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तुलसी विवाह कार्तिक मास में संपन्न होता है | तुलसी का रूप माता लक्ष्मी का रूप है और शालिग्राम भगवान विष्णु का | शालिग्राम अवतार के बाद भगवान विष्णु का विवाह माता लक्ष्मी का एक रूप तुलसी के साथ किया जाता है |
चार माह पाताल जाकर चीर निंद्रा में लीन श्री हरि कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी के दिन पुनः अपने धाम वैकुण्ठ लौटते है | वैकुण्ठ लौटने से पूर्व भगवान विष्णु अपने शालिग्राम अवतार में माता तुलसी से विवाह रचाते है इसलिए परंपरा के अनुसार अगले दिन हीं तुलसी विवाह बड़े ही धूमधाम से सभी के घरों में मनाया जाता है |
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि के दिन हीं यह शुभ कार्य संपन्न होता है | तुलसी के पौधे को अत्यंत पवित्र , पूजनीय व माता के सामान माना गया है | हिन्दू परिवार के हर आँगन में तुलसी के पौधे लगाए जाते है |वहीं सदियों से निर्मित मकान के आँगन में तुलसी चौड़ा बनवाने की परंपरा रही है जहाँ सुहागिन महिलायें व माता के प्रति आस्था समर्पित करने वाले हर व्यक्ति नियमित रूप से जल अर्पण कर पूजा करते है | ऐसे घर में धन , सम्पदा की कोई कमी नहीं रहती , इसलिए कि जहाँ साक्षात माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु विराजमान हो वहां हर कुछ संभव है |
यह सभी लोग जानते है कि भगवान विष्णु ने बारी बारी से अवतार लिया और भविष्य में भी लेंगे | जैसे की श्री राम के रूप में , श्री कृष्ण के रूप में , वामन के रूप में , शालिग्राम के रूप में यहाँ सभी जगह पर ध्यान दिया जाए तो माता सीता , माता रुकमिनी या माता तुलसी सभी माँ लक्ष्मी के हीं रूप है |
इसबार यह शुभ दिन व तिथि शनिवार 5 नवम्बर को पड़ रहा है | द्वादशी तिथि का शुभारम्भ 5 नवम्बर की शाम 5 बजकर 8 मिनट से होगा और समापन 6 नवम्बर की शाम 5 बजकर 6 मिनट पर | उदय तिथि के अनुसार यहीं दिन निर्धारित है |
जानकारी के आधार पर हम आपको बता दे कि - अषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल की एकादशी तक इस बीच कोई भी शुभ कार्य जैसे - शादी , गृह प्रवेश या कोई भी निर्धारित मांगलिक कार्य हिन्दूजन नहीं करते | तुलसी विवाह के बाद सारे कार्य विधि विधान से करने का शुभ घड़ी आता है जहाँ एक विश्वास के साथ इस एकादशी को करने से सारी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती है |
भगवान विष्णु जब शयनकाल में चले जाते है तो इस अवधि में श्रृष्टि संचालन का सारा कार्यभाल भगवान शिव परिवार पर रहता है | सावन का पूरा महिना भोले बाबा माता पार्वती के साथ पृथ्वी का भ्रमण करते है | उसके बाद दिन आता है गणेश चतुर्थी का जहाँ गणपति बप्पा सबकी रक्षा करते है | उसके बाद माता पार्वती साक्षात माता दुर्गा के रूप में 9 दिन नव रूप में धरती पर विराजती है और सभी की रक्षा कर मनोमाना पूर्ण करती है | यह 9 दिन बहुत हीं महत्वपूर्ण माना गया है जिसे दशहरा के रूप में मनाया जाता है | ठीक इसके 20 दिन बाद दीपावली महोत्सव में पुनः माता लक्ष्मी विराजमान होती है और जिस घर में दीप प्रज्वलित किया जाता है वहां दस्तक देती है |
शालिग्राम पत्थर के रूप में भगवान विष्णु का अवतार लेना एक श्राप माना गया है जिसके बाद पुनः इन्हें श्राप से मुक्त किया गया | इस पत्थर की महता सत्यनारायण पूजन व अनंत पूजन में विशेष रूप से दर्शाया गया है |
हर सुहागन महिलायें अपने वैवाहिक जीवन को सुखी , समपन्न बनाने हेतु तुलसी चौड़ा में तुलसी पौधे को दुल्हन की तरह सजाकर सोलह श्रृंगार की चीजों को वहां समर्पित करती हुई अपने आँगन को गीतों से गुलजार करती हैं | ............ ( अध्यातम फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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