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मराठा आरक्षण की आग में तप रहा महाराष्ट्र | भूख हड़ताल पर उतरे सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल , अब उन्होंने पानी का भी त्याग कर दिया जैसे कि आरक्षण न मिलने पर उन्हें कबूल हो रेगिस्तान की तपती हुई रेत पर नंगे पाँव चलना |
महाराष्ट्र के सियासत में हलचल उत्पन्न होते हुए यह आन्दोलन का रूप कहाँ थमेगा , कहना मुश्किल है | 1 नवम्बर को मनोज जरांगे ने कहा - सभी राजनीतिक दलो की बैठक हुई मगर मराठा आरक्षण को लेकर कोई भी नतीजा नहीं निकला इसलिए अब मैंने पानी पीना भी बंद कर दिया है | उन्होंने कहा कि मराठा की आबादी 6 करोड़ है इसलिए महाराष्ट्र सरकार को फैसला करना हीं होगा | वे आरक्षण देने में जितना ज्यादा देर करेंगे उनको कीमत भी उतनी हीं चुकानी पड़ेगी इसलिए सरकार को सोंचना पड़ेगा | मराठा समुदाय से मैंने वादा किया कि हम आरक्षण के अधिकार का जीत लेकर हीं रहेंगे | वहीं उन्होंने हिंसा न कर अहिंसा के पथ पर चलने की बात करते हुए मराठा समुदाय से कहा है कि वे अपने अधिकार के लिए लड़े मगर हिंसा का रास्ता नहीं अपनाए और आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाये |
विधायक बच्चू कडू , मनोज जरांगे से मिलने आये थे | उन्होंने कहा कि उनके पिता भी एक मराठा है और उनके पास कुनबी जाती का प्रमाण पत्र भी है | वे मराठा को आरक्षण देने वाले पहले राजनीतिज्ञ हैं |
आन्दोलन का दौर न थमते देख कल ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई गई | यह मीटिंग ढाई घंटे तक चली जिसमे सभी पार्टी ने मराठा आरक्षण हेतु अपनी सहमति जताते हुए उनसे भूख हड़ताल समाप्त करने की गुजारिश की |
समाधान का हल कैसे निकले ? इसलिए उन्होंने स्वयं मराठा समुदाय से अपील की है कि वे आदालत के समक्ष अपनी बातें रखते हुए महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ पुलिस केस दर्ज करें | क़ानूनी व्यवस्था नहीं बिगड़ने को लेकर भी उन्होंने कदम बढ़ाया |
NCP चीफ शरद पवार भी आन्दोलन स्थल पर पहुंचे और भूख हड़ताल तोड़ने की कोशिश की | मनोज ने कहा है - सरकार को समय चाहिए तो वे स्वयं इस स्थल पर आकर ये बाते कहे और इसका कारण भी बताये नहीं तो आरक्षण मिलने तक आन्दोलन जारी रहेगा |
यह मुद्दा एक लम्बी क़ानूनी लड़ाई का हिस्सा है जिसे सुप्रीमकोर्ट ने 2021 में इसे असंवैधानिक करार दिया था | यह मुद्दा पहली बार 1997 में मराठा समुदाय के लिए अलग आरक्षण की मांग कर बैठा था | 2008 में राज्य सरकार द्वारा गठित एक समिति जिसकी अध्यक्षता पूर्व न्यायधीश आरएम बापट ने की जिसमे मराठो के लिए आरक्षण का समर्थन नहीं किया गया |
6 साल बाद एक बार फिर भाजपा के केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे की अध्यक्षता वाली एक समिति ने सरकार को एक रिपोर्ट समर्पित किया जिसमे कहा गया कि राज्य में मराठाओं की आबादी 32% है जिसे आर्थिक उत्थान की आवश्यकता है जिसके लिए आरक्षण जरुरी होगा |
पृथ्वीराज चौहान के कार्यकाल में मराठो के लिए सरकारी नौकरियां और शैक्षिण संस्थानों में 16% और मुसलमानों के लिए 5% सीट हेतु आरक्षण की प्रस्ताव को मंजूरी दी थी जिसपर बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2014 में कार्यान्वयन पर रोक लगा दी |
अब देखना यह है कि यह मुद्दा कैसे और कितना सुलझ पाता है और मनोज जरांगे की भूख हड़ताल और जल त्याग की वापसी कब होती है | कुछ भी हो मगर हिंसा न हो | अपनी बातो को मनवाने के बहुत रास्ते हैं जिसमे सदैव अहिंसा को हीं अपनाना चाहिए | ....... ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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