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सुप्रीमकोर्ट के दरवाजे पर एक महिला व पुरुष आत्मदाह करने पर मजबूर हो गए , जब उन्हें सुप्रीमकोर्ट के अन्दर जाने नहीं दिया गया | आत्मदाह करने वाली महिला का कोर्ट में गवाही था , जिसमे वह अपने साथ एक गवाह को लेकर पहुंची थी |
यह बात 16 अगस्त की है | इस केस में बसपा नेता सांसद अतुल राय पर दुष्कर्म का आरोप लगाया गया था , जिसमे महिला अपने गवाह के साथ सुप्रीमकोर्ट में पहुंची थी | लेकिन वहां पर खड़े गार्ड ने उन्हें अन्दर नहीं जाने दिया | जानकारी के अनुसार कारण यह कि - उसके पास पर्याप्त ID नहीं था | परन्तु यह कैसे माना जाए कि - उस महिला को सुप्रीमकोर्ट के अन्दर क्यूँ नहीं जाने दिया गया ? यह एक बड़ा सवाल है |
केस में गवाही तब दिया जाता है , जब मामला दर्ज हो और यह केस अधिवक्ता द्वारा दर्ज होता है | जब अधिवक्ता महोदय अपने हाथ में कोई भी केस लेते हैं , तो उनके पास पूरा साक्ष्य / सबूत और केस करने वाले का बायोडाट पास में होता है , फिर गवाह की जरुरत पड़ती है | ऐसे में यह कैसे संभव है कि ? कोई महिला सुप्रीमकोर्ट पहुँच जाए अपने गवाह को लेकर और उसके पास कोई ID न हो ! ये मानाने वाली बात नहीं है |
सुप्रीमकोर्ट के दरवाजे पर खड़े गार्ड , जिन्होंने उन्हें अन्दर नहीं जाने दिया , यह उनके लापरवाही का नतीजा कहा जा सकता है | महिला ने अपने प्रयास को विफल मानते हुए सुप्रीमकोर्ट के गेट नंबर D के सामने हीं आत्मदाह कर लिया | उनके साथ गवाह देने वाले युवक भी थे , जिनकी मौत हो चुकी है और वहीं उस महिला की हालत अभी चिंताजनक बताया जा रहा है |
इन दोनों ने व्यवस्था से क्षुब्ध व विचलित होकर ऐसा कदम उठाने पर मजबूर हुए | गवाह सामने हो , गवाही की तारीख हो और उसे अन्दर न जाने दिया जाए , तो स्वाभाविक है किसी का भी विचलित हो जाना | इन दोनीं ने ज्वलनशील पदार्थ डालकर स्वयं को आग के हवाले कर लिया | जिसके बाद दोनों को अस्पताल भेजा गया , परन्तु एक की मृत्यु हो गई | वहीं महिला अंतिम अवस्था में है , अब उनकी जिंदगी बच पाएगी या नहीं , कुछ कहा नहीं जा सकता !
सुप्रीमकोर्ट , जिसे मंदिर नाम दिया गया , उसके सामने इस तरह का हादसा कई सवाल खड़ा करता है | खैर ..... प्रदेश की सरकार ने इस मामले में जाँच बिठा दी है | सांसद अतुल राय के खिलाफ दो सदस्यीय कमिटी का गठन किया गया , जिसमे IPS आर० के० विश्वकर्मा और IPS नीरा रावत शामिल है | बहुत जल्द कमिटी अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौपेंगी |
अब इस मामले में करवाई करते हुए राज्य सरकार ने पीड़िता के लिए लापरवाही बरतने पर कैंट इंस्पेक्टर राकेश कुमार सिंह और दरोगा गिरजा शंकर यादव को निलंबित कर दिया | वहीं पुलिस आयुक्त ए० सतीश गणेश के आदेश पर दोनों के खिलाफ विभागीय जाँच शुरू कर दी गई है |
इस खबर पर जैसे हीं यूजर्स की नजर गई , आक्रोश भरा प्रतिक्रिया भी अंकित होने लगा | शब्द ऐसे कि कानून व्यवस्था को घोर लापरवाही के कारण एक महिला और पुरुष का सुप्रीमकोर्ट के मेन गेट पर जल जाना बड़ी विडम्बना कह रहे हैं | वहीं किसी ने यह कहा कि - यहाँ की प्रशासनिक व्यवस्था तब जागती है , जब जिंदगी या तो सो जाती है नहीं तो सोने के कागार पर खड़ी होती है |
यह घटना बहुत बड़ा सीख और सबक है , वर्त्तमान के लिए भी और भविष्य के लिए भी | जिसमे आखिरकार दोषी किसे करार दिया जाए ? क्यूंकि गवाही देने वालो को अन्दर जाने नहीं दिया गया और केस गवाह का बाट जोहता रहा | अब गवाह इस दुनियां में नहीं और पीड़िता अंतिम अवस्था में अस्पताल में भर्ती है | आखिर ऐसा क्यूँ होता है ? कि जब आवाज उठती है , तो उसपर कोई सुनवाई होता नहीं , जब आवाज खामोश हो जाने पर मजबूर होता है , तो गति आरम्भ की जाती है , अधिकारी को सस्पेंड किया जाता है और मामल उछाल लेता है | इसे विडंबना कहे या दुर्भाग्य ! बात बराबर है | सामान्य और खास में अंतर तो कहा हीं जा सकता है | खैर ....... वक्त के आगे हार है और वक्त के जीते जीत |
हर केस के ऊपर एक पॉवर का नजर जरुर है , जिससे धरती की गति संचालित है | अब आने वाले कल में संभव है इस केस का हिसाब , हो सकता है ऊपर वाले के हाथ ! क्यूंकि यहाँ सभी बच्चे उनके लिए बराबर है , इसलिए इन्साफ देर हीं सही मगर बराबर होकर रहता है | ..... ( न्यूज़ / फीचर :- भव्याश्री डेस्क )
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