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सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है , इस शहर में हर सख्स परेशान सा क्यूँ है !
कोरोना का दूसरा उभरता हुआ रूप कुछ ऐसा हीं कहर ढा रहा है लोगों पर , कि जिंदगी हथेली पर लिए चल रहें हैं रेगिस्तान की चिलमिलाती रेत पर | जहाँ सकूँ के कुछ पल भी उधार नहीं |
प्रतिदिन हजारों - हजार लोग कोरोना की चपेट से त्रस्त है | बीमार हुए तो उन्हें हॉस्पिटल पहुंचा दिया जाता है | अगर ! उनकी मृत्यु हो गई और पार्थिव शरीर घर आ गया तो इन दिनों परिजन को चार कंधे देने वाले नसीब से हीं मिल पाते है | ऐसा सुना था मगर ! कलयुग के इस आखिरी दौड़ में अब आँखों से दिखाई भी पड़ना आरंभ हो गया |
इंसानियत तब शर्मसार हुआ जब जौनपुर के मड़ियाहूं ठाणे इलाके के अम्बरपुर के गाँव के तिलकधारी सिंह की पत्नी राजकुमारी देवी , जिनकी उम्र 55 वर्ष थी | उनकी तबियत खराब होने पर , उनके पति मंगलवार को उन्हें लेकर जिला अस्पताल पहुंचे | जहाँ राजकुमारी जी की मृत्यु हो गई | उसके बाद राजकुमारी जी का शव एम्बुलेंस से घर पहुंचा दिया गया | शव के घर पहुंचते हीं ग्रामीणों ने कोरोना के डर से मुंह फेर लिया और अपना - अपना दरवाजा बंद कर लिया |
पत्नी के शव को बिगड़ते देख पति ने तन्हा हीं अंतिम संस्कार करने का संकल्प लिया | पत्नी को रित - रिवाज व कफ़न के बिना हीं साइकिल पर लिटाकर चल दिए | बूढ़े शरीर में अब वो ताव कहाँ थी जो पस्त कर दे औरों को | बूढ़े लोगों की आवाज में जितना ज्यादा ताव होता है , शरीर में उतनी ताकत नहीं रहती | ये सोंचे बिना हीं वे रुकते - थकते साइकिल को घिंचते चल पड़े |
रास्ते में हीं थक कर कल्पता हुआ बूढा शरीर शव को छोड़कर दूर जा बैठा और रोने लग गया | किसी तरह नदी के पास शव को लेकर पहुंचा | नदी के किनारे पहुंचते हीं लोगों ने आपत्ति जताई और अंतिम संस्कार होने नहीं दिया | अब इस बूढ़े शरीर की बेचारगी की , वह अपनी पत्नी के शव को क्या करें | सात फेरे व सात जन्मों का वचन लेने वाले पति आज बेवस व लाचार है कि इस जन्म में हीं अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार न कर पाना , सात फेरो के रिश्ते को कहाँ पूर्ण बनाता है | खैर वक्त के साथ बदलता है सोंच भी और आ जाते है लोग कहीं से फ़रिश्ते बनकर , जिससे कठिन परिस्थिति भी बहुत सरल हो जाता है |
पुलिस को इस बात की सूचना मिली तो उनकी मदद से शव को पुनः नदी किनारे से घर लाया गया और पुलिस ने कफ़न मंगवाया | पुरी रित - रिवाज के साथ अर्थी सजाई गयी और तब जाकर चार कन्धों का सहारा मिला और शमशान पहुंचाकर अंतिम संस्कार कराया गया |
ये थी एक ऐसी दुखद यात्रा , उस महिला का जिसने कितनों को सुख पहुंचाया होगा | कितनों के दुःख हरे होंगे | कहा जाता है पड़ोसी और समाज से बड़ा कोई नहीं होता | वक्त पर सबसे पहले इन्हीं का साथ और सहयोग मिलता है | लेकिन कहाँ था वो सब ..... !
कोरोना महामारी के दौरान सभी रिश्ते खाख हो गए , जरा भी लौ बचा नहीं था इंसानियत का | तभी बूढा शरीर तन्हा पड़ा | आज पड़ोसियों ने दरवाजे बंद कर लिए , क्या पता इस दौर का कि कब , कौन , कहाँ किसके लिए अपना दरवाजा बंद कर ले | यह सोंचकर अपने समाज को एक बेहतर रंगों में भरना जरुरी है , ताकि रिश्तों का रंग बदरंग न पड़े | अपने दिल का दरवाजा सदैव खोले रखिये , क्या पता किस रूप में मिल जाए भगवान |
ये सच्ची कहानी हमारे आत्मबल को मजबूत बनाती है कि - कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती | ..... ( न्यूज़ / फीचर :- भव्याश्री डेस्क )
नोट :- इस सच्ची घटना , जिसमे एक वृद्ध व्यक्ति अपनी पत्नी को साइकिल पर लेकर अंतिम संस्कार के लिए अकेला भटकता रहा का विडियो बनाकर किसी ने सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया जिससे यह विडियो वायरल हुआ और पुलिस को जैसे हीं पता चला उन्होंने अपना कदम आगे बढ़ाया |
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