Breaking News
कुछ लोगों को मेनिया होता है , या फिर कुछ ऐसे लोग होते है जो ज्यादा दिखावा कर अपने अमीर होने का सबूत भी पेश करते है | खाने - पीने का सामान बड़े होटल या दूकान से खरीदना पसंद करते है , सामान्य दुकानदार के पास फटकते तक नहीं | जबकि सभी दूकान में एक जैसा हीं सामान बिकता है और बनाने वाले एक सामान्य हीं होते है , तो फर्क क्यूँ ?
अमीर पैसे से नहीं , दिल से बनना चाहिए , तभी दुआएं भी लगती है | आखिर सामान्य या निम्न दूकान वाले जाये तो जाये कहाँ ? इसी पेशोपेश में सदैव वे गरीबी झेल रहे होते है और अमीर , मिलावट करने और अत्यधिक राशि लेकर अंधाधुंध कमाते चले जाते है | जबकि सामान्य लोगों का शद्ध आहार लेना , लोग पसंद नहीं करते , क्यूंकि उनका ओहदा जो कम हो जाएगा |
मगर सभी लोग ऐसे नहीं होते | कुछ लोग बहुत दरियादिल होते और उनकी सहायता करते है | अमीरों की झलक तो दूर से हीं , उनके व्यक्तित्व के द्वारा नजर आता है | फिर क्या फर्क पड़ता है , बड़ा या छोटा दूकान का होना |
फोटो :- जागरण के सौजन्य से
उत्तरप्रदेश के बहराइच जिले में एक ऐसा हीं वाक्या पढ़ने को मिला | बहराइच के जिलाधिकारी डॉ० दिनेश चन्द्र , घाघरा नदी के तट पर बने बेलहा - बेहरौली तटबंध का निरिक्षण कर रहे थे | उनके साथ में अधिकारीयों की टीम थी | जिलाधिकारी को दूर एक झोपड़ी में खोवा बनाती हुई एक महिला दिखाई पड़ी | जिलाधिकारी ने अपनी गाड़ी को वहां ले जाकर रुकवाया और महिला की झोपड़ी में प्रवेश किया | उनके साथ अधिकारी भी उतर गए , लेकिन उनलोगों को आश्चर्य लग रहा था कि आखिर DM महोदय यहाँ क्या करने आये हैं ?
फोटो :- Zee News के सौजन्य से
महिला इस बात से अनभिज्ञ थी कि वह व्यक्ति कौन है ? उसे लगा कोई राहगीर है , या तो पता पूछने आया होगा या फिर और कुछ .... जिलाधिकारी महोदय ने उससे 1KG खोवा ख़रीदा , तब तक लोगों की भीड़ भी इकठ्ठी होनी शुरू हो गई और तब महिला को पता चला की उसका खोवा स्वयं जिलाधिकारी महोदय ने ख़रीदा है | जिलाधिकारी ने सिर्फ खोवा हीं नहीं ख़रीदा , उस महिला का हालचाल भी पूछा और खोवा की जानकारी भी ली एवं खोवा टेस्ट करने के बाद एक सफल ग्राहक होने का सबूत पेश करते हुए , महिला का सम्मान किया | अपनी फूंस की झोपड़ी में वहां के जिलाधिकारी को खोवा खरीदते व खड़े देख , महिला काफी देर तक उन्हें निहारती रही | यह दृश्य काफी भावविहल करने जैसा रहा |
महिला के ख़ुशी का उस वक्त ठिकाना न रहा , जब जिलाधिकारी ने खोवा का स्वाद चखा , फिर खोवा ख़रीदा , फिर देखते हीं देखते महिला का सारा खोवा बिक गया | भारत के लोग नकलची ज्यादा होते हैं | वैसे भी मनुष्य में नक़ल की प्रवृति ज्यादा हीं होती है | सिर्फ एक व्यक्ति को आगे बढ़ने की जरुरत है | एक अच्छे - खासे व्यक्तित्व के धनी लोग , जैसे हीं कदम आगे बढ़ाते हैं , उनका अनुकरण लोगों को करते देर नहीं लगती |
मैंने बहुत सारे ऐसे अफसरों को देखे हैं , जो आम आदमी बनकर , लोगों की समस्या को कम किया है | खासकर दीपावली के वक्त भी ऐसा हीं होता है , की छोटे - मोटे दूकानदार को नजरअंदाज कर बड़े दूकान से दीपक लेना लोग ज्यादा पसंद करते है | दो वर्ष पहले ऐसा हीं हुआ - एक बच्चा धन कमाने के इंतज़ार में ढेरों दीपक बेचने के लिए , लेकर बैठा था | शाम होने को था , लेकिन उसका दीपक नहीं बिका और वो रो पड़ा | पुलिस वाले की एक गाड़ी सामने से होती हुई गुजरी | वैसे भी पुलिस वाले की नजरें काफी तेज होती है , चेहरे से वे किसी का भी भाव पढ़ लेते है और उन्हें अंदाजा लग जाता है , समस्या का | उन्होंने अपनी गाड़ी रुकवाई और उस बच्चे के सारे दीपक खरीद लिए और बच्चा बहुत खुश होकर अपने घर गया और उसने भी दीपावली मनाई होगी |
परन्तु लोग यह चमत्कार करना नहीं चाहते | अगर अमीर लोग चाह ले या फिर जरूरतमंद तो , सामान चाहे जिसका भी हो , सिर्फ खरीदनें की सोंच रखे | बड़े दूकान और छोटे दूकान का फर्क न करें , तो छोटे दुकानदार वालों को बहुत ज्यादा ख़ुशी मिलती है और वो देखते हीं देखते एक बड़ा दुकानदार बन जाता है | ऐसा नहीं कि हमारे भारत से गरीबी कम नहीं हो सकती , लोग करना हीं नहीं चाहते | अगर इन अफसरों की तरह हर व्यक्ति बड़े - छोटे दूकान में फर्क न कर , सिर्फ सामान लेना आरम्भ करे , तो भारत से गरीबी का नामोनिशान मिट जायेगा और उन्हें खुशहाल होते देर न लगेगी | लेकिन ऐसा होता कहाँ है ? कुछ दिन नक़ल में चलती है अकल , बड़े - बड़े अफसरों को देखकर | फिर अकल वहीं ठहर जाता है , क्यूंकि नक़ल करने के लिए भी तो अकल चाहिए , पर उनके पास होता हीं नहीं |
ऐसे अफसरों को दिल से लाखों दुआएं मिलती है , उस व्यक्ति से भी , जो सामान्य या गरीब है और ऊपर वाले से भी जो सबके दाता है | इसलिए सदैव दानवीर की प्रवृति , मन में रखनी चाहिए | सामान लेने के लिए प्रथम दूकान में हीं कदम रोके , वह बड़ा हो या छोटा , अंतर नहीं करें और अपने भारतवर्ष से गरीबी को दूर करने की कोशिश करे | इसलिए की मिठाई सबको मीठा हीं लगता है , तो उन्हें भी हक़ है और यह अधिकार आप दे सकते है , चूकि यह अधिकार आपके हाथ में है | यह भी एक तरह का बहुत बड़ा समाजसेवा है और हर इंसान समाजसेवी होने का ख़िताब पा सकते हैं , सिर्फ फर्क करना छोड़ दें | अपनी सोंच को विस्तृत बनायें , संकुचित नहीं | ...... ( न्यूज़ / फीचर :- भव्याश्री डेस्क )
रिपोर्टर