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रुद्राक्ष शब्द दो शब्दों के मेल से बना है - पहला "रुद्र" जिसका अर्थ भगवान शिव को माना गया है और दूसरा अर्थ "अक्ष" जिसका अर्थ आंसू से है , यानी भगवान शिव के आंखों से उत्पन्न हुआ रुद्राक्ष | इसलिए रुद्राक्ष को एक अमूल्य मोती माना जाता है , जिसे धारण या उपयोग करके इंसान अमोघ फलों को भी प्राप्त कर सकता है | रुद्राक्ष को भगवान शिव का स्वरूप माना गया है | इसे प्राप्त कर इंसान सभी कल्याणमय जीवन को पा सकता है और समस्त प्रकृति में प्रवाहित हुई अलौकिक शक्ति को मानव अपने हृदय में पहुंचाकर उसे जागृत करने में सहायक हो सकते हैं |
हिंदू धर्म ग्रंथ के अनुसार - भगवान शिव को "देव और दानव" दोनों देवता का रूप माना गया है | भगवान शिव शांत और प्रसन्न स्वभाव के हैं | इसलिए इन्हें "भोले शंकर" या भोलेनाथ के नाम से स्मरण किया जाता है और दूसरा नाम रूद्र जो प्रलयकारी स्वभाव के कारण पड़ा है |
भगवान शिव के भक्त जानते हैं कि - प्रभु को बेलपत्र बहुत प्रिय है | तीन पत्तों वाले बेलपत्र पर चंदन पाउडर के घोल से श्री राम लिखकर चढ़ाया जाए , तो बाबा भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं , ठीक वैसे हीं रुद्राक्ष भी उन्हें उतना ही प्रिय है | कोई भी व्यक्ति असल रुद्राक्ष का पूजन कर मन में किसी प्रकार की इच्छा रखते हैं , तो वह इच्छा अवश्य ही पूर्ण हो जाता है | ऐसी मान्यता है कि - भगवान शिव के नयन से उत्पन्न इन रुद्राक्षों में समस्त दुखों को हर लेने की क्षमता होती है | पुराणों और ग्रंथों के अनुसार रुद्राक्ष के प्रकारो को अलग - अलग गुण में विभाजित किये गए हैं | वर्तमान में अधिकांशतः चौदह मुखी गौरी शंकर व गणेश रुद्राक्ष हीं मिल पाते है |
वैसे रुद्राक्ष को पहनने का कोई खास नियम नहीं है | यह कोई भी व्यक्ति , किसी भी स्थिति में धारण करें तो सोने पर सुहागा होगा | वैसे एक से लेकर 14 मुख तक के रुद्राक्ष को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है | वैसे नकली रूप का रुद्राक्ष कई एकमुख का बाजार में उपलब्ध है | सभी रुद्राक्ष का पूजन विधि एक ही तरह का है | परंतु उसके मंत्र अलग-अलग है , जिससे रुद्राक्ष को मंत्रित कर पहनने से उसमें शक्ति उत्पन्न हो जाती है |
रुद्राक्ष के मुख की पहचान है कि - यह जितने मुख के होते हैं उतने ही फांके नजर आती है | हर रुद्राक्ष फल किसी न किसी ग्रह और देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है | इसलिए इसे धारण करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि - व्यक्ति के मन में कोई भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता और वह स्वयं को देवताओं के अधीन पाता है व स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है |
वैसे रुद्राक्ष के समान ही एक अन्य फल होता है , जिसे भद्राक्ष कहा जाता है | यह भद्राक्ष भी रुद्राक्ष की तरह हीं दिखता है , इसलिए लोग इसे भी रुद्राक्ष बोलकर बेच देते हैं और लोगों को पता भी नहीं चल पाता | वैसे रुद्राक्ष को जानने का कई तरीका है जिससे आप दोनों में अंतर पता कर सकते है |
भद्राक्ष का किया गया पूजन उसके प्रभाव को और असफल बनाता है | इसलिए जरूरी है पूजन के लिए उसके असली रूप यानि रुद्राक्ष का होना | असली रुद्राक्ष चिकने , दृढ़ कांटेदार तथा एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक सीधा बारिक वाला उत्तम माना जाता है | जिसमें अपने आप छिद्र उत्पन्न हुआ हो और उसके बीचों में धागा आसानी से पिरोया जा सके |
14 मुखी रुद्राक्ष के मंत्र व धागों का रंग भी अलग है | कोई लाल तो कोई काले धागों में पहनने की मान्यता है और अलग-अलग मंत्र से पूजा स्थल पर रखकर धूप दीप जलाने के बाद भगवान शिव भोले शंकर के चरणों के पास रखकर उस मंत्र का 108 बार जप करके हीं धारण करनी चाहिए |
वैसे 14 मुखी रुद्राक्ष में एकमुखी रुद्राक्ष महत्वपूर्ण , अमूल्य माना गया है | क्योंकि यह बेहद शक्तिशाली है और इसे पाना बहुत दुर्लभ भी | लेकिन गौर करने की बात है कि - गर्भवती महिलाएं व बच्चे को इसे नहीं पहनना चाहिए | एकमुखी रुद्राक्ष का आकार ओमकार जैसा होता है , इसमें साक्षात भगवान शिव का वास होता है | मान्यता है कि एकमुखी रुद्राक्ष धारण करने से भगवान शिव की शक्तियां प्राप्त होती है | इसलिए यह किस्मत वालों को ही नसीब होता है , जिसपर भगवान भोले शंकर की कृपा हो | एकमुखी रुद्राक्ष सिंह राशि के जातकों के लिए अत्यंत शुभ होता है | एकमुख वाले रुद्राक्ष की जहां पूजा होती है वहां से मां लक्ष्मी दूर नहीं होती | क्योंकि इसे साक्षात शिव का स्वरूप माना जाता है | इसे धारण करने से सभी पापों का व समस्याओं से निराकरण हो जाता है | इस मुख का रोज हीं पूजन करनी चाहिए |
शरीर में धारण करने से आत्मविश्वास एवं शारीरिक असीम ऊर्जा की प्राप्ति होती है | लोगों के प्रति सहृदयता व मन में कल्याणकारी भावना उत्पन्न होती है | विभिन्न प्रकार के आने वाली हार्टअटैक , भूत - प्रेत , बाधा , आकस्मिक बिपतियाँ आदि में यह काफी लाभकारी है | इस एकमुखी रुद्राक्ष को लाल धागे में पिरोना चाहिए , इससे सूर्यजनित त्रुटि भी शांत हो जाता है |
तांबे के बर्तन में एकमुखी रुद्राक्ष रखकर ओम एं हं ऐं ऊँ मंत्र का जाप करते हुए इसे गाय के दूध में स्नान कराये | फिर गंगाजल में स्नान कराये , व किसी भी शिव मंदिर का भस्म या चन्दन का तेल लगाकर एवं बेलपत्रों को चढ़ाकर ध्यानपूर्वक पूजन करे और ओम त्र्यंबकम सदाशिव नमः मंत्र से हवन करें या फिर किसी अच्छे पंडित के अधीन इस मंत्र का जाप कर इसे चांदी में बनवाकर धारण करें | ईश्वर की कृपा से सूर्यजनित सभी त्रुटि शांत हो जाएंगे | क्योंकि इस एकमुखी को परब्रह्मा माना गया है | जिस घर में यह एकमुखी रुद्राक्ष है वहां खासकर लक्ष्मी विराजती है |
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इस जगत का निर्माण ब्रह्मा जी द्वारा करवाया | इसी वजह से हर युग में सभी मनकामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान शिव का पूजन उत्तम और सबसे सरल माना गया है | इसके साथ ही शिव जी के प्रतीक रुद्राक्ष को मात्र धारण करने से हीं भक्तों की सारी बाधाएं व दुख दूर हो जाती है | नियमों का पालन करते हुए रुद्राक्ष धारण करने पर बहुत जल्द सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगते हैं |
पूर्व की बात है कि - एक बार ज्ञानी नारद मुनि ने भगवान नारायण से पूछा - दयानिधान रुद्राक्ष को उत्तम क्यों माना गया है ? इसकी महिमा क्या है ? सभी के लिए यह पूजनीय क्यों है ? रुद्राक्ष की महिमा को विस्तार से बताकर मेरी जिज्ञासा शांत करे |
नारद मुनि की बात सुनकर भगवान नारायण बोले - हे नारद मुनि , प्राचीन समय में यही प्रश्न कार्तिकेय ने भगवान महादेव से पूछा था | तब उन्होंने जो कुछ बताया था , वही मैं तुम्हें बताता हूं | एक बार पृथ्वी पर त्रिपुर नामक एक भयंकर दैत्य उत्पन्न हो गया | वह बहुत बलशाली और पराक्रमी था | जब कोई भी देवता उसे पराजित नहीं कर सके , तब ब्रह्मा विष्णु और इंद्र आदि देवता , भगवान शिव की शरण में गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की |
भगवान शिव के पास अघोर नामक एक दिव्य अस्त्र है | वह अस्त्र बहुत विशाल और ताजयुक्त है | उसे संपूर्ण देवताओं की आकृति माना जाता है | त्रिपुर का वध करने के उद्देश्य से भगवान शिव ने अपने नेत्र बंद करके अघोर यज्ञ का चिंतन किया | अधिक समय तक नेत्र बंद रहने के कारण उनके नेत्र से जल की बूंदे निकलकर पृथ्वी पर गिर पड़ी | उन्हीं बूंदों से महान रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए | फिर भगवान शिव की आज्ञा से उन वृक्षों पर रुद्राक्ष फलों के रूप में प्रकट हो गए |
यह पेड़ दक्षिण एशिया में मुख्य रूप से - भारत , जावा , मलेशिया , ताइवान व नेपाल में पाया जाता है | भारत में यह - असम, अरुणाचल प्रदेश , देहरादून में पाए जाते हैं | वहीं बिहार के दरभंगा जिले में दरभंगा नरेश के विशाल बागान में यह खास रूप से उपलब्ध था , व इसके कई एक पेड़ मौजूद भी थे |
रुद्राक्ष का फल छीलकर उसके बीज को पानी में डालकर साफ किया जाता है | इसके बीज हीं रुद्राक्ष रूप में माला आदि बनाने में उपयोगी होती है | कहा जाता है कि - मां सती की मृत्यु पर शिव जी बहुत दुखी थे और उनकी विरह पर अनेक स्थानों पर भगवान शिव के आंखों से आंसू कि बूंदे गिरी | जिन - जिन स्थानों पर यह बूंदे गिरी , वहीं पर यह पेड़ का जन्म हुआ | यह रुद्राक्ष 48 प्रकार के थे - इनमें कत्थई वाले 12 प्रकार के रुद्राक्ष की सूर्य के नेत्रों से - श्वेत वर्ण के 16 प्रकार के रुद्राक्ष , चंद्रमा के नेत्रों से 10 प्रकार के रुद्राक्ष एवं कृष्ण वर्ण वाले 10 प्रकार के रुद्राक्ष की उत्पत्ति अग्नि के नेत्रों से मानी जाती है | ये हीं इनके अड़तालीस भेद है | ....... ( अध्यात्म फीचर :- आदित्या , एम० नूपुर की कलम से )
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