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नेहा को राहुल की मोटरसाइकिल से उतरते हुए जब बड़ी बहन नैना ने देखा तो उसे कॉमन रूम में बुलाकर कहा - तुमने ऐसा क्यों किया ? पापा गर देख लेते ना राहुल के संग तुम्हें गाड़ी पर तो शामत आ जाती और तुझ पर ही नहीं इस घर पर भी | तू तो जानती है न पापा का स्वाभाव ! यह सब उन्हें पसंद नहीं , बुआ को पापा ने इसी कारण त्याग दिया है , आज तक वह तरसती रह गई यहां आने के लिए , पर पापा ने तो जैसे कसम ही खा ली हो कि उन्हें देखना ही नहीं | अब उनकी बेटी भी किसी और की मोटरसाइकिल पर बैठे , यह बात कितनी बड़ी है इस घर के लिए , पापा की प्रतिष्ठा के लिए , यह तु अच्छी तरह जानती है | यह अलग बात है कि वह बचपन से इस घर में आता जाता है अभिषेक भैया से दोस्ती के कारण | पर आज के बाद इस राज को मै भी नहीं छुपाने वाली | कितनी दफा मै तुम्हे समझा चुकी हूँ पर तु है कि मानती नहीं |
पापा सबसे ज्यादा तुमसे हीं प्यार करते हैं , उनके दिल पर कांटा मत बिछाओ नेहा , उन्हें दिल की बीमारी है कहीं ऐसा ना हो कि ........ कहते कहते नैना रो पड़ती है | बेटी की आवाज को सुनकर मां और मामा दोनों कमरे में पहुंच जाते हैं और फिर बातें बढ़ती चली जाती है | इतना कि नेहा अब अपने दिल की बातें कहने पर मजबूर बेबस हो बोल पड़ती है - मैं नहीं जानती कब , क्यों मुझे राहुल से प्यार हो गया | मुझे कुछ भी याद नहीं बस इतना पता है कि मैं उसके बिना जी नहीं सकती | आपकी नजरों में अगर प्यार करना गुनाह है तो अनजाने में हीं सही मुझसे यह गुनाह हो गया | इस गलती की सजा आप लोग जो भी देना चाहो मुझे मंजूर है मगर ! मगर राहुल से अलग होने की बात मत करना नहीं तो आपकी नेहा मर जायेगी | इसे धमकी समझने की भूल मत कीजियेगा , यह मेरा स्वयं का अटल निर्णय , ठोस निर्णय है और पास आते हुए नैना की तरफ मुखातिब होती हुई बोलते हैं - दीदी मैं बेचारी नहीं हूं और ना ही दया की पात्र | जहां तक मुझे याद है मैंने आज तक आप लोगों की मर्जी के खिलाफ कोई कार्य नहीं किया और आज भी कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिससे आपको आपका सर झुकता हुआ नजर आ रहा है |
राहुल मेरा बचपन का दोस्त है यह तो आप सभी लोग जानते हैं | अब वह मेरी जाति का नहीं है इसमें मेरा या उसका क्या कसूर ? जब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता तो ! फिर आपको क्यों चिंता खाए जा रही है | जब ईश्वर ने जाति / धर्म का बंटवारा नहीं किया तो इंसान ऐसा क्यूँ करते हैं ? ऐसा होता तो भगवान श्री कृष्ण यशोदा मैया के घर नहीं पलते , यह निर्णय तो स्वयं विष्णु भगवान का था और मामा की तरफ कदम बढ़ाती हुई बोलती है - हम लोग तो सभी देवी देवताओं की पूजा करते है तो क्या उनकी जाति / धर्म या फिर अमीरी - गरीबी देखते है ? या किसमे ज्यादा शक्ति या सामर्थ्य है बोलिए ? नहीं न !
फिर मां की तरफ बढ़ती हुई बोलती है - देखो माँ बच्चे जो बचपन से देखते हैं , सुनते हैं , जानते हैं वही करते भी हैं और जब वह बड़े होते हैं तो फिर उन्हें बोल दो - सभी देवी देवताओं की पूजा करना छोड़ कर दीक्षा लो | उनकी दीक्षा जिनकी दीक्षा आपने लिया है , भले ही वह आसाराम बापू की तरह हो या फिर राम रहीम की तरह हीं क्यों न हो और फिर बाद में यही कहेंगे आपलोग - ऐसा निकल गया , देखने से तो नहीं लगता था | अपनी गलती पर पछतावा के बाद आप सभी बड़े लोग ऐसा ही कहते हैं न - भूल हो गई | मैं भी यही कहूंगी भूल हो गई | पश्चताने जैसी बाते अगर मंजिल पर पहुंचने से पहले आई तो !
इतना लेक्चर काफी था परिवार के लिए | जिंदगी में पहली बार ही तो मुंह खोला था या कुछ मांगा था नेहा ने | आज उसका 21 वां जन्मदिवस है फिर भी वक्त का तकाजा जो उसे रुला गया | लेकिन रोने के बाद अगर सावन बरस जाए तो फिर पिछला दुख दुख नहीं रहता सुख में बदल जाता है | नेहा के पीछे से पापा को आते देख बड़ी बहन नैना का तो रूह हीं कांप गया , अरे बाप रे जुबान से निकल गया और बोल पड़ी पापा ने सारी बाते सुन ली होगी | डूब गया नेहा का प्यार पानी में और राहुल का तो सामत मानो आ गया |
पति की आहट पाकर मां के भी होश उड़ गए और लगा पांव तले से जमीन खिसक गई हो | बड़ी बहन और मां आंखों ही आंखों में डरी सहमी न जाने कितना निर्णय लिया होगा , जो दंड नेहा को मिलने वाला है | मां ने पास आकर बड़ी बेटी को पकड़ खड़ी रहने में थोड़ा बैलेंस ले लिया था | क्या पता कब चक्कर आ जाए और वह धरती पर फिसल पड़े | पास आते हुए मिस्टर खुराना ने नेहा को जन्मदिन का मुबारकबाद देते हुए तिलक पर प्यार से चुम लिया था | नेहा उनका पाँव छूती हुई डरी सहमी सी अपने पापा खुर्राना के सीने से लगने की कोशिश में नाकाम हो भर्रा कर रो पड़ी |
मिस्टर खुर्राना उसे सांत्वना देते हुए कहा - ना बेटी ना , रोते नहीं , वह भी आज के दिन | मिस्टर खुर्राना बेटी का मुखड़ा उठाते हुए कहा - कहिए मेरी चाँद सी चुलबुली चंचला बेटी इस 21 वीं वर्षगांठ में अपने पापा से क्या तोहफा मांगेगी ? नेहा पुनः मुंह को पापा के सीने में छुपाती हुई कहा - नहीं पापा आपकी बेटी इस जन्मदिन में अपने लिए आपसे कुछ भी नहीं मांगेगी | बस मेरे पापा हमेशा खुश रहे यही दुआ करेगी |
मिस्टर खुर्राना ने नेहा का चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा - नहीं नेहा याद करो आज से 5 वर्ष पहले जब तुमने मैट्रिक पास किया था तब मैंने तुम्हें तुम्हारी पसंद का तोहफा देना चाहा था | उस वक्त तुमने कहा था - पापा पहले पढ़ाई पूरी करूंगी फिर जब मैं थोड़ी और समझदार बन जाऊंगी और जब मेरा 21 वां वर्षगांठ होगा तब आपसे इस तोहफे को मांग लूंगी , तब पापा आप इंकार मत कीजिएगा | अपने मोबाइल को पॉकेट में रखते हुए खुर्राना बोल पड़ते है - बोल बेटी क्या चाहिए पापा से ? 5 वर्ष मैंने उंगली पर गिन गिनकर गुजारे है महंगा वक्त तेरे लिए और भगवान से स्वयं जीने की भी इजाजत मांगी थी - बेटी का कर्ज लेकर न मरुँ तो अच्छा |आज वो दिन आ गया है जब मैं कर्ज से स्वयं को मुक्त कर सकूं |
यह सुन नेहा ने सिसकते हुई कहा - नहीं पापा आप पर मेरा कोई कर्ज नहीं है और अगर आप ऐसा मानते हैं तो आज मुझे यही तोहफा दे दीजिये , हमारा डिमांड मुझे वापस दे दीजिए | यह सुन मिस्टर खुर्राना हल्के मुस्कुराते हुए कहा - बेटा एक बात पूछूं ? नेहा पलके झुकाए बेजान मूरत सी बनी बोल पड़ी - बोलिए पापा | खुर्राना जी ने कहा - ऐसा क्यों बोल रही है मेरी लाडो ? सच बोलना तुम्हें पापा के सर की कसम |
नेहा चिंतन में डूबी कहा कि - मेरे पापा चिंता मुक्त जिंदगी जी सके | कहीं ऐसा ना हो कि मेरा तोहफा और आपका वचन दशरथ जी की तरह पूर्ण करने में स्वयं का बलिदान देना पड़े , तो फिर मेरे पास खाली दामन के सिवा कुछ भी नहीं बचेगा पापा | मेरी जिंदगी में आपके दीर्घायु होने से बड़ा कोई दूसरा तौहफा नहीं हो सकता | खुर्राना जी की नम आंखें समुंद्र की हिलौरे लेने ही वाला था कि नेहा को पकड़ते हुए कहा - आज लगता है मेरी बेटी सच में बड़ी हो गई है | लोग कहते हैं बेटी घर की इज्जत को लांघ जाती है | मैं कहता हूं बेटी बलिदान देती है | नाज है मुझे नेहा को जन्म देने पर , उस समय को लाख-लाख नमन , देखा तुमने नेहा की माँ , तुम वर्षों से कहती हो बेटी बड़ी हो गई है शादी कर दो | मेरी बेटी आज बड़ी हुई है अब मैं अपनी बेटी की शादी अपनी पसंद के लड़के से तय करूंगा |
नेहा तुम अपनी सभी सहेलियों को आज शाम 7:00 बजे केक काटने के समय बुला लो और नैना की ओर इशारा करते हुए कहा - दामाद जी कहीं दिख नहीं रहे हैं सुबह से अभी तक सो रहे हैं क्या ? आज के दिन तो कार्य में हाथ बटाना हीं होगा | आदित्य तो है नहीं , आदित्य की जगह तो आज दामाद जी को ही लेना होगा , कहते हुए अपनी पत्नी से बोल पड़ते हैं - नेहा कि माँ , आज पार्टी में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए और नैना तुम डायरी कलम लेकर मेरे ऑफिस में आधे घंटे में फ्री होकर आ जाओ बहुत से कार्य बाकी है |
उनके दरवाजे से बाहर होते हीं सभी लंबी लंबी सांस लेकर स्वयं को राहत पहुंचाने का कार्य करते हैं जैसे वगैर नुकसान पहुंचाए मानो भूचाल थम गया हो | नेहा मन में ठान लेती है कि वह शादी ही नहीं करेगी और पापा से इजाजत मांगकर आगे की पढ़ाई के लिए बैंगलोर चली जायेगी | मोबाइल पर राहुल का नंबर डायल करती हुई सोंचती है - कैसे और क्या कहूँ राहुल से ? उधर घंटी की आवाज सुनकर राहुल फोन रिसीव करता है - हाँ नेहा बोलो क्या बात है ?
नेहा - राहुल वो मै क्या कह रही थी कि तुम इतना ........ कहती हुई नेहा चुप हो जाती है |
राहुल पुनः बात दोहराते हुए - चुप क्यूँ हो गई ? क्या बात है कहो न ! ऐसी अधूरी बाते मत किया करो नेहा | तुम तो जानती हो न कि हर अधूरे कार्य , बाते या कुछ ऐसा जिसे आधी गति देकर लोग छोड़ देते है मुझे पसंद नहीं आता |
नेहा आत्मविश्वास भरती हुए बोल पड़ती है - राहुल कल मै बैंगलूर जा रही हूँ , मेरी फ्रेंड लता भी साथ है | हो सकता है आज हमारी आखिरी मुलाक़ात हो ! तुम्हारे सामने ऐसी बाते करने की मेरी हिम्मत नहीं थी इसलिए मोबाइल पर कह रही हूँ और आज शाम को पापा ने सभी को पार्टी में बुलाने को कहा है तो जरुर आ जाना | अंकल - आंटी को भी साथ लेते आना अब रखती हूँ |
राहुल कुछ सोंचते हुए - हाँ ठीक है , समय से पहुँच जाऊँगा |
नेहा के घर का कैम्पस दुल्हन की तरह सजा मीठी - मीठी संगीत छेड़ रहा है | लोगो का आना बढ़ता हीं जा रहा है ......... शेष इसी पेज पर अगले दिन ......... ( कहानी :- एम० नूपुर की कलम से )
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