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माँ नारायणी कब , कहाँ और कैसे प्रगट हुई ? आज हम इसका साक्षात् सबूत आपके सामने पेश करेंगे | वैसे आरंभिक दौर से अनगिनत कलम ने अपनी अपनी शैली से इनकी जन्म की कहानी व कथा की प्रस्तुति की है जिसमे कितनी सच्चाई है और कितनी अनुकरण की गई इसपर हम अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हुए सीधा उसी स्थान पर आपको लिए जा रहे हैं जहाँ आप अपनी दृष्टि से उस स्थल को देखकर वहां के वशिंदा व पुजारी की जुबानी सुनकर मोहर लगा देंगे |
माँ नारायणी विभिन्न - विभिन्न रूप में जन्म लेकर अपने आशीर्वाद से लोगो को मालामाल किया जिसमे "माँ सीता" जिन्हें हम "माँ जानकी" के नाम से भी जानते हैं , ये साक्षात् माँ लक्ष्मी है |
बिहार का पवित्र स्थल "सीतामढ़ी" जो विश्व विख्यात है | वैसे देखा जाए तो बिहार कई तीर्थ स्थलों में सबसे अग्रिणी है | आप मानिये न मानिये मगर हम आपको इसका साक्षात् उदाहरण दे सकते है खैर ......... ! बात हम सत्ययुग की करे तो सत्ययुग की बाते हो और रामायण परिवार का जिक्र न हो तो ऐसा हो नहीं सकता | ऐसे में भगवान श्रीराम , माँ सीता , इनके भक्त श्री हनुमान और अहम् भूमिका निभानेवाले शिव महाभाक्त / विद्वान् रावण का जिक्र न हो तो ऐसा कभी हुआ नहीं और होगा भी नहीं |
देखा जाए तो आज की तारीख में इस कलयुग में भी लोग आम लोगो की तुलना रावण से कर बैठते है जो मेरे हिसाब से सही नहीं | नवरात्री के दशमी के दिवस पर रावण का पुतला बनाकर जलाना प्रचलन सा बन गया है | छठ महापर्व के अवसर पर भी ऐसा देखने को मिलता है | हर साल न जाने कितने करोड़ रुपये को इस अनुभूति को पाने के लिए लोग जला देते है , इसे रुपयो को जलाना ही कहा जाएगा इसलिए रावण की बहुत सारी बाते और पुतला सिर्फ जलाने भर के लिए नहीं होनी चाहिए , बातो को जिंदगी में उतारना भी मकशद बने यह जरुरी है |
माँ सीता का हरण रावण ने किया | छल से किया , यह भगवान श्रीराम जानते थे | यह इतिहास हमारे लिए बना जिसके हर दौर में हमें गहरे डूबना चाहिए | अब सीधा हम आपको उसी स्थल पर पहुंचा रहे हैं जहाँ माँ सीता ने जन्म लिया |
इस तालाब को गौर से देखिये , इस तालाब की पानी थोड़ा हरापन लिए दिखाई पड़ रहा है | आपको देखकर बड़ा अजीब लगेगा और आप इसे छूना भी पसंद नहीं करेंगे मगर जैसे जैसे आप करीब जायेंगे वह तालाब आपको अपनी तरफ खींचता प्रतीत होगा | सीढी उतरकर साक्षात् उस जल को स्पर्श कीजिये और जो मांगना है , 3 मिनट तक आँखे बंदकर मांग लीजिये |
जानकारी के आधार पर और अपनी अनुभूति से हम आपको अवगत करा रह हैं कि मुरादें पूर्ण होगी | इस जल की एक और भी खासियत है - जिस कदर माँ गंगा के जल में कभी कीड़े नहीं लगते उसी प्रकार यहाँ के जल में भी कभी कीड़े नहीं लगते जिसे यहाँ के पंडित ने बताया | यह स्थल सीतामढ़ी के पुनौरा में स्थित है | पहले यहाँ जंगल हुआ करता था , उस वक्त यहाँ राजा जनक का आधिकार क्षेत्र था |
जब 12 वर्षी तक मिथिला राज्य में बारिश नहीं हुई , लोग त्राह त्राह कर रहे थे | पशु पक्षी , जीव जानवर , मनुष्य , पेड़ पौधे सभी का बुरा हाल था क्यूंकि जल हीं जीवन है | बारिश न होना , दिल दहला देनेवाला प्रकृति का एक सन्देश है ऐसे में राजा को परेशान होता देख पुरोहित ने राजा जनक से मिट्टी में हल चलाने की बात कही जिसके बाद बारिश होने की बात शामिल थी |
ऋषि ने वह स्थान बताया , राजा जनक भारी संख्या में ऋषि मुनि , सिपाही व जनता के साथ उस स्थल पर पहुंचकर वहां हल चालाया | जैसे हीं थोड़ी मिट्टी बाहर निकली , एक मिट्टी के घड़े फूटने की आवाज उन्हें आई | जब ध्यान से देखा तो घड़ा फूट चूका था , आधे घड़े में एक नवजात शिशु दिखाई पड़ी | राजा जनक उस शिशु को अपने हाथ में उठा लिए जिसके साथ 7 अन्य शक्तियां भी शामिल थी | राजा जनक ने जैसे हीं उस बच्ची को गोद में उठाया वो सभी शक्तियां बच्ची के अन्दर समाहित हो गई |
अब राजा जनक सोंच में पड़ गए , इस बच्ची को वो कहाँ ले जाए , कैसे ले जाए ? क्यूंकि ऐसे राजा के लिए प्राण जाए पर वचन न जाए , ऐसी बात भी शामिल है | यह वह स्थान था जिस स्थान को राजा जनक ने पुंडरिक नामक ऋषि को दान में दे दिया था और दान में दी गई जमीन के अन्दर कितनी भी कीमती चीज का निकलना अधिकार में नहीं होता ऐसे में राजा ने उस बच्ची को ऋषि को देने की बात सोंची और ऋषि को दे दी परन्तु ऋषि ने कहा - इस बच्ची को मेरे कुटिया में रखना आगे चलकर मर्यादा का अपमान होगा | आप राजा है इसलिए इस बच्ची को अपनी बेटी बनाकर परवरिश कीजिये | राजा जनक ने उसी वक्त बच्ची को अपने ह्रदय से लगा लिया और आगे बढ़े तभी बारिश की हलकी हलकी बुँदे आसमान से गिरना आरम्भ हुआ |
सवाल यह था कि बच्ची को कहाँ छुपाया जाए ? जंगल से कुछ कोस दूर एक कुटिया बनाई गई जहाँ सभी को 6 दिन तक रुकना पड़ा | 6 दिनों तक लागातार घनघोर बारिश होती रही और क्षेत्र में खुशियाली हीं खुशियाली जान पड़ी | राजा जनक को यह समझते देर नहीं लगी कि यह बच्ची सामान्य नहीं बल्कि अद्भुत चमत्कार और दुःख दूर करनेवाली शक्ति की प्रतिक है |
सनातन धर्म में बच्ची के 6 दिन के बाद छठिहार मनाने का प्रचलन है | यह प्रचलन सत्ययुग से कलयुग तक जिन्दा रखा गया | बहुत कम लोग जानते है कि छठिहार का साक्षात् दर्शन माँ सीता से जुड़ा है आज वह स्थान सीतामढ़ी में जानकी मंदिर के नाम से जाना जाता है |
मगर हम बात कर रहे थे माता के जन्म के उस स्थान के विषय में जहाँ वो जन्म ली तो यह तालाब वही स्थल है जहाँ माँ का जन्म हुआ | उसी वक्त से इस जगह पर पानी भर गया और कभी सुखा नहीं इसलिए इसे एक तालाब का नाम दिया गया जिसे "सीता कुंड" के नाम से जाना जाता है | देखा जाए तो आये दिन न जाने कितने पर्यटक दूर दूर से इस स्थल और माता के दर्शन के लिए यहाँ आते है |
बाते बहुत है लिखने के लिए क्यूंकि इस मिट्टी में हीं विस्तार है | फिलहाल आप इस कुंड का दर्शन कीजिये जो हमने साक्षात् आपके लिए उस स्थल पर जाकर अपने मन और कैमरे से कैच किया | अगले फीचर में हम आपको इस जल की एक अद्भुत कहानी बतानेवाले है जिसमे साक्षात् उसी स्थल पर जाकर वहां के पंडित के सहयोग से आपको दर्शन कराएँगे | अपनी आँखों से देखिएगा अद्भुत चमत्कार और वहां से लिए चलेंगे हम मंदिर के उस स्थान पर जहाँ माता सीता का मंदिर बना है | यहीं की मिट्टी अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए ले जाया गया है |
अब चलते चलते एक बात और भी - जिस घड़े से माँ निकली उस घड़े में बहुत सारे ऋषि मुनि के खून भरे थे | इस घड़े को श्रीलंका से रावण ने इसी मिट्टी के अन्दर छुपाया था जिसकी कहानी हम आपको सुननेवाले है | ........... ( अध्यात्म फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर के कलम से )
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