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ईरान में हिजाब व शुद्धता दिवस मनाये जाने को लेकर इस दिवस पर महिलाओं ने कड़ा विरोध जताते हुए महिलाओं का एक बड़ा समूह हिजाब उतारकर खुले बाल सड़क पर उतर आई | अभियान बढ़ता गया महिलाओं की संख्या बढ़ती गई |
ईरान अधिकारियों ने हिजाब व शुद्धता दिवस 12 जुलाई को घोषित किया है |
ईरान की सरकारी टेलीविजन ने हिजाब और शुद्धता समारोह का एक विडियो प्रसारित किया | 13 महिलाओं को हरे रंग का हिजाब और लम्बे सफ़ेद वस्त्र पहने हुए दिखाई और वे सभी महिलायें कुरान की आयते पढ़कर नृत्य कर रही थी |
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सोशल मीडिया पर यह दृश्य जैसे हीं छाया लोग जमकर अपनी - अपनी प्रतिक्रिया देने लगे | जानकारी के आधार पर हम आपको बता दे कि - 9 वर्ष से अधिक उम्र की ईरानी स्त्रियों को सार्वजिक रूप से हिजाब अनिवार्य बताया गया है | वर्षो से चले आ रहे महिलाओं की स्वतंत्रता पर हुकूमत करने वाली सरकारी तंत्रों के खिलाफ महिलाओं ने विरोध जताते हुए सड़क पर उतरी और शासन के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए अपने मन मुताबिक़ कपड़े पहनने पर जोड़ दिया |
इन महिलाओं के साथ वो पुरुष भी खड़े थे जो महिलाओं के लिए आधी भागीदारी का अधिकार देने के पक्ष व मुद्दे पर अड़े है |
हिजाब , शॉल , स्कार्प को सड़को पर फेक हर स्थान पर खुले होकर उन्होंने अपने स्वतंत्र होने का सबूत पेश किया | ईरान सरकार ने हिजाब को अनिवार्य बताते हुए देश के सुरक्षा बलो को इसमे सख्ती दिखलाने हेतु निर्देश दिया |
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ईरान में कानून के हिसाब से सरकारी नियम जो महिलाओं के हिजाब पहनने से इंकार करने पर महिलाओं को जेल या फिर भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है |
तेहरान में रेव्युलेशनरी कोर्ट में अध्यक्ष मौसा गजन फरावादी ने चेतावनी दी थी कि - कोई भी महिला हिजाब हटाने का विडियो शेयर करती है तो उसे 10 साल तक की जेल का सामना करना पड़ सकता है |
किसी भी देश की बात न करते हुए , हम अगर सिर्फ महिला और पुरुष की बात करे तो - सिर्फ महिलाओं को हीं क्यूँ बाल ढकना पड़ा , सर पर आँचल रखना पड़ा और घूँघट डालने पड़े ? इस धरती पर महिला और पुरुष दोनों का मान - सम्मान बराबर है , तो फिर अधिकार में छेड़छाड़ क्यूँ ? जिसे सत्ता मिली वह अपने मन मुताबिक़ प्रस्ताव पारित कर कानून बना देते है | आखिरकार पुरुषो के लिए कितने कानून बने है ? पुरे विश्व की सरकार को इसपर सोंचना होगा !
हम भारत की बात करे तो यहाँ रहने वाली मुस्लिम महिलाओं के साथ ऐसा नहीं है | वो हिजाब पहने या न पहने , वो घुंघट डाले या न डाले वो उनकी मर्जी | जिंदगी जिसकी है मर्जी उसकी , हाँ सिर्फ कानून को हाथ में न ले | परन्तु एक तरफ हिजाब न पहनने के लिए आन्दोलन हो रहे है , वहीं हमारे भारत में कुछ राज्य में हिजाब को अनिवार्य बनाने के लिए मुस्लिम महिलाओं ने अदालत तक में दस्तक दे दिया | काश कि ये महिला वहां होती और वो महिला यहाँ होती तो दोनों का जीवन सुखमय बीतता |
आजादी किसे पसंद नहीं ? वहीं महिलाओं की आजादी पर अधिकांश लोगो के सर में दर्द क्यूँ ? शायद इसलिए कि - घर की गुलामी ऐसी मानसिकता वाले पुरुष करना नहीं चाहते | शायद इसलिए कि - इसमे कड़ी मेहनत है और मनोरंजन नहीं | जैसे कि घर की साफ़ - सफाई और पेट का पेट्रोल जिसके बिना जिंदगी चलना मुहाल है | आखिरकार खाना पकाएगा कौन , बर्तन कपड़े साफ़ कौन करेगा ?
जिस बच्चे को महिला जन्म देकर परवरिश कर देती है , वो बड़े होकर कहते है - तुम महिला हो घर का काम करो , बाहर के लिए हम मर्द है न !
कब तक सहे महिला इस जुर्म को और बचने के लिए कौन सा रास्ता अपनाए ? मायका से लेकर ससुराल तक के सफ़र में उसकी जिंदगी समुन्द्र के एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक पहुँच जाने जैसा करार होगा जहाँ सिर्फ चलते जाना है | वह ढूँढ रही है साहिल , साहिल कहाँ मिलेगा ? तो बस चलते - चलते हम आपको यह बता दे कि - आपके मन के अन्दर छुपा है साहिल , बाहर मत तलाशिये मिलेगा नहीं | ......... ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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