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ईश्वर की प्रतिमा में शामिल हो चुके बॉलीवुड अभिनेता अरुण गोविल जिन्होंने रामानंद सागर द्वारा निर्मित टीवी सीरियल "रामायण" में श्री राम की भूमिका निभाकर दर्शक व श्रधालुओं के लिए श्री राम बन गए और यही सच है कि आजतक लोग इन्हें उसी रूप में देख रहे हैं | इसलिए की भगवान श्री राम के रूप में इनकी तस्वीर हर जगह देखने को मिल जाता है और लोग नतमस्तक हो जाते है |
रामायण का प्रसारण अरुण गोविल जी की जिंदगी में इतना प्रकाश भरा कि वे रातो रात जमी से उठकर सिर्फ आसमान की बुलंदी को हीं नहीं छुआ दर्शक व श्रधालुओं के दिलो में अपना पवित्र घर भी बना लिया | हर मजहब के लोगो ने इनको अपने दिल में उतारा है | श्रद्धा भाव से इस सीरियल को देखा और सत्ययुग का आनंद लिया |
आज हम कलयुग के दौर से गुजर रहे हैं जिसमे सत्ययुग शामिल है , इसलिए कि सत्ययुग में हीं भगवान विष्णु मनुष्य रूप में श्री राम बनकर जमीं पर कदम रखा था और पवित्र कर दिया वह स्थल जहाँ अयोध्यावासी आज भी लुफ्त उठाते हैं |
हम बात कर रहे थे अरुण गोविल की तो आज भी कई स्टेट के वाहन में श्री राम बने उनकी तस्वीर पर लोग फूल मालाएं चढ़ाकर अगरबत्ती दिखाते हैं | इसे कहते है आस्था , आस्था जब दिल से गुजर जाता है तो वो जज्बात में घर कर के छलक जाता है और उसी छवि को भगवान का रूप / वजूद मानकर अपनी आत्मा में भगवान को ढूंढते हुए मनुष्य के उसी भगवान बने रूप की पूजा करता है |
आज भी मनुष्य के भोलेपन की कमी नहीं तो यह कहना शायद ! अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कलयुग में कहीं न कहीं कुछ दिलो में आज भी सत्ययुग ज़िंदा है तभी एक अभिनेता ईश्वर बन गए और आज भी दिलो में मौजूद है | वास्विकरूप में तो वे एक अभिनेता है मगर आस्था की पहुँच इस सच को कबूल नहीं करता मगर मम बोलने पर भी बच्चे को पानी मिलता है इसलिए यह तस्वीर भी मनुष्य को राहत देनेवाला है और यह सच है - रूप चाहे किसी की हो अगर आप भगवान को याद करते हैं तो शक्ति उसी प्रतिमा में समाकर आपको आशीर्वाद भी दे जाता है जिसका मतलब है श्रद्धा के आगे सभी कुछ व्यर्थ क्यूंकि भगवान भी आपके मन के हीं पुजारी है उसे पढ़ लेते हैं |
अरुण गोविल और माँ सीता बनी दीपिका टोपीवाला जो आज दीपिका चिखलिया के नाम से जानी जाती है को देखकर वृद्ध महिला व पुरुष तक इनके चरण धोये , पूजन किये और आशीर्वाद मांग लिए | वह सम्मान लिखने के लिए हमारे पास शब्द नहीं क्यूंकि आस्था को हम कभी भी शब्दों में अंकित नहीं कर सकते न भाव में उतार सकते है | इतना मान - सम्मान और आस्था देखकर ये सभी भावविहल तो हुए हीं उसके बाद उन्होंने बॉलीवुड की फिल्मों से मानो मुक्ति हीं ले लिया हो और ऐसा इसलिए हुआ कि श्री राम की भूमिका अदा करने के बाद वह कौन सी भूमिका अदा कर पाते ! इंसान के लिए ऐसी भूमिका करना उन्हें सिर्फ महान ही नहीं बनाता बल्कि उनकी आत्मा को भी पवित्र करता है और प्रकृति का सुन्दर रंग मन में भरकर उनमे एक ख़ास चमक पैदा कर भगवान बना देता है |
सच तो ये है कि श्री अरुण गोविल जी ने आरंभिक दौर में कुछ फिल्मे की थी | उनके चाहनेवाले की कमी नहीं थी मगर तब इतनी शोहरते नहीं मिली कहा जा सकता है जिसे उन्होंने बॉलीवुड के किसी फिल्म में या किरदार में जीया हो ! ऐसा महसूस होता है कि ईश्वर ने उन्हें बॉलीवुड का रास्ता शायद इसलिए दिखाया होगा क्यूंकि उन्हें रामानंद सागर के रामायण में श्री राम बनना था | श्री राम के इस किरदार में उन्हें जो उंचाई मिली आजतक के फ़िल्मी इतिहास में ऐसा सम्मान किसी को शायद हीं मिला होगा | बॉलीवुड की अनेक भक्ति फिल्म या फिर किसी राज्य की भक्ति फिल्म या सीरियल में ऐसा हुआ हीं नहीं जैसा कि रामानंद सागर द्वारा बनाए गए सीरियल रामायण में भूमिका निभानेवाले हर विशेष पात्र को मिला होगा |
इस राज से अरुण गोविल भी वाकिफ होंगे तभी इनदिनों में भी उनके शब्दों में मिठास और प्रकाश दोनों का समावेश पाया जा रहा है | उनकी शब्दों की वाणी में इतनी मधुरता है कि आदमी का मन , मस्तिष्क उमंगो के बीच तैरता नजर आता है | वह स्वयं को पवित्र स्थल के बीच खड़ा होने की अनुभूति महसूस करता है | वहां का वातावरण निर्मल बन जाता है और लगता है जैसे वहां आस्था की निर्मल पवित्र धाराएँ बह रही हो |
समुन्द्र के किनारे पर आज भी जब खड़े होते है तो हिलोरे आपको छूकर वापस लौट जाती है | वहां आपको बहुत सारे आशीर्वाद मिलते है लेकिन इसे महसूस करना होगा कि समुन्द्र के उस जल में स्वयं नारायण का निवास स्थान है जहाँ वे शेषनाग की सैय्या पर माता लक्ष्मी के साथ विराजमान है | समुन्द्र की हिलौरे का वह अनुभव या फिर उगते हुए सूरज की अनुभूति जहाँ आप समुन्द्र में उनकी आभा का रूप दर्शन देखते हैं या डूबते हुए सूर्य की गति को महसूस करते है | सूर्य की चमक समुन्द्र की शोभा को अनगिनत गुना बढ़ा देता है मगर यह आनंद सभी को नहीं मिलता और सभी लोग इसे महसूस भी नहीं कर सकते | तभी कहा जाता है कि सूर्य में उतनी गर्मी कहाँ कि व समुन्द्र को सोख सके वैसे हीं कलयुग में वैसी ताकत कहाँ कि सत्ययुग की सच्चाई को पाट दे या श्रद्धालुओं के दिल से निकाल दे | बस यही तो मंत्र है , तंत्र है शक्ति को स्वयं में उतार लेना और यहीं पर आदमी को लोग भगवान का रूप समझकर नतमस्तक हो जाते है |
भगवान हर रूप हर रंग , प्रकृति के कण - कण में विराजमान है मगर लोग उन्हें ढूँढ हीं नहीं पाते | कुछ लोग आज भी धरती पर मौजूद है जो सत्ययुग को ज़िंदा करके रखा है भगवान के आगमन के लिए क्यूंकि भगवान विष्णु का एक रूप तो अभी आना बाकी है | बहुत जल्द हम आपको उस स्थल के विषय में बताएँगे जहाँ भगवान विष्णु अवतार लेने वाले हैं क्यूंकि पुराणों में हर कुछ अंकित है इसलिए कि देवलोक भी मनुष्य से दूर कहाँ ? पहले के लोग तो देवलोक तपस्या के द्वारा पहुँच जाया करते थे जहाँ साक्षात भगवान से उनकी मुलाक़ात हो जाया करती थी | आज लोग भगवान को पाना हीं नहीं चाहते तभी तो यह धरती राक्षसी प्रवृति वालो से धरा परा है और भगवान ऐसे घर में निवास नहीं करते मगर धरती पर प्रकृति में आज भी वह मौजूद है ढूंढीये तो मिल जायेंगे तभी तो हम जिन्दा हैं | ............... ( अध्यात्म फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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