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सनातन धर्म में सर्वप्रथम पूजा भगवान श्री गणेश की होती है | इन्हें बुद्धि का देवता कहा गया है , गणपति आदिदेव है |
सतयुग में ये सिंह पर सवार होकर प्रगट हुए थे और राक्षसों का संहार कर धर्म की स्थापना की |
त्रेतायुग में इनका विवाह रिद्धि व सिद्धि से हुई थी | द्वापरयुग में ये मुसक पर सवार होकर प्रगट हुए थे ,जहाँ ये गजानन नाम से प्रसिद्द हुए और इनके वाहन मुसक का नाम है डिंक |
कलयुग के आखिरी दौर में एक बार फिर गजानन साक्षात प्रगट होने वाले है | जानकारी के आधार पर हम आपको बता दे कि - गणपति कलिकाल में नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर हाथ में खडक लेकर आयेंगे और धुम्रवर्ण या शूर्पकर्ण के नाम से जाने जायेंगे | इस अवतार में भी इनकी चार भुजाये होंगी और ये अपनी सेना के साथ पापियों का नाश करके हमें सतयुग लौटायेंगे |
गणपति दुखो के हर्ता हैं , इनकी पूजा से जीवन में आनेवाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है | भगवान विष्णु की तरह हीं ये भी हर युग में अवतार लेकर पृथ्वी पर लोगो के बीच बुद्धि बांटते हुए उन्हें सुख , समृधि से परिपूर्ण किया है |
बहुत कम लोग यह जानते है कि - महाभारत जैसे धर्मग्रन्थ के रचयिता गणपति है | ठीक वैसे हीं जैसे कि रामायण के रचयिता श्री हनुमान |
मनुष्य और जानवर से निर्माण हुए गणपति की महिमा अपरम्पार है | जिस तरह ॐ हिन्दू धर्म का प्रमुख मन्त्र है और किसी भी पूजा के आरम्भ करने से पूर्व इस मन्त्र का जाप किया जाना फलदायी है , वैसे हीं किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पहले गणपति की पूजा करने से बाधा , दोष आदि का विनाश होता है |
अभी हम सूरत की धरती पर गणपति बप्पा के मंदिर में खड़े हैं , जहाँ मैंने बहुत सारे लोगो से इनकी महिमा का बखान व अद्भुत जानकारी लेनी चाही जो मनुष्य को सिर्फ रोमांचित हीं नहीं करता बल्कि आने वाले कल के लिए एक दिशा भी है | कुछ लोग ऐसे मिले जिनकी जानकारी ने हमें खाली हाथ छोड़ दिया | मगर वहीं कुछ ऐसे लोगो से भी हमारी मुलाक़ात हुई जिनकी जानकारी पाकर हम आप तक पहुंचाने के लिए बाध्य हो गए |
परिचय देने से पहले हम आपको बता दे कि - हम जिनकी पूजा / आराधना करते है , तो उनकी जानकारी तो हमारे पास होनी हीं चाहिए | इसी उद्देश्य से हमने यह कदम आगे बढ़ाया है | हमारी कोशिश रहेगी कि हम देश की चुनिन्दा भक्तगण के विचार व साक्षात्कार अपनी लेखन के माध्यम से आप तक पहुंचाए |
मै या भक्तगण जो भी इस चर्चा में शामिल हो रहे हैं , वह कहीं न कहीं से ली गई जानकारी के आधार पर अंकित है | क्यूंकि उस वक्त न हम थे न आप , मगर इतिहास सदैव इतिहास बनकर आने वाली कल के लिए धरोहर को संभालकर हमें परिपूर्ण बनाती है |
सबसे पहले हम आपको बिहार की धरती पर जन्म लेने वाले "मनोज कुमार" की बातो से अवगत करा दे | सौम्य व्यक्तित्व के धनी मनोज कुमार एक राष्ट्रीकृत बैंक में प्रबंधक है | चेहरे पर अद्भुत निखार व प्रकाश , इनकी बोलती हुई आँखे एक विश्वास का प्रतिक माना जा सकता है |हमारे सवालो को सुन कम शब्दों में बड़े हीं सरलता से जवाब देकर अपनी भावना को प्रगट किया |
* मैंने इनकी अंजुरी में दूर्वा की गाँठ देखी तो पूछ लिया - लोग बप्पा को दूर्वा क्यूँ अर्पित करते है ?
बड़े हीं सहजता से इन्होने कहा - बप्पा को दूर्वा बहुत पसंद है | कश्यप ऋषि ने बप्पा को 21 दूर्वा एकत्र करके खाने को दिया था | ऐसा तब हुआ जब बप्पा अनलासुर को निगल गए थे और इनके पेट में जलन शुरू हो गई थी | जलन की व्याकुलता को शांत करने के लिए ऋषि ने 21 दूब की गठरी बनाकर दी जिसे खाते हीं उन्हें जलन से राहत मिली , तभी से बप्पा को 21 दूब की गाँठ प्रिय लगने लगी | यह जानने के बाद भक्तगण इन्हें 21 दूर्वा की गाँठ समर्पित करते है जिसे पाकर बप्पा खुश होते हुए उनकी मनोकामना पूर्ण कर भक्त को समृद्धि से भर देते है |
इतना बताते हुए मनोज जी ने यह भी कहा कि - यह बाते हम जानकारी के आधार पर बता रहे है | इसलिए कि अध्यात्मिक बातो का ज्ञान हमें किसी महाग्रंथ , काव्य , पुस्तक से मिलती है और इसी को हम स्वयं में उतारकर परिपूर्ण होते है | इनकी बातो में एक खिंचाव था , बप्पा के प्रति इनकी आस्था को देखकर मन पुलकित हो गया | सोंचने वाली बात है कि दूर्वा हाथ में हो और इसकी जानकारी नहीं , ऐसे में दूर्वा समर्पण से पूर्व जानकारी हो तो सोने पर सुहागा माना जाता है |
बप्पा की चरणों में इनकी आस्था की लौ मजबूत है | हर साल ये श्रद्धापूर्वक अपनी शादी की साल गिरह पर यहाँ आते हैं और जिंदगी के हर एक सुखद चौराहे की कामना इनके चरणों में समर्पित कर बप्पा की छवि अपनी आँखों में कैदकर ले जाते है |
इनके साथ इनकी अर्धांगिनी "ऋतू" खड़ी थी | इनके 2 पुत्र है - दोनों अभी शिक्षा के समुन्द्र में सफ़र कर रहे है ताकि जिंदगी की बगिया में नूर बिखेर सके |
बातो के क्रम में मैंने इनसे एक और प्रश्न पूछ लिया जो हमारे पाठक के लिए आवश्यक है |
* भक्तगण बप्पा पर अक्षत क्यूँ चढ़ाते हैं ?
इन्होने मुस्कुराते हुए कहा - इसलिए की गणपति को शुभकर्ता मानते है लोग | वहीं अक्षत को ख़ुशी और समृद्धि का प्रतिक माना जाता है | बप्पा के आगमन पर या इनके पास अगर अक्षत अर्पित किया जाए तो इससे विघ्न बाधाएँ दूर होकर ख़ुशी के साथ सुख समृद्धि घर में विराजती है | गणपति पर अक्षत चढ़ाने से सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलने के साथ हीं सकारात्मक उर्जा का घर में प्रवेश होता है |
अध्यात्म से जुड़े बहुत सी बातो का उन्होंने असरदार जवाब देते हुए एक निर्मल भक्त होने का सबूत पेशकर भक्त और भगवान के मिलन व प्रेम की माला का अनमोल धागा जिसमे आस्था व विश्वास के फूलो को गुथा जाता है , पिरो दिया | क्यूंकि एक दूसरे के बिना दोनों हीं अधूरे है भक्त भी और भगवान भी |
मनोज कुमार के विषय में अभी बहुत कुछ है कहने और लिखने के लिए | वक्त आया तो हम विस्तृत जानकारी देंगे और इस मुस्कराहट के भीतर का इंद्रधनुषी पन्ना भी खोल देंगे आपके सामने जो बताएगा - इस सौम्य / नूरमय मुस्कान और व्यक्तित्व का राज | फिलहाल आज उन्होंने दुनियांभर की खुशियों के साथ बप्पा से अपनी जीवनसंगिनी के संग जीवन भर साथ चलने और प्रेम के धागे को बंधे रहने हेतु याचना की है | ......... ( अध्यात्म फीचर :- रुपेश आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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