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कोई सागर दिल को बहलाता नहीं , बेखुदी में भी करार आता नहीं |
दिल क्यूँ बेचैन हो जाता है गम से ? और गम की दवा ख़ुदकुशी मान लेते है लोग | क्यूँ नहीं दुःख को मिटाने / दूर करने /भगाने की दवा ढूंढते है लोग ? आखिरकार कितनी और कैसी परेशानी है जिंदगी में जिससे जीवन को समाप्त करना हीं दुखो का अंत लगता है इन्हें |
शुक्रवार की शाम अधेड़ उम्र के एक व्यक्ति की लाश पेड़ से टंगा हुआ देखकर लोग चकित हो गए और पुलिस को जानकारी दी | पुलिस मौके पर पहुंची , लाश को पेड़ से उतारा गया , पूछताछ हुई और उसके बाद उस लाश की पहचान राजकुमार के नाम से हुई जो पास के हीं गाँव के रहने वाले थे |
शुक्रवार की शाम राजकुमार शराब पीकर घर आये थे | पत्नी , बहु , बच्चो से बाताबाती और बातो का बतंगर आरम्भ हुआ | उलझन को और भी उलझता देख राजकुमार घर से बाहर चले गए जिसके बाद उनके आक्रोश या दुखी मन ने उन्हें ख़ुदकुशी करने पर मजबूर किया |
राजकुमार की उम्र 50 वर्ष थी और ये गोरखपुर के गगहा के पकड़ी दूबे गाँव के रहने वाले एक दिहाड़ी मजदूर थे |
फिलहाल पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है |
जानकारी के आधार पर बीते कई दिनों से राजकुमार पारिवारिक कलह से परेशान थे | रोज रोज की किचकिच से वे तंग आकर ख़ुदकुशी कर बैठे | इनके 3 बेटे है जिसमे 2 का विवाह हो चूका है | बहुत दुःख की बात है कि एक घर से घर के मुखिया को ख़ुदकुशी करने पर मजबूर होना पड़ा |
आये दिन हमे ऐसे लोगो की खबर देखने / सुनने को मिलती है | कहने को तो हम चाँद पर भी पहुँच चुके है , मगर इस धरती के उलझन को कौन सुलझाए ? जहाँ शराब की नशा से नाजुक होती हालत और दिमागी नसे कमजोर परकर इन्हें अपनी शांति , मृत्यु के गोद में नजर आता है | जिंदगी नहीं मिलती दूबारा यह जानते हुए भी स्वयं की जिंदगी को समाप्त कर लेने हेतु जुर्म और गुनाह की तरफ कदम बढ़ा लेते है लोग |
आखिरकार इंसान अपना विवेक / बुद्धि क्यूँ खो बैठता है ? जो शराब जैसी नशीली पदार्थ को सेवन कर स्वयं की और परिवार की शांति भंग करता है | आज लोगो को स्वयं संभलना होगा , इसलिए कि शराब बनना बंद नहीं होगा | यह एक बिजनेस है इसपर पूरी तरह रोक नहीं लगाईं जाती है, क्यूंकि राज्य में हर साल इससे भारी मुनाफा आता है | ठेकेदार करोड़ो कमाते है , बेचने वाले बेचेंगे क्यूंकि इससे इनका घर चलता है और पीने वाले को पीने का बस बहाना चाहिए |
पहले इन्हें फ्री में पिलाया जाता है , फिर आदत पड़ जाने के बाद अपनी कमाई गई रकम शराब के पीछे लुटाते हैं और फिर शराबी कदम को पीछे करना संभव न हो तो ख़ुदकुशी तक इंसान पहुँच जाता है | आखिरकार इस दुःख की दवा क्या है ?
एक बात और यह समझ से परे है कि - एक तरफ नशा बेचा जाता है और दूसरी तरफ नशामुक्ति केंद्र खोले जाते है | यह असुलझा सा प्रश्न , प्रश्न हीं बनकर रह गया आखिर इसका जवाब क्या है ? ...... ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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