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आखिरकार "द कश्मीर फाइल्स" में जिस हकीकत को दिखलाया गया उसमे कितनी सच्चाई है , यह अब कश्मीर वालो की जुबां से सुनने को मिल रहा है | विवेक अग्निहोत्री ने सारे सबूत और साक्ष्य अपने हाथों में रखने के बाद फिल्म को बनाया जिस सच पर कश्मीर के लोगो ने मोहर लगाया |
बीके गंजू कौन थे ? जिनके खून से रंगा चावल आतंकियों ने इनकी पत्नी को खिलाने की कोशिश की थी |
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आज एक विडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमे एक लड़की यह बताती हुई दिख रही है कि -चावल के ड्रम में छुपे हुए बीके गंजू उनके अंकल थे यानि कि उनकी माँ के बहनोई |
आज भी इनकी पत्नी और बेटियां इस सदमे से बाहर नहीं आई है | फिल्म बनने से पहले घूंटता रहा हर दर्द घर के चौखट के अन्दर तक जिसे अब फिल्म के जरिये रास्ता मिला बह जाने के लिए |
बीके गंजू टेलिकॉम इंजिनियर थे | इन्हें पता चला कि - आतंकी इनके घर के पीछे खड़े है तो ये अपनी जान बचाने के लिए घर की तीसरी मंजिल पर रखे चावल के ड्रम में छिप गए थे |
आतंकी में एक नाम बिट्टा कराटे ( फारुख अब्दुल्ला ) भी शामिल था और ये बीके गंजू को नहीं खोज पाए | जब ये छत पर से जाने को हुए तो इनके मुस्लिम पड़ोसियों ने इन्हें बता दिया कि - बीके गंजू ड्रम में छुपे हुए है |
आतंकियों ने बीके गंजू को गोली मारी और उनके खून से सने चावल उनकी पत्नी को खिलाने की कोशिश भी की |
आतंकियों को किसी श्रोत से पता चला था कि - गंजू केंद्र सरकार तक मैसेज पहुंचाते है | इसलिए इन्हें तीन चार दिन पूर्व जान से मारने की धमकी भी मिली थी |
जानकारी के आधार पर आज कश्मीर के वे सारे परिवार जिनके सदस्यों ने जुर्म को सहा , वह आगे आकर सच्चाई बयाँ कर रहे हैं | अब जुबान नहीं रुकने वाली और 32 साल बाद एकबार फिर वह दर्दनाक दृश्य सबके सामने लाकर खड़ा कर दिया है विवेक अग्निहोत्री ने |
19 मार्च 1990 को बीके गंजू की हत्या हुई थी | साजिश के इस राज का पर्दा खोला है बीके गंजू के साथ काम करने वाले एक सख्श की पत्नी ने और बीके गंजू के परिवार की सदस्यों का वह दर्द जो अभी तक अन्दर हीं अन्दर सुलग रहा है , इस सुलगाव का कोई मलहम नहीं जो इन्हें राहत दे सके |
सालो तक दबाकर रखी गई बातो को अब कश्मीर के लोग सामने आकर अपने परिवार के हकीकत को मीडिया के सामने उजागर कर रहे हैं | फिल्म बनने के बाद पुरे देश का सपोर्ट पाकर कश्मीर की जनता के रगो में खून का दौड़ता हुआ फैलाव नजर आ रहा है | कुंठित मन 32 साल से इस दर्द को लिए खामोश जी रहा था |
यह लिखना सत्य है - कुछ कहने से या फिर दर्द बांटने से मन हल्का होता है | 32 साल बाद अब बेचैन मन को सर रखने के लिए कन्धा मिला | राहत के कुछ बूंद उनके दर्द को कितना ठंढा कर पायेगा ? यह आनेवाले कल पर निर्भर करता है | ....... ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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