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उत्तराखंड सरकार ने सिलक्यारा सुरंग में फंसे सभी 41 मजदूरों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए एक एक लाख रुपये देने की घोषणा की है | मजदूरों को बाहर निकालने के लिए सरकार और बचाव कार्य में लगे लोगो के साथ साथ देश के तमाम नागरिक परेशान थे | उनकी दिनचर्या सोंचकर लोगो की रूह काँप जाया करती थी | सुरंग में कैसा माहौल होगा , कैसे खाते होंगे , कैसे सोते होंगे , दिन कैसे कटता होगा रात कैसे गुजरती होगी आदि आदि ?
वहीं थोड़ा दिलासा अन्दर और बाहरवालो को यह सोंचकर होता कि चलो वो अकेले नहीं है | अन्दर मजदूरो के साथ बाते करनेवाला अपनी सुख और दुखो को शेयर करने के लिए एक बड़ी संख्या में साथी मौजूद हैं | अन्दर जो भी मजदूर थे , दो दिन के बाद उनका इंतज़ार टूटने को था | उन्हें लग रहा था - शायद हीं अन्दर से बाहर निकल पायेंगे ! उनके मन में बहुत सारी बाते उत्पन्न हुआ करती - पता नहीं जिंदगी का क्या होगा ? परिवार के दिल पर क्या गुजरती होगी ? चेहरे पर जैसे यह भाव प्रगट होता , उनके साथी उनका सहारा बनकर टूटते हुए मनोबल को मजबूत करने में जूट जाते | किसी तरह 9 दिन गुजरा बावजूद 41 मजदूर एक परिवार बनकर आत्मविश्वास से भरे हुए थे |
17 दिनों का वह दुखभरा दौर भी गुजर गया | एक बार फिर उपरवाले ने उन्हें नई जिंदगी से मालामाल कर दिया | पुरे देश में खुशियों की लहर दौड़ पड़ी जब इनके बाहर निकलने का सन्देश मिला |
9 दिन के बाद पहली बार इन मजदूरो को भरपेट खाना खाने का अवसर मिला जिसमे इन्हें खाने के लिए पाइप के जरिये - शाकाहारी पुलाव , मटर पनीर , चपाती और मक्खन भेजा गया | सेब , संतरा , निम्बू पानी और केले भेजे जा रहे थे | इतना तक कि दवा के साथ साथ नमक और इलेक्ट्रोल पाउडर के पॉकेट भी श्रमिको तक पहुंचाए जाते रहे | फलो के ज्यूस बोतल में भरकर और बोतल में हीं खिचड़ी और दाल भेजी गई | मल्टीविटामिन , सूखे मेवे और कुछ चटपटा मुरमुरा व नमकीन भेजा जाने लगा |
मजदूरो और सुरंग के अन्दर हाल जानने के लिए पाइप लाइन के जरिये सुरंग में कैमरा तक भेजा गया ताकि वहां के हालात से बाहर के लोग वाकिफ हो सके | कैमरे ने जो तस्वीरें कैद कि उसमे देखा गया कि वे 10 दिन कैसे सुरंग में रहने को मजबूर हुए | अन्दर इन सभी के लिए चार्जर और WIFI कनेक्शन लगाने की भो कोशिश की गई , यह बात मजदूरो के रेस्क्यू से जुड़े कर्नल दीपक पाटिल ने बताया |
अब चुनौती था 60 मीटर मलबे को पार करना | ये कार्य तो धीरे धीरे हीं करना था क्यूंकि सबसे बड़ा खतरा ड्रिलिंग के दौरान कंपन का था , सभी को डर था कि ड्रिलिंग के दौरान कहीं मलबा न गिर जाए | अब समझा जा सकता है रेस्क्यू टीम के सामने कितनी चुनौतियाँ पहाड़ की तरह डटकर खड़ी थी और इस चुनौती को स्वीकार करते हुए इन्होने जीत हासिल की | तभी कहा गया है - कोशिश करने वालो को कभी हार नहीं होती |
सरकार और तमाम एजेंसियों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी , तन , मन और धन की परवाह किये बिना बस एक हीं जूनून था - 41 फंसे हुए मजदूरो की जिंदगी को किसी तरह बाहर निकालना है |
उंगलियों पर गिनी जानेवाली दिन की गिनती मजदूरो में धीरे धीरे समाप्त होने लगा था और बाहर वाले भी अन्दर का दृश्य देखकर राहत महसूस करने लगे थे | सभी मजदुर एक जगह पर सफ़ेद चादर बिछाए खाने का सामान रखे दिख रहे थे जिसके आगे एक पाइप था | कुछ विडियो में मंजन , ब्रश , जीबी , टॉवेल दिखाई पड़े | खाने की हर चीजें दिखाई पड़ती रही और साथ दिखाई पड़ा उनका लूडो खेलना , एक दूसरे से हर कुछ शेयर करना |सुरंग के अन्दर एक जगह से पानी भी गिर रहा था जिसमे वे नहाते रहे | रौशनी थी जिससे उन्हें कठिनाई नहीं हुई वरना अँधेरे में तो जीना मुहाल हो जाता , सोंचकर हीं मन में घबराहट पैदा हो जाता है |
400 घंटा इन मजदूरो ने कभी ख़ुशी कभी गम की स्थिति में कितना बेकल हुए होंगे , समझा जा सकता है ! कभी मायूसी तो कभी नम आँखों से उपरवाले को कृपा बरसाने हेतु दुआएं माँगते हुए स्वयं में आत्मविश्वास भरते होंगे और यहीं कारण है कि अन्दर जितना आत्मविश्वास भरा या बाहरवालो ने अपनी पूरी ताकत जो लगाईं उसका अंजाम एक सफलता हाथ लगी और खुशियाँ बटोर ली गई |
इस कार्य में एनडीआरएफ , बीआरओ , आरवीएनएल , ओएनजीसी , एसजेबीएनएल , भारतीय थल और वायुसेना , कई संगठन , उत्तराखंड सरकार सहित कई अधिकारी और कर्मचारीगण की अहम् भूमिका रही | साथ हीं योगदान रहा हमारे पुरे देश के लोगो की जिन्होंने कई मन्नतें व दुआएं मांगी , इनकी सलामती और रेस्क्यू अभियान में लगे लोगो की सफलता के लिए |
बाहर आने के बाद इन मजदूरो के चेहरे पर एक अद्दभुत ख़ुशी व चमक देखी गई | उन 17 दिनों के गम को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सभी मजदूरो से बात करने पहुंचे | मुख्यमंत्री के चेहरे पर भी जीत की अद्दभुत चमक व मुस्कराहट देखी गई | मजदूरो को अपने हाथ से चादर व माला पहनाकर सम्मान से गले लगा लिया |
ये मजदूर देश के ऐसे सपूत हैं जिनके बल पर हमारी भौतिक सुख सुविधाएं टिकी हुई है | इन्हीं की देन है जो चिकनी सड़को पर हम चलते है और बहुत कुछ |
मुख्यमंत्री ने मेडिकल चेकअप के लिए सभी को एम्बुलेंस से अस्पताल पहुंचवाया | सभी की शारीरिक जांच हुई , जांच के बाद सभी 41 मजदूर पूरी तरह से स्वस्थ साबित हुए |
मुख्यमंत्री ने कहा - मजदूर नेशनल हाइवे इन्फ्रास्ट्रक्चर कारपोरेशन लिमिटेड के लिए काम कर रहे थे इसलिए एजेंसी ने सभी मजदूरों को 15 से 20 दिनों के लिए घर जाने की अनुमति दी है | संभावना है कि इन मजदूरो को एजेंसी द्वारा बिना काम किये एक एक माह की राशि भी परिवार से मिलने के दौरान दी जायेगी |
यही तो है जिंदगी , कभी ख़ुशी कभी गम से भरा , परिस्थिति कभी बोलकर नहीं आता , ईश्वर ने शायद इसलिए दो हाथ बनाए हैं | हर इंसान को हर दौर में मजबूती बनाये हुए आत्मविश्वास से भरपूर रहना चाहिए और सामना करना चाहिए उन दुखद परिस्थिति का भी जो अचानक सामने खड़ा होकर बेचैनी का दस्तक दे जाता है | उस परिस्थिति में अपने विचार को हिलने मत दीजिये , जीतने के लिए पूरी ताकत लगा दीजिये जीत आपके हाथ में होगी , इनकी तरह | ये परिस्थिति एक प्रेरणा बनकर आज हमारे सामने खड़ी है , इसे अपनाने की जरुरत है | ........... ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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