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बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया | इस फैसले ने महाराष्ट्र राज्य सरकार की नींदें उड़ दी है | सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक मराठा समुदाय शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े नहीं है इसलिए इन्हें आरक्षण नहीं दिया जा सकता | साथ हीं कहा है कि - आरक्षण की सीमा 50% से ज्यादा नहीं है , इसलिए इस सीमा का उलंघन भी नहीं किया जा सकता |
जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने कहा कि - इंदिरा सहनी फैसले पर पुनर्विचार की जरुरत नहीं है | उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि - मराठा समुदाय को आरक्षण के दायरे में नहीं लाया जा सकता | संसद ने संविधान संशोधन के जरिये आर्टिकल 342ए जोड़ा है | इसमें राष्ट्रपति किसी राज्य अथवा केंद्र शासित प्रदेश के किसी समुदाय को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के मान्यता दे सकते हैं | साथ हीं संसद भी कानून बनाकर किसी समुदाय को सामाजिक एवं शैक्षणिक रुप से पिछड़े समुदाय की सूचि में डाल या निकाल सकता है |
संविधान पीठ ने इस मामले पर सुनवाई 15 मार्च को आरंभ किया था | वहीं बम्बई हाई कोर्ट ने जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए कहा की - 16 फीसदी आरक्षण उचित नहीं है और रोजगार में 12% से अधिक नहीं होना चाहिए , नामाकंन में 13% से ज्यादा नहीं |
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है - मराठा आरक्षण समानता के अधिकार का उलंघन है | इसलिए मराठा समुदाय के आरक्षण कानून को ख़ारिज करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया |
मुख्यमंत्री उर्द्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि , वे इस मामले में दखल देकर कानून बना , मराठों को आरक्षण दें | मराठा समुदाय के स्वाभिमान के लिए हीं महाराष्ट्र के सरकार ने इसे पारित किया था | लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि - महाराष्ट्र सरकार ऐसा कानून नहीं बना सकती |
अब संविधान के अनुसार इस आरक्षण पर राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री हीं कुछ कर सकते है | अन्यथा जब तक इन्साफ नहीं मिलेगा , शायद ! आरक्षण का डिमांड जारी रहेगा | ..... ( न्यूज़ / फीचर :- भव्याश्री डेस्क )
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