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अभी आप हमारे साथ मौजूद है गुजरात की धरती सूरत के हरसिद्धेश्वर लाल मंदिर के नाम से विख्यात गणपति बप्पा के इस मंदिर के प्रांगन में जहाँ मुसक के कान में मुरादें बोल देने से कामना पूरी होती है |
यहाँ बन रहा है बप्पा की 25 फीट ऊँची प्रतिमा जो आने वाले गणेश चतुर्थी ( जन्मोत्सव ) में भक्तगणों के दिलो व मन को प्रफुल्लित करेगा |
अभी शाम का वक्त है भक्तो की भीड़ उमड़ रही है दर्शन के लिए | इस मंदिर में मुसक का एक ऐसा प्रतिमा है जो गणपति बप्पा के मंदिर की शोभा बढ़ाते दिखाई पड़ रहे हैं |
यह है गणपति बप्पा की प्रतिमा जहाँ पंडित और भक्तगण बप्पा की सेवा व आराधना करते दिखाई पड़ रहे हैं | बप्पा की जय जयकार के इस दृश्य को देख रहे हैं | आप महसूस कीजिये कि - इस दृश्य को साक्षात देखा जाए तो कितना आनंद मिलेगा |
यह है बप्पा की 25 फीट की प्रतिमा जो बहुत जल्द बनकर तैयार होने वाला है - खुबसूरत , अद्दभुत , चमत्कारी | वैसे भी बप्पा की प्रतिमा में एक अलग हीं आकर्षण होता है जो लोगो को अपनी तरफ खींचता है जिससे भक्तो को आशीर्वाद व फल की प्राप्ति होता है |
बप्पा के सेवक कमलेश भाई से हमारी मुलाक़ात हुई | बहुत हीं निर्मल व शांत व्यक्तित्व के धनी विचार वाले कमलेश भाई मंदिर घुमाते हुए वहां की जानकारी से हमें अवगत कराया |
इन्होने अपने जीवन का अधिकांशतः समय बप्पा की सेवा में समर्पित किया है | इनकी सोंच कि सही मायने में बप्पा की सेवा हीं सफलता की निशानी व पूंजी है |
हमारी मुलाक़ात पूजा करने आये बहुत सारे भक्तो से हुई जिसमे कई सारे भक्तगण के विचार हमने अपने कैमरे में कैद किया जिसमे एक भक्त की चर्चा हम अभी करने जा रहे हैं जिनका नाम है जयस भाई |
वैसे तो यह एक सरकारी सेवा से रिटायर हो चुके हैं | इन्होने कहा कि - मै पिछले 15 - 20 वर्षो से यहाँ आ रहा हूँ | सुबह हो या शाम यहाँ आने से मेरे मन में अद्दभुत शांति का अनुभव प्राप्त होता है | मै सिर्फ अपने लिए प्रार्थना नहीं करता , मेरी सोंच है कि - आप भी आगे बढ़ो और जो देश को आगे बढ़ाने की सोंच रखते है , अपनी जिंदगी को बेहतर बनाना चाहते है वे सभी जन अपने क्षेत्र और जीवन में आगे बढ़े | गणपति बप्पा से यहीं प्रार्थना करता हूँ कि - सबका विकास हो और सभी को सुख , शांति उन्नति मिले |
बातो के क्रम में हीं जयस भाई ने एक रहस्मयी बातो की तरफ मेरी दृष्टि का रुख मोड़ दिया | जब मैंने एक मुसक की प्रतिमा को देखा जहाँ कुछ लोग मुसक के कान में कुछ बोल रहे थे |
ऐसा मैंने जीवन में पहली बार देखा था | यह मुसक की प्रतिमा मंदिर में स्थापित गणपति की प्रतिमा के ठीक पहले और सामने है | ये मुसक लोगो की बातो को बप्पा तक पहुँचाने का काम करते है और ऐसे भी मुसक की फुर्ती से तो कोई वंचित नहीं |
जयस भाई ने आगे कहा - जरुरी नहीं कि आप यहाँ आकर हीं मुरादें मांगो | आप बप्पा को जब भी याद करो बप्पा वहां मौजूद होते हैं | मूर्ति तो पत्थर की बनी होती है , परन्तु मन में श्रद्धा हो न तो ईश्वर वहीं पर प्रगट हो जाते हैं |
मैंने इनसे पूछा - प्रथम पूज्य गणपति की सवारी मुसक हीं क्यूँ ?
इस सवाल पर जयस भाई ने कुछ सोंचते हुए कहा कि - इसपर तो मैंने कोई अध्यन हीं नहीं किया है | बस इतना जनता हूँ कि मुसक इनकी सवारी है और इनके कान में आप जो भी बोलते हैं बप्पा उसे सुनते हैं |
मुसक हीं बप्पा की सवारी क्यूँ ? इस राज का पर्दा तो जयस भाई ने नहीं उठाया | मगर इस बात का कुछ पर्दा हम जानकारी के आधार पर जरुर खोलना चाहेंगे ताकि हमारे पाठक को थोड़ी जानकारी व अनुभव प्राप्त हो | हालाकि बहुत सारी बाते अलग अलग तथ्यों को दर्शाता है , मगर उन्हीं में से एक राज जो काफी सटीक लगा हम आप तक पहुंचा रहे हैं | एक बात और बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ है कि - गणपति की सवारी चूहे का नाम डिंक है |
कहानी :- गजमुखासुर को गणपति बप्पा ने चूहे के रूप में अपना वाहन बना रखा है |
गजमुखासुर नामक दैत्य से देवतागण परेशान थे | परेशानी से क्षुब्ध होकर वे सभी बुद्धि के देव गणेश से सुझाव और मदद मांगी | दयालु प्रवृति के गणपति ने उन्हें गजमुखासुर से मुक्ति दिलाने का भरोषा देकर उस दैत्य से भयंकर युद्ध किया था | उसी युद्ध में गणपति के एक दांत भी टूट गए थे | टूटे हुए उसी दांत से जब गणपति ने उसपर प्रहार किया तो वह डर से भयभीत होकर चूहा बनकर भाग निकला |
लेकिन प्रथम पूज्य गणपति बप्पा की बुद्धि ने उन्हें खींचकर अपने पास ला खड़ा किया | यह चूहा अद्दभुत रंग बदलने वाला एक विशाल और शक्तिशाली चूहा था जो मिनटों में पहाड़ को भी कुतर डालता था | भगवान ने इससे कहा तुम जो चाहो हमसे वरदान ले लो मगर किसी को परेशान मत करो |
इतना सुनते हीं चूहे का अहम् जाग गया और उसने कहा - मुझे तो आपसे कुछ नहीं चाहिए | आप चाहे तो मुझसे वरदान ले लीजिये |
गणपति बप्पा अन्दर हीं अन्दर मुस्कुराएँ और कहा - अगर सही मायने में यह बाते सत्य है तो तुम हमारा वाहन बन जाओ |
चूहे के तथास्तु कहते हीं बप्पा उसकी पीठ पर सवार हो गए | बप्पा के भार से वह चूहा बड़ी तरह दब गया | असहनीय हालत में उसके प्राण पखेरू उड़ने हीं वाले थे ऐसा महसूस कर उसने बप्पा से क्षमा मांगते हुए अपना भार कम करने की विनती कर जीवन दान मांग लिया | तब से यह चूहा गणपति का महाभाक्त बना और इनकी सेवा में इनकी सवारी बन उस जगह मौजूद पाए जाते हैं , जहाँ जहाँ गणपति बप्पा की प्रतिमा मौजूद होती है |
ऐसी मान्यता है कि - गणपति की उपासना मुसक की उपासना किये बिना पूरी नहीं होती | ठीक वैसे हीं जैसे भक्त हनुमान की उपासना किये बिना श्री राम की कृपा व आशीर्वाद नहीं मिलता |
इस मंदिर में मुसक के कान में अपनी बातें कह दे और उसके बाद गणपति के पास अपनी याचना लेकर जाए तो वे मुसक की पैरबी सुन लेंगे | अब यह आप पर निर्भर है कि आपकी याचना में मुसक के प्रति कितना प्यार और सम्मान भरा है |
ये है मुसक डिंक जिनके हाथो में मोदक है | मोदक इन्हें बहुत पसंद है क्यूंकि यह बप्पा का पसंदीदा आहार है | वैसे तो बप्पा को मोतीचूर व बेसन के लड्डू , मोदक और केला बहुत पसंद है | मगर इससे भी ज्यादा जो पसंद है उसका नाम है श्रीफल | श्रीफल को देखते हीं बप्पा बहुत जल्द खुश हो जाते है और लोगो की मुरादें पूरी हो जाती है |
कुछ बाते हमने वहां के महाराज हरीश भाई दवे से पूछा तो उन्होंने बताया कि - लोग यहाँ दुखी मन से आते है और भरपूर खुशियाँ लेकर जाते हैं | महाराज ने कहा कि - यहाँ से कोई खाली हाथ नहीं जाता इस बात की गारंटी है | लोग रोते हुए श्रीफल लेकर आते है और सप्ताह भर भी नहीं होता कि मुस्कुराते हुए हमें इस बात से परिचित कराते है कि उनकी मनोकामना पूरी हो गई है |
महाराज जी कहते है - मंगलवार को श्रीफल लेकर आना , मेरी प्रार्थना और तेरी श्रद्धा दोनों लगा देंगे | एक हफ्ता बाद रिजल्ट सामने आता है और लोग मुस्कुराते हुए कहते है - काम हो गया महाराज | अब उस मनोकामना पूर्ण होने में मेरी कोई शक्ति नहीं , शक्ति उनकी है हम तो सिर्फ प्रार्थना करते है |
मैंने महाराज से पूछा कि - आप बताइये आपने भी बप्पा के सामने अपनी चाहत पूरी होने की बात रखी होगी ?
महाराज जी ने मुस्कुराते हुए कहा - बप्पा की सेवा करना हीं मेरी मनोकामना है | ये सुबह उठाकर अपने काम में लगा देते हैं , यहीं मेरी हसरते हैं कि मुझे सदैव सेवक बनाकर रखना और कोई धन - दौलत मुझे नहीं चाहिए |
अब इस मंदिर के विषय में थोड़ी जानकारी और खासियत बता दे -
इस मंदिर की स्थापना 1995 में सूरत शहर के पालनपुर पाटिया में की गई है | यह मंदिर हरसिद्धेश्वरलाल मंदिर के नाम से मशहूर है | इसलिए कि मन्दिर लाल रंग से रंगी अपनी आभा की सुन्दरता लिए बहुत दूर तक दिखाई पड़ता है | इस मंदिर में लोग अपनी मुरादे लेकर आते है जो बहुत जल्द पूरी होती है | एक दूसरे से यह बात फैलता हुआ बहुत दूर तक निकल गया जिसके बाद लोगो की कतारें बढ़ती चली गई और लोग अपनी मुराद लेकर यहाँ दस्तक देना शुरू कर दिया |
तापती नदी की बहती हुई निर्मल धारा की धरती पर इस मंदिर की स्थापना ने दिन व दिन लोगो के दुखो को हर लिया , क्यूंकि गणपति विघ्नहर्ता है | वे अपने बच्चे को दुखी नहीं देख सकते | ........ ( अध्यातम फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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