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भारतवर्ष को "सोने की चिड़िया" कहा गया है | वहीं भारतवर्ष में पदाधिकारी - अधिकारी के घर से सोने की ईंट निकलना भी अब मामूली सी बात हो गई है |
मध्यप्रदेश में उमरिया जिले के पदस्थ भू- सर्वेक्षण पदाधिकारी "मुनेन्द्र कुमार दुबे" के चार ठिकानों पर , बीते बुधवार को लोकायुक्त पुलिस द्वारा छापेमारी के दौरान , करोड़ों रुपये की सम्पति से पर्दा हटाया गया | छत्रपति नगर आवास से चार करोड़ की सम्पति , एक किलो सोने की ईंट सहित 60 लाख की FD के होने का साक्ष्य व सबूत प्राप्त हुआ | पुलिस ने अपनी इस करवाई को अंजाम दिया है , भोपाल , उमरिया , रीवा व शहडोल शहर में |
बीते बुधवार की अहले सुबह करीब पांच बजे हीं लोकायुक्त पुलिस ने दस्तक देते हुए करवाई की शुरुआत कर दी | शाम करीब 6 बजे तक साक्ष्य और सबूत खंगाला गया | सूचना के आधार पर लोकायुक्त SP राजेंद्र कुमार वर्मा ने कहा है कि - देर शाम तक करवाई जारी रही | वहीं लोकायुक्त निरीक्षक प्रमेंद्र सिंह ने कहा है कि - हमें मुनेन्द्र कुमार दुबे के यहाँ से करोड़ों की सम्पति जिसमे एक किलो सोने का ईंट भी शामिल है , प्राप्त हुआ है |
फोटो :- ETV भारत के सौजन्य से
मुनेन्द्र के० दुबे के घर पर छापामारी के दौरान जरुरी दस्तावेज खंगाले गए हैं , जिसके दौरान रजिस्ट्री की गई कॉपियां सहित बैंक के कागजात प्राप्त हुए और रीवा के पास वाले आवास से एक किलो सोने का ईंट बरामद हुआ | इनके यहाँ छापामारी , पूर्व में की गई शिकायत के आधार पर हुई है | इनकी काली कमाई का चिठ्ठा , किसी दूर दृष्टि वालो की नजर में कैद हुई | इसके बाद गोपनीय शिकायत रीवा लोकायुक्त कार्यालय पहुंची | फिर इस शिकायत पर गौर करते हुए SP लोकायुक्त राजेंद्र कुमार वर्मा ने सत्यापन कराया , तो शिकायत सही पायी गई | जिसके आधार पर मामला रजिस्टर्ड कर स्पेशल कोर्ट से दबिश देने के लिए सर्च वारंट जारी कर मुनेन्द्र कुमार दुबे के चारो ठिकानों पर छापेमारी का सिलसिला आरम्भ किया गया और दुबे के आवास से करोड़ों की समाप्ति , जो भ्रष्टाचार के माध्यम से जुटाई गयी थी बरामद हुआ , जो शर्मसार करने वाली है |
फोटो :- नवभारत टाइम्स के सौजन्य से
ऐसे अधिकारी - पदाधिकारी के भ्रष्ट मानसिकता के कारण हीं देश में गरीबी का आलम छाया है | कोई करोड़ों / अरबों की कैश पर ऐश करता पाया जाता है , तो वहीं इसी भारतवर्ष में किसी को पर्याप्त रोटी नसीब नहीं होती और वे इसी जुगाड़ में भटकते रहते है खैर ..... | मुनेन्द्र कुमार दुबे का तो अभी तक पता नहीं लग पाया है | क्यूंकि छापेमारी के दौरान वे मौजूद नहीं थे | लेकिन बहुत जल्द वे बरामद कर लिए जायेंगे | क्यूंकि अभी और तथ्यों का ब्योरा लेना बाकी है और इसकी भरपाई मुनेन्द्र कुमार दुबे , जो भू - सर्वेक्षण पदाधिकारी के पद पर विराजमान थे , हीं अपनी जुबानी बता पायेंगे |
भारत को लोग सोने की चिड़ियाँ कहते है | जहाँ इस पावन धरती पर वीरों ने जन्म लेकर भारतवर्ष को गौरवान्वित किया है | हर क्षेत्र में हर दौर में भारत की मिट्टी की खुशबू मौजूद रहकर , बच्चों को विश्व पटल पर मैडल दिलाने का कार्य करता रहा | मगर बड़े हीं अफ़सोस की बात है कि - इस सोने की चिड़ियाँ कही जाने वाली मिट्टी में , अब मिलावटी सपूत भी पैदा हो रहे हैं | आश्चर्य इस बात का है कि , उन्हें अभी तक पता नहीं कि हमें आजादी कैसे मिली और ऐसे लोग जानना भी नहीं चाहते | हमारे पूर्वजों ने अपनी खून - पसीनों को बहाते हुए शहीद तक हो गए , हमारी खुशियों व स्वतंत्रता के लिए | आज इसी धरती पर ऐसे लाल का बोलबाला है , जहाँ से सोने की ईंट , करोड़ों रुपये की सम्पति और लाखों रुपये बरामद किये जाते हैं | यह तो सिर्फ ट्रेलर का एक अंश है पूरी फिल्म तो बाकी है | अगर भारतवर्ष का सर्वेक्षण किया जाए तो - भारत की आधी आबादी इस कार्य में संलिप्त पायी जा सकती है | यह सभी जानते हैं , परन्तु संभव नहीं ! क्यूंकि साक्ष्य जुटाने में हीं वर्षों - वर्ष खर्च हो जायेंगे , क्यूंकि धीमी गति की फिल्म भी बनती है |
अपने महान भारत में ऐसे बच्चे , जिनमे 80 करोड़ के पास खाने के लिए पर्याप्त धन नहीं | तभी तो भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि - आगामी दिवाली तक , इन्हें मुफ्त राशन मुहैया कराई जाएगी | तो इसका साफ़ मतलब है कि - 50 करोड़ आबादी ऐसी है , जिसके पास धन की कमी नहीं और कितनों के पास धन गिनती के लिए वक्त भी नहीं |
भारत तो सोने की चिड़ियाँ थी / है और रहेगी | परन्तु अफसोस और क्लेश सिर्फ इस बात और राज का है कि - यहाँ सोने की ईंट और ईंट खरीदने जितना सम्पति ऐसे घरों में भरा परा है - "जहाँ अमीर बनाओ नहीं , अमीर बनो का नारा लगता है" | तभी तो हमारे भारत के बच्चे परेशान है और ठंढ के मौसम में इन्हें सात फीट का चादर भी नसीब नहीं , जो थोड़ी गर्माहट महसूस कर सके | क्यूंकि इन्हीं की चादर छीनकर ऐसे पदाधिकारी / अधिकारी , सर्द मौसम में , पसविना का कम्बल ओढ़कर हॉट रूम में सोते हुए गर्माहट महसूस करते है , तो वहीं गर्मी के मौसम में AC रूम और AC गाड़ी पर लुफ्त उठाते है | आखिर ऐसी कुर्सियों पर कलम लगाये तो लगाये कौन ? कुर्सियां आँखों के सामने मौजूद है , मगर मौन रहना सबकी मज़बूरी है ! न कलम चलेगी न जुबान | सभी में स्वयं को रुक जाने , वहीं के वहीं ठहर जाने का खौफ छुपा है | क्यूंकि यह कहना शायद अतिश्योक्ति न होगा कि - "अंग्रजों से लड़ना तो बहुत सरल था अपनों से लड़ना भारी है , कैसे जीये 80 करोड़ भारत की आबादी जहाँ फिसल रही हाथों से जिम्मेदारी है" | ..... ( न्यूज़ / फीचर :- आदित्या , एम० नूपुर )
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