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कोरोना के इस महामरी में भारत का दुर्भाग्य है कि , आज ऐसे - ऐसे लोग भारत की जमीं पर दिख रहे है जो इंसानियत को शर्मसार कर रहा है | आजादी तो इन्हें फ्री में मिली , पूर्वजों का पसीना बहा , खून बहा | फ्री में कैश और ऐश पाकर ये नहा रहे है | इन्हें क्या पता आजादी का मर्म ! दिल बहलाने के लिए 15 अगस्त , 26 जनवरी में ये देश भक्ति गीत सुनते हैं , तिरंगा फहराते हैं और कहते है - "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" | आज इसी अच्छे हिन्दुस्तान में नकाबपोश लोगों की वर्दी , जिसका रंग लिखना शायद उचित नहीं | लोग अपने रंग को स्वतः पहचान लेंगे कि उनका दोष कहाँ ! और कसूर कैसे हो गया ?
आज लाशों की अंतिम संस्कार पर भी आधारकार्ड और पैनकार्ड चाहिए | पहले पहचान किये जाए की गंगा नदियों से बहकर आती हुई लाशें बिहार का है या उत्तरप्रदेश का | भारत के इस शर्मसार दशा व परिस्थिति से आज जन अशांत सा हो रहा , वहीं रौंगटे खड़े हो रहे हैं | इंसानी फिदरत , सोंच और सरकारी व्यवस्था का इसे बालात्कार कहा जा सकता है |
बिहार से सटे जिले के बॉर्डर पर पुलिस अलर्ट है | उनके अंतिम संस्कार पर प्रतिबन्ध कर दिया गया है | इस कार्य के लिए प्रशासन की टीम लगातार मोनेटरिंग कर रही है | ऐसी शर्मिंदगी का कार्य तब से हुआ , जब बिहार के बक्सर में गंगा किनारे 110 और उत्तरप्रदेश गाजीपुर में 123 शव मिलने के बाद , दोनों राज्यों के जिला प्रशासन आमने - सामने खड़े हैं | तुम्हारी राज्य की लाशें तुम्हारी तरफ , हमारी राज्य की लाशें हमारी तरफ | भारत के इस अकरु व्यवस्था से उन लाशों को क्या लेना - देना ? वह कहीं के भी है , आखिर है तो भारतीय | कहाँ सोया पड़ा है प्रशासनिक व्यवस्था ? पूर्व में बिहार के गंगा में आने वाली उत्तरप्रदेश की लाशों पर रोक लगाया | अब गाजीपुर प्रशासन ने बिहार से आने वाले शवो को वापस लौटा रही है | गाजीपुर ने कोई लिखित सूचना या आदेश नहीं दिया है | विभिन्न गंगा किनारों से बहकर आने - जाने की घटना में 123 से ज्यादा लाशें थी , इसे देखकर प्रशासन के बीच हडकंप मच गया |
गाजीपुर में बिहार से आने वाले सभी रास्ते सील कर दिए गए हैं | लाशों के मिलने के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश के बाद हीं गाजीपुर प्रशासन ने सभी घाटो पर 24 घंटे निगरानी शुरू करवा दी है |
उन्नाव के एक घाट के किनारे 500 से अधिक लाशें रेत के भीतर दबा दी गयी थी | रात जोड़ों की बारिश हुई और सच दब न सका | उभरकर सामने खड़ा अपना बेआबरू नजारा दिखला गया | जहाँ बारिश के कारण जल स्तर बढ़ा और कई लाशें बाहर आ गई | 5 दर्जन से ज्यादा कुत्तें एक साथ होकर , उन लाशों की बोटी नोच - नोच कर खा रही थी | मानव अंग का क्षत - विक्षत यह रूप , कहाँ का अंग कहाँ , कुत्तें एक दूसरे पर झपट रहे |
कोरोना काल में यह आलम उत्तरप्रदेश का है | जब सहयोगी मीडियाकर्मी की आँखों देखा हाल , पढ़ा व सुना गया , तो दिल दहल गया | सुलग गया चिंगारी अन्दर हीं अन्दर | काश ! कि जल कर भष्म हो जाता तो टिशें नहीं मारती | कुछ देर बाद वहां प्रशासनिक अफसर पहुंचे और लाशों के ऊपर बालू डलवा दी गई | लाशें सड़ चुकी थी , इसलिए उसे निकालना मुश्किल हुआ |
फोटो :- दैनिक भास्कर के सौजन्य से
सूचना के आधार पर , उन्नाव के जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार ने परिस्थिति के इस सच को स्वीकार करते हुए कहा - हाँ घाट किनारे कई लाशें दफ़न हुई है और उनका रीति - रिवाज के साथ अंतिम संस्कार कराया जाएगा | मगर वहीं उन्नाव के SDM महोदय ने इस बात को झूठा करार दिया और कहा हम यहाँ जाँच करने आये हैं | यहाँ कोई लाश नहीं , न हीं कुत्ता लाशों को नोच रहा है | ये मीडिया ने अफवाह फैलाई है |
मीडिया जब अफसरों की पोल खोलती है , सरकार की व्यवस्था को बेआबरू करती है , तो ऐसे अफसरगण झूठ का सहारा लेते हैं | एक तरफ जिलाधिकारी महोदय और दूसरी तरफ SDM महोदय | आज की तारीख में तो ये दोनों हीं आमने - सामने खड़े हैं |
अफसरों से गलतियाँ हुई , यह स्वीकार करने में हर्ज हीं क्या है ? अगर गलती हुई है तो स्वीकार कीजिये और फिर सुधार कीजिये | मीडिया को इस तरह दोषी ठहराना ठीक नहीं , मीडिया देश का चौथा स्तम्भ है | ये हिला तो देश का हर उपलब्धि और नाम गूम होकर रह जाएगा , आप भी गुम होकर रह जायेंगे और आपकी पहचान खो जायेगी | क्यूंकि मीडिया हीं पहचान दिलाती है , तो आप जाने जाते हैं | ....... ( न्यूज़ / फीचर :- भव्याश्री डेस्क )
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