाते है और 1% से भी कम लोग अपने आने वाले इस बुढ़ापा भरे मेहमान की स्वागत के लिए तैयारी कर पाते है | खैर ..... फिर भी चलती है दुनिया और चलती रहेगी , मगर ध्यान दीजिये अभी से | जिस तरह हम बारिश के आगमन से पूर्व या ठंढी के आगमन से पूर्व गर्म कपड़े की तैयारी में जुट जाते है , वैसे हीं बुढ़ापे की भी तैयारी कीजिये बड़ा हीं सुख और शांति मिलेगा इस दहलीज पर आकर और पिकनिक की तरह गुजर जाएगा बुढ़ापा आपका |
अब चलते चलते हम एक उदाहरन से आपको परिचय करा दे - जिस समाचार ने एक तहलका मचा दिया था | उस बुजुर्ग दम्पति का नाम है "विजयपत सिंघानिया" | 78 वर्षीय सिंघानिया उस वक्त बेघर हुए जब उन्होंने अपना 12 हजार करोड़ का शेयर अपने बेटे गौतम सिंघानिया के नाम कर दी | शेयर हाथ लगते हीं बेटे ने उन्हें घर से निकाला और उनके ड्राईवर और गाड़ी तक को छीन ली |
पिता के आरोप लगाने के बाद यह मामला जब बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचा तो यह समाचार देश के सामने बिना छत बारिश के बराबर नजर आया | विजयपत सिंघानिया ने अपनी कंपनी को सबसे बड़े ब्रांडो में से एक बना दिया जिसे आप रेमंड के नाम से जानते है | मगर यह व्यवसाय जैसे ही उनके बेटे को हाथ लगी वह इस कंपनी को अपनी जागीर समझने लगे |
पद्मभूषण से सम्मानित विजयपत ने "एन एंजला इन ए कॉकपिट" शीर्षक नामक एक किताब भी लिखी | ब्रिटेन से अकेले उड़ान भरकर भारत आने वाले देश के बड़े अमीरों में शुमार "रेमंड" ग्रुप के मालिक "विजयपत सिंघानिया" की ईमारत JK हाउस मुकेश अम्बानी की एंटीलिया से भी ऊँची रही | इस महान व्यक्ति को 78 वर्ष की उम्र में मुंबई में किराए के मकान में जाने पर मजबूर होना पड़ा | उनके बेटे गौतम सिंघानिया ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया | ये बूढी आँखे 2015 में अपनी सभी शेयर बेटे के नाम करके खाली हाथ रह गए |
JK हाउस 1960 में बनी 14 मंजिल की ईमारत थी जिसमे निर्माण किये गए विजयपत सिंघानिया को एक फ्लैट्स भी नसीब न हुआ | अन्य की बात तो दूर रही , जिंदगी का यह सच भरा उदाहरण है जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता | मगर हम यह नहीं कहते कि बच्चे साथ नहीं देते , मगर आप बुढ़ापे के लिए स्वयं में अपना साथी बनिए और सोंचिये अभी से फिर ! बुढ़ापा एक बोझ नहीं बनेगा , पिकनिक की तरह गुजर जायेगी ओझल आँखे भी हंसते हंसते | .......... ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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