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बात उस समय की है , जब पंडित जी का एक अलग ही महत्व व रुतवा हुआ करता था | उस समय सारे लोग पंडित जी को बड़ी हीं श्रद्धा से सम्मानित करते थे | तब के पंडित कुछ और थे और आज की कुछ और | जिससे ऐसा लगता है कि पंडितों ने स्वयं को और अपने धर्म को मॉडर्न बना दिया है |
पहले के पंडित सिर्फ यह सोंचकर जाते थे कि आज फलां गाँव में पूजा करानी है | पर आज के पंडित यह सोंचते है कि पूजा कराने के बाद किस गावं से कितना पैसा आने वाला है | कितनी भी दूर हो , पहले के पंडित जी कोसों दूर पैदल चलकर भी पूजा कराने चले जाते थे | पर आज के मॉडर्न पंडित जी , मोटरसाइकिल से हीं जाते हैं और जजिमान से पूजा दक्षिणा के साथ - साथ मोटरबाइक में डाली गई पेट्रोल का दाम भी ले लेते हैं | यकीन न हो तो एक बार आप बिहार राज्य के गया जिले में चले जाइए , फिर आपको पंडितों का महत्व समझ में आ जायेगा | खैर .... इन बातों का क्या जिक्र करना , हम तो बताने जा रहे थे पंडित रामलोचन की गिरती , पलटती कहानी |
जब पंडित रामलोचन जिस भी गली से गुजरते , तो बस पुरे गली भर के लोग का , पंडी जी के प्रणाम पाती के जयकार से गूंजने लगती थी | पंडित जी प्रणाम , प्रणाम पंडी जी , डंडौत पंडी जी आदि नारे लगते थे और इसका जवाब रामलोचन अपने इस अंदाज में दिया करते थे - जगमगाते रहिये बच्चों लोग , सदा खुश रहिये , हजारों साल तक बने रहिये | साथ में मुस्कुराते हुए , पंडित ये भी बोलते आगे बढ़ जाते - खिलाइए दही चुरा आम , अभी जाते है नहीं तो रोड हो जाएगा जाम , जब देखोगे मेरा काम तो लोगे पंडित जी का नाम |
जी हाँ हंसिये नहीं , यहीं सब तो विचित्र बातें थी पंडित रामलोचन की | जब वो कहीं पूजा कराने जाते थे , तो घर से एकदम हल्का सा नास्ता करके जाते थे , ताकि जजिमान के यहाँ भरपेट खाना खाया जा सके और जब पंडित जी पूजा कराने के बाद , खाने बैठते तो अपनी धोती थोड़ी ढीली भी कर लेते और फिर जी भर के खाते थे और पेट पर गोल - गोल हाथ घुमाते हुए बोलते - बस जजिमान भर गया पेट | जजिमान भी कहाँ कम थे , पंडित जी को पैसे का लालच देकर एक रसगुल्ले पर एक रुपया , एक जिलेबी पर 50 पैसा , एक किलो दही पर 5 रुपया और इस लालच में आकर पंडित जी भी कहाँ पीछे हटते थे , जी जान लगाकर खाने की कोशिश करते और गटक जाते |
घर पहुंचते हीं श्रीमती से बोल पड़ते - प्यारी जरा एक - दो हाजमा का गोली देना | श्रीमती हाजमा की गोली खिलाकर बड़े हीं प्यार से पूछती - पंडित जी रात को क्या खायेंगे आप ? फिर पंडित जी प्यारी का हाथ पकड़कर बोलते - अरे प्यारी , पंडित जी तो हम सिर्फ बाहर वालों के लिए है | श्रीमती जी पंडित जी के और करीब आकर बोलती - और मेरे जी ? पंडित मुस्कुराते हुए बोलते - तेरे लिए तो बस , तुम प्यारी तो मै तेरा प्यारा , तू बाती तो मै तेरा दीपक , तू फूल तो मै तेरा भवंरा | श्रीमती मुंह फेरकर बोलती - अच्छा अब इस प्यारी बातों में आप मुझे फंसाइए मत , फटाफट ये बता दीजिये , रात को क्या खाना खायेंगे आप ? पंडित जी बोलते - खाना मत बोलो प्यारी , आज कुछ भी नहीं चलेगा | तो श्रीमती हल्के से मुस्कुराती हुई बोलती है - तो ठीक है आज रात का खाना छोड़ देती हूँ | वैसे भी पड़ोसी के घर से रस माधुरी आया है , सो मै खा लुंगी | यह सुनकर पंडित जी के मुंह से पानी का लाड़ टपकने लगता है - र..स...मा...धुरी और रात को दो प्लेट रस माधुरी भी गटक गए और एक बड़ी ढकार ले कर सो गए |
फिर खाने के बाद , श्रीमती ने पंडित जी के लाये हुए पोटली को खोला तो आँखों के सामने , लाल - लाल सेब , अनार , केला , नारियल , जिलेबी , रबड़ी और घी से बना मोतीचूर का खुशनुमा लड्डू आदि देखकर मुंह में पानी आ गया | पर क्या करती , पेट जो रस माधुरी से भर चूका था | एक जलेबी खाकर , पोटली को बंधकर तख्ते पर यह सोंचकर रख दी , कि कल खायेंगे | फिर क्या था , सुबह हुआ नहीं की , कुछ व्यक्ति , पंडित जी के घर पर पहुँच गए और पंडित जी ने सारा सामान उस व्यक्ति से बेचकर अपनी दिनचर्या से निवृत हो फिर पूजा कराने निकल गए |
सुबह श्रीमती जी , घर का सारा काम निपटाकर पूजा किया | फिर नास्ते के लिए , तख्ते पर से जैसे हीं पोटली उतारी , तो आँखे उड़ी की उड़ी रह गई | गहरी लम्बी साँस लेती हुई बाप रे ...... फिर बेच डाले पंडित जी , सारे फल व मिठाई | ये तो सिर्फ पैसों के पीछे लगे रहते है , खुद खा कर आते है और सारा सामना पैसों के खातिर बेच देते , हमें कुछ खाने भी नहीं देते |
शाम होने को था , पंडित जी हाथ में अण्डों से भरी थैली लेकर घर आये | श्रीमती ने बड़े हीं प्रेम से अंडे का कोप्ता बनाया और फिर खाने की थाली लगाकर पंडी जी के सामने रख दिया | श्रीमती जी अभी पानी लाने हीं गई थी कि , पंडित जी ने आवाज लगाईं - प्यारी जरा अंडे लाना | श्रीमती जी ने गुस्से से साड़ी की पल्लू कमर में खोंसती हुई डंडे लेकर आई | यह देखकर पंडित जी के होश उड़ गए , पंडित जी रुखी व तुतली आवाज में हकलाने लगे , बोला - डंडे ? श्रीमती ने कहा हाँ डंडे , आपने हीं तो मंगाया था न ! पंडित जी ने कहा - अरे प्यारी मै तुम्हे डंडे नहीं अंडे लाने को कहा था | श्रीमती चौंकती हुई - क्या , आपने सारे अंडे खा लिए ? बाप रे ! पंडित जी ने कहा - घबराओ मत प्यारी , आज क्या था न , कि जजमान जरा कमजोर था , सो ठीक से खाना नहीं हुआ | पंडित जी अपने पेट पर गोल - गोल हाथ फेरते हुए बोलते हैं - पेट पूरा भर गया | कल सुबह जजिमानी के लिए निकलना है और सोने के लिए चले जाते हैं |
श्रीमती जी अपना थाली लगाती है , क्यूंकि वह नन व्हेज नहीं खाती और पानी लेने के लिए जैसे ही जाती है तभी पंडित जी उनके थाली से दो मिठाई उठाकर खा लेते हैं | ऐसे हीं थे , गावं के पंडित जी रामलोचन , जिनका कोई जवाब नहीं | ..... ( कहानी :- भव्याश्री डेस्क )
पंडित जी के विषय में आपको एक बात बता दे कि - पंडित को कितना भी खिला दीजिये , कुछ देर बाद उनके सामने फिर उनके मनपसंद लजीज थाली परोस दिया जाए तो खाने से बाज नहीं आते , हें हें हें कर के खा हीं लेंगे | वैसे दही - चुरा ,आम , जिलेबियां उनके खास पसंदीदा भोजन है | लेकिन भोजन के अतिरिक्त सलामी न दीजिये तो चेहरा भी उतर जाता है उनका | इससे जुड़ी हुई एक महत्वपूर्ण बात पंडित को खिलाने से अन्न - धन की कमी नहीं होती | यकीन न हो तो - रामायण पलटकर देख लीजिये आप , पंडित के अपमान या दिल दुखाने से वंश का भी विनाश होता है |
नोट :- इस कहानी के माध्यम से , जाती धर्म पर कटाक्ष नहीं किया गया है | लेखनी को मात्र मनोरंजन मात्र समझे |
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