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फिल्मों में गीत / गजल / कहानियां या फिर कवितायें देखी सुनी व पढ़ी जाए तो उसके बहुत सारे अर्थ एक साथ नजर के सामने दौड़ने लगेगी | अब जितनी नजरें , उतनी तरह की सोंच , क्योंकि सभी के सोंचने का नजरिया अलग अलग होता है |
किसी ने लिखा है न उम्र की सीमा हो , न जन्म का हो बंधन जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन | यह गाना फिल्म "प्रेमगीत" का है | लोगों ने इस फिल्म को बहुत पसंद किया था और यह गीत लवो पर आज भी दोहराए जाते हैं , सुनने में बड़ा अच्छा लगता है |
वैसे हीं वासु चटर्जी की फिल्म "खट्टा मिठ्ठा" काफी रोचकता से भरी कहानी थी | इस फिल्म में दो बुजुर्गों ने विवाह किया था , दोनों के बच्चे थे | जहाँ एक के पास अपना मकान था तो दूसरे के पास पेंसन सुविधा | बजट को लेकर दोनों परिवार में आये दिन उथल - पुथल मचता | आमदनी अठ्ठनी और खर्चा रुपईया वाली कहावत थी | यह देख पड़ोसी ने सलाह दिया दोनों को एक हो जाने का | इस फिल्म को लोगों ने बहुत पसंद किया , इसलिए की यह फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि इस कहानी में जीवन के बहुत सारे दर्शन छुपे थे | जिसमे निजी जिंदगी में इस तरह की सोंच बहुत दुखी करते है , समाज को | क्योंकि लोगों के ख़ुशी के ठेकेदार तो सबसे पहले घर , परिवार व समाज हीं होते है जो उन्हें हीन दृष्टि से देखते हैं , खैर ..आते हैं मुद्दे पर |
तो कर्नाटक के मैसुर में 73 वर्षीय सेवानिवृत एक महिला जो पेसे से शिक्षिका थी ने अपनी शादी के लिए विज्ञापन दे डाला | इस उम्र में विवाह का विज्ञापन देख लोग काना - फूसी करने लगे | वहीं प्रस्ताव विज्ञापन देख महिला ने 69 वर्षीय इंजिनियर का चुनाव स्वीकार कर लिया |
महिला ने स्पष्ट किया कि वे पारंपरिक तरीके से पति के साथ अपनी बची हुई पुरी जिंदगी बिताना चाहती है | आपको बता दे की महिला का पति से तलाक हो गया था इसलिए पहली शादी का अनुभव ठीक नहीं रहा , इसी वजह से उन्होंने कई वर्षों तक दूसरी शादी नहीं की |
सामाजिक बंधन व तकियानूसी सोंच से कोसो दूर एक सामाजिक कार्यकर्ता वृंदा अदिगे ने कहा जो हम सूचना के आधार पर आपको बता रहे हैं | उनका कहना है कि , वास्तव में यह विचार बहुत अच्छा है | उम्र का इस बात से क्या लेना देना | अगर ! कोई किसी को साथी बनाना चाहता है तो इसमें कोई बुराई नहीं यह तो अच्छा है |
वायरल हुआ मैट्रीमोनियल विज्ञापन सोशल मीडिया पर धूम मचा दिया | एक तरफ युवा वर्ग इस बात का समर्थन कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग महिला के इस फैसले को सामाजिक रुढियों के टूटते हुए क्रम में देख रहें है , तो कोई उस महिला को सावधान रहने की सलाह दे रहे हैं | खैर ...
अकेले रहने से बेहतर है किसी के साथ जिंदगी बिताना | दो दोस्त मिल जाए तो क्या कुछ नहीं हो सकता | इस रिश्ते को एक खुबसूरत सम्मान भरा नाम देना चाहिए | इस उम्र में शादी , मन के रिश्ते को और भी मजबूत बनता है | सिर्फ फिल्म देखकर लोगों को वाह ! वाह नहीं करनी चाहिए | उसे जीवन में भी उतारने का सबका हक़ है | लोगों ने महिला के लिए बुरा सोंच उत्पन्न किया |
लेकिन ! यह सोंच तो सदियों सदी से होता हीं रहा है , तब जब बाल विवाह का प्रचलन था | 60 वर्ष के व्यक्ति का 9 वर्ष की बच्ची से विवाह , समाज को खला नहीं ! वहीं पति मर जाए तो सती बना दो बच्ची को | फिर आया प्रथा पति के मरने के बाद महिला के बाल मुड़वा दिए जायें ताकि वो सुन्दर न लगे |
फिल्म "प्रेम रोग" में तो यहीं दिखलाया गया है और यह फिल्म जीवन की सच्चाई के बिलकुल करीब है | फिर हम बात करे तो कुछ पहले विधवाओं की शादी पर रोक हुआ , विवाह हो अगर ! तो देवर से | भले हीं देवर भाभी से कई दसक छोटा क्यूँ न हो , ये प्रथा भी सच्चाई के करीब है | सारी प्रथा सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के लिए हीं तो बनाये गए थे | अब ! जाकर महिलाओं को थोड़ी राहत मिली है तो इसमें बुराई क्या है ? उसने चोरी तो नहीं की , डाका तो नहीं डाला |
अगर अकेलेपन से घबराकर इस उम्र में एक साथी की तलाश की तो क्या बुरा किया | सौ प्रतिशत सही है , मेरे भी ख्याल से | क्योंकि उनके जीवन पर सबसे पहले उनका हीं अधिकार है , किसी और का नहीं | किसी शायर ने लिखा है :- कुछ तो लोग कहेंगे , लोगों का काम है कहना ! छोड़ो बेकार की बातो में कहीं बीत न जाए रैना | ...... ( न्यूज़ :- भव्याश्री डेस्क )
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