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"प्यार किया कोई चोरी नहीं फिर छुप छुप आहें भरना क्या" यह लाइन फिल्म "मुगले ए आजम" के गीत का है और इस फिल्म को लोगो ने काफी सराहा | यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है जहाँ युवराज सलीम अनारकली से बेइंतहा प्यार कर बैठे | उन्हें मालूम भी न था कि वे एक काम करने वाली की बेटी है और उनकी नूरभरी खूबसूरती पर फ़िदा होकर दिल दे बैठे |वहीं अनारकली ने भी यह नहीं सोंचा कि हमारा प्यार किस तरफ उड़ान भर रहा है | जिद्द इतना या फिर प्यार की परिकाष्ठा या फिर इसे इम्तहान कहे तो स्वयं को दीवार में चुनवा देने की शर्त पर भी कदम पीछे नहीं किया | प्यार इसी का नाम है जहाँ न उम्र की सीमा न जन्म का बंधन , नजरे सिर्फ सामने वाले को देखती है | इसलिए एक कहावत है जो काफी चर्चित है - दिल लगे दीवार से तो हूर क्या चीज है ? यह कहना जरुरी होगा कि - हर रिश्ता ऊपर वाले के द्वारा बनकर जमीन पर उतरता है | कब , कहाँ , किससे दोस्ती होगी या फिर प्यार ये लिखा होता है | फिर इसपर कोई भी कलम या उंगली उठाना शायद उचित नहीं |
आप समझ रहे होंगे प्यार पर हम इतनी बाते क्यूँ कर बैठे ? तो हम 14 फ़रवरी "वेलेंटाइन डे" जिसे वर्षो से पूरी दुनिया मनाती है या फिर हम कहे की सदियों सदी से तो यह भी गलत नहीं होगा | आइये हम जानते है आखिरकार ये 14 फ़रवरी और वेलेंटाइन डे है क्या ? जिसके आने पर हर वर्ष तहलका मचता है | कुछ संस्था ऐसी है जो इस दिन बहुत सारे बच्चे को पनिष्ट भी करती है | बच्चे कुछ नहीं कर पाते , परन्तु वे हार भी नहीं मानते और उनके लिए 14 फ़रवरी बन जाता है साल का पूरा महिना / पूरा दिन और इस दिन को छोड़कर मुठ्ठीभर लोग व कुछ संस्था वाले 365 दिन में बच्चो को कुछ नहीं बोलते |
हमें सबसे पहले यह जानना जरुरी होगा कि - आखिरकार हम उत्सव , त्यौहार , बर्थडे , न्यू ईयर या फिर किसी की पूण्यतिथि क्यूँ मनाते है ? जो इंसान इस दुनियां में नहीं उनकी भी पूण्यतिथि व्यक्ति विशेष नहीं होकर पूरा देश में मान्य है | यहाँ तक कि सरकार भी इसे हर साल दोहराती है |
संत वेलेंटाइन कौन थे ? जिसपर 14 फ़रवरी का दिन एक उत्सव और प्यार के नाम से जाना जा रहा है | जिसपर हर साल विवाद खड़ा होता है | संत वेलेंटाइन को जाने बिना हीं लोग 14 फ़रवरी को दोषी करार दे देते है और ये वहीं लोग होते है जिन्हें सिर्फ एक मुद्दा चाहिए होता है |
सूचना के आधार पर - अंग्रेजी बोलने वाले देशो में ये एक पारम्परिक दिवस है जिसमे प्रेमी अपने चाहने वालो के प्रति प्रेम का इजहार करने के लिए वेलेंटाइन कार्ड भेजते है , फूल का गुलदस्ता या फिर कोई खुबसूरत उपहार | अब यह तारीख दुनियाभर के लोगो ने अपना लिया | क्यूंकि प्यार करने वालो की दुनिया में कमी नहीं | जिस देश के लोग 14 फ़रवरी को प्यार का दिवस नाम से कुंठित होते है या फिर उन्हें पसंद नहीं तो फिर वह अन्य देश की संस्कृति क्यूँ अपना रहे है ?
संत वेलेंटाइन की सोंच प्यार को बढ़ावा देने में एक ऐसा नाम था जिन्होंने प्यार की नीव डाली , उनके लिए प्यार हीं जीवन था | परन्तु वहां के राजा क्लॉडियस को उनकी बाते रास नहीं आई | क्यूंकि उस राजा ने अपने राज्य में किसी को विवाह करने की अनुमति नहीं दी थी | राजा की सोंच ऐसी थी कि विवाह करने से पुरुषों की बुद्धि व शक्ति क्षीण होती है |
संत वेलेंटाइन ने राजा के इस आदेश का कड़ा विरोध कर रोम के लोगो को प्यार की परिभाषा देकर प्रेरित करना आरम्भ किया | कई अधिकारी और सैनिको की शादी भी करवा डाली | देखा जाए तो - प्यार की परिभाषा बहुत हीं सरल है जिसे एक बच्चा भी आसानी से समझ लेता है | राजा को यह बात बहुत बुरा लगा और उन्होंने 14 फ़रवरी 269 में उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया | बावजूद आज के दिन संत ने अपनी मौत से पूर्व जेलर की बेटी जो नेत्रहीन थी उनका नाम जैकोबस था उन्हें अपनी आँखे दान कर दिया |
संत ने मरने से पहले उन्हें एक पत्र लिखा - जिसमे आखिरी शब्द थे "तुम्हारा वेलेंटाइन" | तब से आजतक 14 फ़रवरी को प्यार के दिन के तौर पर मनाया जाने लगा और आज यह दिन पूरी दुनियां बड़े हीं श्रधा के साथ मनाती है |14 फ़रवरी संत वेलेंटाइन की पूण्यतिथि है |
संत वेलेंटाइन ने अश्लीलता को कभी प्यार का
नाम नहीं दिया | प्यार तो एक तपस्या , त्याग और बलिदान का नाम है जो सदैव
निछावर होता है |
प्यार शब्द निर्दोष है जिसमे लोगो ने दोष ढूंढना आरम्भ कर दिया है | ऐसे लोगो को ढोंगी कहा जाए तो शायद ! कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा | हमारे कहने का मतलब है - सच्चाई जाने बिना किसी को भी दोषी करार देना या फिर पनिश देना उचित नहीं | तभी से आज भी दृष्टि डोनेट करने का चलन बढ़ते - बढ़ते पुरे देश ने अपना लिया | क्यूंकि एक नेत्रहीन को पूरी दुनियां की खूबसूरती देखने का हक़ मिल जाता है |
14 फ़रवरी की बाते हो और बिहार के प्रोफ़ेसर मटुक नाथ चौधरी और जूली की चर्चा न की जाए तो वेलेंटाइन डे अधुरा रह जाएगा | साथ हीं देश से विदेशो तक की वह रोचक जोड़ी जिसे पढ़ने की , जानने की लोगो में इच्छा है उनके लिए हम हर दिन एक सच्ची कहानी अंकित करने वाले है जिसे पढ़कर लोगो में जागरूकता आएगी और प्यार को बस प्यार हीं रहने दीजिये | क्यूंकि यह निर्मल और उतना हीं पवित्र है जितना की माँ गंगा का जल |
चलते - चलते हम यह भी बताना चाहेंगे - श्रीकृष्ण , माँ मीरा , माँ राधा को प्यार का प्रतिक माना गया है | जबकि सभी को पता है भगवान श्रीकृष्ण का विवाह देवी रुकमिनी से हुआ था | बावजूद आज कहीं भी किसी भी मंदिर या तस्वीर में श्रीकृष्ण की जोड़ी देवी रुकमिनी के साथ नहीं देखी गई | जब भी देखा गया है तो राधा कृष्ण और कहीं - कहीं मीरा के साथ |
प्यार का रंग कहाँ बदरंग है ? अपनी सोंच को विस्तृत बनाकर इन्द्रधनुषी रंगों में पिरोइए तो पूरी दुनियां निराली दिखेगी और मन में नूर भर जाएगा | संत वेलेंटाइन की पूण्यतिथि को गर पूरी दुनियां श्रधा के साथ मनाना चाहती है तो इसमे बुराई क्या ? पूरी दुनियां हमारी है | इसलिए प्यार को बस प्यार हीं रहने दे , प्यार को कोई नाम न दे | ......... ( फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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