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एक माँ ने अपने इन्स्टाग्राम अकाउंट पर अपनी बेटी की तस्वीर को पोस्ट किया है जिसे देख कोई भी भावविहल हो जाएगा | तस्वीर में डायपर पहनी एक नन्ही बच्ची खड़ी है , बच्ची के उपरी हिस्से पर कपड़े नहीं है , इस बच्ची का नाम वेरा मकोवी है | बच्ची की पीठ पर उसका नाम , मोबाइल नंबर और घर के रिश्तेदार का पता लिखा हुआ है |
इस सूचना को पढ़कर हर कोई सोंचने पर मजबूर होगा , तो इसके पीछे का राज हम बता दे - यह बच्ची युक्रेन की है | इसकी माँ का नाम साशा मकोवी है जिन्होंने अपनी बेटी के पीठ पर इस पता को अंकित किया है | इसलिए लिखा कि अगर रुसी सेना के द्वारा वो मारी जाती है तो उनके बच्चे को उनके परिवार के सदस्यों तक सुरक्षित पहुँचाया जा सके |
इस तस्वीर को जिसने भी देखा उसका दिल टूटा | एक माँ की तड़प व वेदना भरी सोंच व रिस्ते हुए दर्द पर किस भावना का मलहम लगाया जाए | यह पहली माँ नहीं जिन्हें अपनी अकाल मौत के बाद अपने बच्चे की चिंता खाई जा रही है | युक्रेन में ऐसी कितनी माएं है जो हर पल डर डरकर सांसे ले रही है | क्या पता रुसी सेना द्वारा सांसो की गति कब रोक दी जाए ? और मेरे बच्चे अनाथ भरी जिंदगी जीने पर मजबूर होकर बिखर न जाए |
इसलिए उन्होंने यह रास्ता निकाला और साशा मकोवी ने साक्ष्य और सबूत के लिए सोशल मीडिया पर इस तस्वीर को शेयर कर दिया | अभी विश्व में कई देश इस मुद्दे पर चिंतन कर रहे हैं और चिंता भी | मगर उन माओं के विषय में कब फैसला लिया जायेगा - जब वे स्वयं को खो देंगी और बच्चे को इस हाल में छोड़ने पर होती रहेंगी मजबूर |
याद करने वाली बात है कि - यहीं बच्चे आनेवाले कल के लिए देश व विश्व का भविष्य है , अगर ये रहेंगे नहीं तो देश किसके हाथ में सौंपा जाएगा ?
11 साल के एक बेटे को माँ ने वीजा के साथ ट्रेन में बिठा दिया और वे अकेले 1000 किलोमीटर का सफ़र तय कर दूसरे देश स्लोवाकिया पहुंचा |बच्चे का नाम हसन इसेका है | उसकी माँ ने दिल पर पत्थर रखकर बच्चे को स्वयं से दूर भेजना मुनासिब समझा | इस मजबूर बेवस हुई माँ का नाम जूलिया इसेका है और ये युक्रेन की जेपोरिजिया की रहने वाली है |
ध्यान देने की बात है कि - ऐसे बच्चे को पैरेंट्स उंगली पकड़कर स्कूल पहुँचाने का काम करते है | आज एक अबोध बच्चा अकेले दूसरे देश जाने का सफ़र कर कैसा अनुभव किया होगा ! मासूम मन पर कितने आघात पहुंचे होंगे , इसे शब्दों में व्यक्त करना बड़ा हीं मुश्किल है |
इस घटना को कोई लिख रहा है तो कोई पढ़ रहा है , परन्तु झेलने वाले की पीड़ा कितनी गहरी होगी जिसे महसूस किया जाएगा तो लगेगा कि - एक स्वतंत्र जीवन पर किसी ने तेज़ाब डाल दिया हो |
दुनियां में रूस के राष्ट्रपति पुतिन जैसे कितने लोग ऐसे हैं , जिन्हें दूसरे को दुखी करने पर सुख मिलता है | सोंचने वाली बात है कि - कोई सारी दुनियां को भी जीत ले तो क्या वह दुनियां का मालिक बनकर सुखद जिंदगी जी सकता है | काश ! ऐसे लोग "जीयो और जीने दो" का मतलब समझ पाते |
कुछ दशक पहले हमने एक फिल्म देखी थी जिसका नाम था मिस्टर इण्डिया , जिसमे अमरिश पुरी ने गजब का अभिनय किया था | इस फिल्म को देखकर लोगो ने उन्हें ढेर सारी गलियां परोसी थी |इस फिल्म का एक डायलॉग आज भी उनकी क्रूरता को दर्शाता है - "मैगेम्बो खुश हुआ" | हालाकि यह तो एक 3 घंटे की फिल्म थी जिसमे किसी देश के नागरिक को खतरा नहीं हुआ | मैगेम्बो का अंत भी सुनिश्चित था , क्यूंकि जो आया है दुनियां में उसे तो एक न एक दिन जाना हीं है |
ऐसे में युक्रेन पर रूस का प्रहार ठीक ऐसा है , जिस तरह जापान का हिरोशिमा और नागासाकी |आज भी लोग याद करते है - अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन जिन्होंने यह तबाही मचाई | आज इस दुनियां में वे नहीं है परन्तु मरने के बाद भी वे लोगो के नफ़रत का शिकार है | मैंने एक लाइन आज भी सजोकर अपने दिल में बिठाकर रखा है और शायद जीना इसी का नाम है - "कबीरा जब हम पैदा हुए जग हँसे हम रोये , ऐसी करनी कर चलो हम हँसे जग रोये" | ........ ( न्यूज़ / फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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