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आज 26 जुलाई है ,कारगिल विजय दिवस | सर्वप्रथम भव्याश्री परिवार और भारतवासियों की तरफ से उन शहीद भाई - बहनों को सैल्यूट जिन्होंने हमारी रक्षा में अपनी जान की कुर्बानी देकर भारत माता की रक्षा की | हम उनके सम्मान में आज का दिवस मनाते है |
"कारगिल विजय दिवस" इसलिए नाम पड़ा ,क्यूंकि इस युद्ध की शुरुआत कश्मीर के कारगिल जिले से हीं हुआ था |
इस युद्ध का कारण था :-
भारत - पाकिस्तान के वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर दुश्मनों का प्रवेश करना | भारत की महत्वपूर्ण चोटियों पर पाकिस्तानी सेना ने कब्ज़ा करने के इरादे से कदम आगे बढ़ाया |लेह - लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क का नियंत्रण हासिल कर सियासिन ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को अनियंत्रित कर जमीन पर खतरा का दस्तक देना |
भारत और पाकिस्तान के सेना के बीच यह युद्ध लगभग 60 दिनों तक चलता रहा और 26 जुलाई को इसकी समाप्ति हुई जिसमे हमारे कितने भारतीय जवान शहीद हुए जिसकी कल्पना करके हमारी आँखों से बहती हुई अविरल धाराएं कभी रुकी नहीं |
भारतीय सेना की सोंच बस इतनी थी - "सर झुकेगा नहीं कदम रुकेगा नहीं , हमने तो ठान ली है अपने मातृभूमि की रक्षा में विजय पथ रुकेगा नहीं" |
"ऑपरेशन विजय" नाम से 2 लाख सैनिको को भेजा गया था जिसमे 550 सैनिक ने अपने जीवन का बलिदान देकर विजय प्राप्त किया और 1400 के करीब सेनागण घायल हुए थे | इनके मजबूत इरादों ने पाकिस्तानी सेना को हराने में कामयाब हुए |
लिखने वालो ने इनसे ही प्रेरणा लेकर लिखा है और कुछ लोग फिल्म देखकर प्रेरणा लेते है - "दिल दिया है जान भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए" |
आज का दिन इन शहीदों को याद करके प्रेम सुमन अर्पण करने का दिन है जो हंसते - हंसते कह गए - "खुश रहना देश के प्यारो अब हम तो सफ़र करते है" और वीर गति को प्राप्त हो गए | अपने आज को उन्होंने हमारे कल के लिए कुर्बान कर दिया |
अपने अनमोल जिंदगी को भेंट चढ़ाकर हमें जिस कर्ज से दबाया है उस कर्ज को हम कभी भूलेंगे नहीं | इसी कुर्बानी को याद करके हमें जोशीला बनना है और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहना है | ताकि इन्हें याद करके हम हर कल का खुशनुमा सुबह देख सके |
सेनाओं के रक्त से लाल होती मातृभूमि की रक्षा की जिम्मेदारी हमें पूर्वजो ने दी है | ऐसे हर रक्त की बुँदे मातृभूमि को समर्पित जिन्होंने हमें जन्म दिया है | हम फूल है इनके सदैव इनके लिए खिलते रहेंगे और झड़ भी गए तो गम नहीं , क्यूंकि इसी मिट्टी में मिलेंगे |
जम्मू कश्मीर राइफल के कैप्टन "विक्रम बत्रा" को लोग शेरशाह के नाम से नवाजा | इन्होने फ़तेह हासिल किया |
फिल्म कभी - कभी प्रेरणा देती है और कभी - कभी स्वयं इतिहास रचकर लोग रियल हीरो पर फिल्म बनाने के लिए मजबूर हो जाते है |
"तेरे खुशबु में बसे खत" फिल्म से प्रेरित होकर विक्रम बत्रा सेना में भर्ती हुए थे और एक दिन ऐसा आया जो देश के लिए स्वयं को कुर्बान होकर देश के लिए रियल हीरो बन गए | दिल से दिल के रिश्ते का यह तार जो धरती माता की सेवा में जुड़ता है तो वह तार स्वर्णिम अक्षरों में नाम लिखवाकर इतिहास में सदैव जिन्दा रहता है |
वे आखिरी साँस तक देश के लिए लड़ते रहे और आँखे बंद होने को हुई तो उन्हें कोई गम नहीं था |
विक्रम बत्रा कारगिल युद्ध के वो हीरो थे जिनका अभिनय 3 घंटे के लिए नहीं होता , पूरा जीवन भर के लिए उन्हें वर्दी की खुशबु मिलती है जिन्हें सीने से लगाकर वे गौरवान्वित होते है |
25 साल के विक्रम बत्रा जिस उम्र में लोग अपनी सपनों की उड़ान भरते है और भौतिक सुख सुविधाओं से लवलेश करोड़ो की गाड़ियों में ऐश करते है , इसी उम्र में वे पॉइंट 4875 से दुश्मनों को खदेर कर उस ऊँची चोटी पर तिरंगा लहराने का वचन पूरा किया और लहराते हुए तिरंगा को देखने के बाद नयनो ने सकूँ से आँखे हमेशा के लिए बंद की |
इन्हें याद करके रोम - रोम पुलकित होता है और सिहर उठता है मन का हर कोना | हमें याद आ रहा है मनोज मुन्तशिर का लिखा गीत का यह लाइन :- "ओ माई मेरी क्यूँ फ़िक्र तुझे क्यूँ आँख से दरिया बहता है ? तू कहती थी तेरा चाँद हूँ मै और चाँद हमेशा रहता है" |
विक्रम बत्रा पर फिल्म बनी जिसका नाम था "शेरशाह" और यह फिल्म हमें याद दिलाता है रियल हीरो के अभिनय का |
जोश ऐसा भरे जिसमे भारत भूमि की रक्षा में होश ही न रहे | ऐसे ही थे हमारे 14 वर्ष के खुदीराम बोस जिन्हें जुलाई माह में ही फांसी की सजा सुनाई गई थी | हालाकि 11 अगस्त 1908 को इन्हें जब फांसी के तख़्त पर ले जाया गया तो भारत माता के इस वीर सपूत ने हंसते - हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया था | यह एक ऐसी याद है जो कभी मिटती नहीं |
फांसी के पहले इन्हें जिस सेल में रखा गया था वो दिवार आज भी उनको नमन करता है जहाँ इन्होने कोयले से लिखा था - "एक बार विदाई दे माँ घूरे आसी , हांसी - हांसी परिबो फांसी देखबे जगतोवासी ...... क्यूंकि चाँद हमेशा रहता है |यह जगह था बिहार के मुजफ्फरपुर का सेन्ट्रल जेल |
कारगिल के युद्ध पर विजय पाने वाले शहीदों की उम्र भी उस दौर से गुजर रही थी जिसमे सभी 30 साल से कम ही थे | आज हम इसलिए उनकी याद में सर झुकाते है , क्यूंकि हमारी जिंदगी का हर एक पल उनके द्वारा दिया गया एक दान है |
अब चलते - चलते बस इतना हमें याद रखना होगा और एक बार फिर मनोज जी के इसी लाइन को दोहराना चाहेंगे जो हमें मातृभूमि के प्रेम रस में डूबो रही है | भारत माता की हर लाल को हमने याद की मोती की मालाओं में पिरोया है जिसे हम हर हाल में टूटने नहीं देंगे | "ए मेरी जमी महबूब मेरी मेरी नस - नस में तेरा इश्क बहे , फीका न पड़े कभी रंग तेरा जिस्मों से निकलकर खून कहे - तेरी मिट्टी में मिल जावा , गुल बन के मै खिल जावा बस इतनी सी है दिल की आरजू | ........... ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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