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"मुझे जीने नहीं देती है याद तेरी" जी हाँ किसी महिला की गोद गर सुनी हो तो वह अपनी सुनी गोद में हर वक़्त अपने ललने के आगमन में तड़पती बेकल हुई इंतजार में डूबी रहती है | जिन्दा रहने के लिए , सपने पुरे करने के लिए और वंश को आगे बढ़ाने के लिए वो क्या क्या नहीं करती ! औलाद का होना सबसे बड़े धरोहर को पा लेने का दस्तक है |
जिन महिलाओं के गोद सुने है वो कहीं न कहीं से , किसी भी माध्यम से बच्चे को गोद ले लेती है | वहीं अनाथ आश्रम में अधिकांशतः ऐसे बच्चे पल रहे होते है जिन्हें एक मजबूर माँ अपनी बेवसी पर आंसू बहाकर उन्हें छोड़ जाती है | कोई छोड़ता है तो कोई गोद भर लेने के लिए तड़प उठता है |
उसी तड़प और तृप्ति मिलने की कहानी आज हम उन बच्चो को समर्पित कर रहे हैं जो अनाथ है | जिनके मन में गोद ली हुई माँ के लिए कोई प्यार / सम्मान / दर्द नहीं | काश ! वे बच्चे समझ पाते कि ऐसे अभागे को एक माँ मिली , नाम मिला , एक परिवार , इज्जत और जिससे वो वंचित होते उनका सबकुछ उनके नाम हुआ | अपने बाग़ के फूलो को तो हर कोई सींचता है मगर दूसरे वीरान पड़े हुए बागो को जो राहत दे , सींचे और एक फुलवारी का नाम दे दे तो उसे कहते है एक निर्मल माली | माँ भी एक माली का हीं रूप है जो बच्चे को सींचती है , उनका परवरिश , उनके जिम्मेदारी को गले लगाकर स्वयं के उम्र को उनपर निछावर कर सुखद अनुभूति कर स्वयं को मालामाल समझकर जीती है |
मगर आज की तारीख में सभी मालामाल नहीं बन पाती | कंगाल बनाकर भी कोई छोड़े तो कोई अफ़सोस नहीं मगर अपनी उसी माँ का मर्डर कर दीवार में चुनवा दे तो ऐसे बेटे को हम क्या नाम दे !
6 मई 2024 को एक बेटे ने अपनी माँ के गुम होने की सूचना नजदीकी थाने में दर्ज कराई | बेटे ने कहा - माँ मंदिर गई थी अभी तक नहीं लौटी | यह दर्दभरी कहानी मध्यप्रदेश के श्योरपुर वार्ड नंबर 7 की रहनेवाली उषा देवी जिनकी उम्र 63 साल थी की है |
उनके पड़ोसियों ने पुलिस को बताया - 5 मई को उन्होंने उषा देवी को देखा था , 6 मई को घर से निकलते किसी ने देखा नहीं | किसी की भी तो नजर पड़ती ! पारिवारिक माहौल से कुछ पड़ोसी भी वाकिफ थे और उषा देवी के भाई ने तो संदेह पर मोहर हीं लगा दिया और हत्या की आशंका जाहिर कर दी | भाई द्वारा संदेह जाहिर करने के बाद पुलिस ने बेटे दीपक को हिरासत में ले लिया और पूछताछ जारी की |
सख्ती बरतने पर दीपक ने माँ की हत्या करने और इनके शव को दीवार में चुनवा देने की बात स्वीकार की |
यह बच्चा जो इतना बड़ा हो गया उसे उषा देवी व उनके स्वर्गीय पति भुनेंद्र पचौरी जो रेलवे में कार्यरत थे , आपसी सहमति से अनाथ आश्रम से गोद लिया था | 2016 में भुनेंद्र पचौरी की मृत्यु हो गई , तब दीपक और उषा देवी घर में साथ रहते थे | माँ - बेटे की आपस में बनती नहीं थी | इस बीच दीपक दिल्ली चला गया और कुछ पूर्व वापस मध्यप्रदेश आने के बाद 6 मई को माँ की हत्या कर दी |
पुलिस ने दीपक की सारी स्टोरी को खुला रूप दिया जिसे सुनकर लोगो को आश्चर्य का ठिकाना न रहा | श्योरपुर एसपी अभिषेक आनंद ने बताया - पिता के कई फिक्स डिपोजिट में दीपक नॉमिनी था | अधिकारी होने के नाते उसने 20 लाख रुपया शेयर बाजार और सट्टे में गँवा दिए | अब उसकी नजर उषा देवी के 30 लाख की एफडी और उनके मकान पर टिकी |
माँ से रुपया माँगा तो माँ ने देने से इंकार कर दिया जिसके बाद आक्रोश में आकर बेटे ने उन्हें सीढ़ी से धक्का देकर नीचे गिराया | जमीन पर गिरी उषा देवी का सर हाथ में लेकर जमीन पर पटक पटककर लहुलुहान करते हुए दम निकाल दिया |अब लाश को इस हालत में कहाँ ले जाए ? शातिर दिमाग ने बाथरूम के हिस्से में शव को चुनवा दिया जिसे जाँच के दौरान पुलिस ने अपनी निगरानी में शव को बरामद किया |
बीते कल ट्रेन पर एक माँ अपने 6 माह के पुत्र को बहुत दुलार कर रही थी | मैंने गौर से बच्चे को देखा तो आँखे नम हो गई , बच्चे का दाहिना पाँव घुटने से नीचे का नहीं था | माँ - पिता के प्यार में कोई कमी नजर नहीं आई , इस रूप को हम क्या नाम दें ! माँ - पिता को ईश्वर ने ऐसी संतान देकर सजा दी या फिर बच्चा हीं अपने पूर्व जन्म के किसी पाप का प्रायश्चित करने इस रूप में जन्म लेकर गोद में आया | यह सोंच का विषय है और यहीं है अध्यात्म | आप माने या न माने मगर इस जन्म या आनेवाले कल के जन्म में पाप / पूण्य का भागीदार हर मनुष्य बनता है इसलिए सदैव अच्छा करना चाहिए | थोड़ा हीं कीजिये जिससे सामनेवाले की खोई हुई मुस्कराहट वापस ला सके , ऐसा नहीं कि उन्हें दर्द देकर आफत गले लगा ले |
गिव एंड टेक , सोंचना जरुरी है | अंजाम देकर सोंचने से क्या फायदा ? सदैव करने से पूर्व सोंचिये और अपने द्वारा लिए गए गलत निर्णय पर अंकुश लगाइए | याद रहे जिंदगी नहीं मिलती दूबारा इसलिए हैवान नहीं बागवान बने | ........ ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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