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एक अटूट सा रिश्ता , एक अनोखा सा प्यार
कैसा बनाया तूने ये गजब का संसार
कर गया कुछ ऐसी लीला , बना गया एक ऐसा बागवान
अब तू हीं बता , इस रिश्ते को क्या नाम दूँ ....... शायद ! भक्त और भगवान् |
कहते हैं - कैसा है ए मानव का संसार , जो चंद दिनों के लिए धरती पर आता है और हंसते , खेलते , रोते हुए अभिनय कर आखिरी सांसे लेकर फिर वहीं चला जाता है |
अगर माने तो मानव का पहला रिश्ता उसी से जुड़ा है , जिसने पूरी शक्ति व रिश्तों से परिपूर्ण कर , हमें धरती पर मानव रूप में उतारा है | वो खुद हमारे साथ यहाँ पर नहीं आ सकता , इसलिए वो हमें , एक रिश्ते के गोद में भेज देता है , जिसे दुनियां माँ - बाप कहती है | यह एक ऐसा रिश्ता है , जिसमे माँ - बाप , अपने बच्चों को आसमान के शिखर पर पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते | चाहे उन्हें कितनी भी कठिनाई का सामना क्यूँ न करना पड़े ! वे बच्चे में सारी खुशियाँ भर देने का भरसक प्रयास कर , सफल होने की कोशिश करते हैं , कामना करते हैं | चाहे अंजाम जो भी हो , अपने हर बीते हुए कल को भुलाकर , अपने बच्चों के लिए एक सुन्दर सा आने वाला कल बनाने में अपनी पूरी जिंदगी का एक - एक क्षण निक्षावर / समर्पित कर के खुश होते है |
हम अनभिज्ञ क्या जाने ? इस धरती पर आकर तो एक नया और अनोखा सा रिश्ता जानते है | जिन्हें माँ - बाप , भाई - बहन , दादा - दादी आदि के रूप में | लेकिन असल में जो मेरा पहला रिश्ता है , उस रिश्ते को हम आज भी नहीं जानते | हाँ इतना जरुर है , उस रिश्ते की खोज में हम हमेशा लगे रहते हैं , लेकिन सब बेकार , विफल |
ये मेरे खुदा , अब तू ही बता - कि तुझे हम क्या नाम दे ? कभी हम तुझे पहला माँ - बाप का दर्जा देते है , तो कभी दोस्त और भाई | लेकिन दिल आज भी अधुरा सा है | न मैंने तुझे कभी देखा और ना हीं तेरी आवाजों को कभी सुना है | लेकिन भी न जाने क्यूँ एक अपनापन सा लगता है ! हर सुबह तेरा हीं नाम लेकर जगता हूँ और हर रात तुझे हीं नमन कर सोता हूँ | इस धरती पर तू मानव की ऐसी कहानी गढ़ जाता है - जहाँ कोई मालामाल है , तो कोई एक दम सा कंगाल है | कोई हँसता हुआ जीवन बिताता है , तो कोई रोता हुआ | फिर भी तुझे सब बड़े हीं श्रद्धा से पूजते है | जब इंसान तेरे हर रूप को - कभी दुर्गा तो कभी काली , कभी लक्ष्मी तो कभी सरस्वती आदि ..... को एक समान पूज्य का अधिकार देता है | इंसान जब तेरी इतनी रूप को छोटा या बड़ा नहीं देखता , तो फिर तू इंसानी जिंदगी में क्यूँ भेदभाव / अंतर कर , दुखी कर देता है | फिर भी वे अपने आप को एक दिलासा भरा शब्द कर्म या भाग्य के अनुसार सोंचकर शांत सा बैठ जाता है | जिंदगी तेरे हीं हाथों में तो है , तू कब हंसायेगा और कब रुलाएगा और ऐसे हंसाते - रुलाते कब अपने पास बुलाएगा , क्या पता ? खैर ..... मैंने तुम्हारी तरह हीं एक रिश्ते को धरती पर देखा है और वो अपनी माँ - बाप आदि में तुम्हीं को पाया है | हर संकट में मैंने तुम्हें बचाते हुए देखा है | अब तू हीं बता इस रिश्ते को मै क्या नाम दूँ ? अगर मै तेरा भक्त हूँ तो तू मेरा भगवान ! अन्तोगत्वा मैने तेरे रिश्ते को एक हीं नाम दिया है .......... भक्त और भगवान |
वैसे तो हर इंसान , ईश्वर की आराधना विभिन्न रूप में , अपने ढंग , तौर - तरीका से करता है और लगभग सभी इंसान की खाली अंजुरी कुछ न कुछ मांगने हेतु नमन करती है , प्रार्थना करती है | क्योंकि वे दाता है , सबको देने वाला भाग्य विधाता | फिर भी इंसान भूल जाता है कि - वे किसी और की रचना है और उसी के द्वारा लिखे मार्ग पर चलना भी है | कहीं - कहीं देखा जाए तो , ईश्वर अपने भक्त को स्वयं से कहीं उंचा दर्जा दिया है | क्यूँ दिया है कहना मुश्किल है ! लेकिन इतना जरुर है कि अगर हम उन्हें श्रद्धापूर्वक बुलाते है , याद करते है , तो वे हमारे आसपास किसी न किसी रूप में प्रकट होकर , हमारी समस्या का समाधान जरुर करते है | इस बात को हमने देखा है , महसूस किया है और पाया भी है |
भगवान आते है , बुलाने वाला चाहिए | ठीक उसी तरह जिस तरह सबरी ने प्रेम में वशीभूत होकर भगवान श्री रामचन्द्र जी को अपनी जूठन बैर खिलाई थी | भगवान ने बैर नहीं खाया था , सबरी का प्रेम खाया था और यही सत्य भी है |
देखा जाए तो द्रोपदी चीरहरण के वक्त पांचाली ने भी भगवान श्री कृष्ण को , दिल से पुकारा था | फिर तानसेन भी कई बार अपने राग के द्वारा अनजाने हीं बहुत सारे करिश्मा कर गए , जो आज भी इतिहास बनकर जिन्दा है और हम उस घड़ी / समय को उदाहरण के रूप में अपने अनुज को परोसते है , बताते है | क्यूँ न हम - आप भी स्वयं में ही ऐसा कर ले कि इतिहास बन जाए और हम - आप चर्चा में हीं सही , युगों - युगांतर तक जीवित रहे | तो हमे स्वार्थ से परे उठना होगा |
आज भी हम - आप भगवान को बुलाते हीं है | भगवान है , भगवान आयेंगे , भगवान को आना हीं पड़ेगा | यह मेरा दावा है !
बस इतना कि हमें अपने ह्रदय को स्वच्छ , निश्छल व पवित्र बनाना होगा , फिर तो ......... हम भी अपने ह्रदय को चीरकर दिखला सकेंगे , श्री राम भक्त हनुमान जी की तरह | आज भक्त और भगवान की चर्चा अगर होती है , तो इससे बड़ा उदाहरण और सबूत क्या चाहिए ? फिर भी मन में उलझन है शायद ! ....... ( अध्यातम फीचर :- रुपेश आदित्या )
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